|
|
خط ۱: |
خط ۱: |
| {{امامت}}
| | #تغییر_مسیر [[سالمند]] |
| <div style="background-color: rgb(252, 252, 233); text-align:center; font-size: 85%; font-weight: normal;">اين مدخل از چند منظر متفاوت، بررسی میشود:</div>
| |
| <div style="background-color: rgb(255, 245, 227); text-align:center; font-size: 85%; font-weight: normal;">[[احترام به سالمندان در قرآن]] - [[احترام به سالمندان در حدیث]] - [[احترام به سالمندان در معارف و سیره نبوی]]</div>
| |
| | |
| ==مقدمه==
| |
| [[پیامبر اسلام]] میفرمود: «[[احترام]] به پیرمرد [و پیرزن] [[مسلمان]]، [[بزرگداشت]] [[خداوند]] است»<ref>اصول کافی، ج۲، ص۱۶۵.</ref>. [[جوانان]] را به احترام نهادن به [[کهنسالان]] [[تشویق]] میکرد و میفرمود:
| |
| هیچ [[جوانی]]، [[کهنسالی]] را به خاطر پیریاش گرامی نمیدارد، جز آنکه هنگام [[پیری]] خودش، خداوند کسی را برایش فراهم میکند که احترامش گذارد<ref>مشکاة الانوار، ص۲۹۳.</ref>.
| |
| | |
| [[امام صادق]]{{ع}} فرمود: «روزی دو مرد نزد [[حضرت]] آمدند. یکی پیر و دیگری [[جوان]]. مرد جوان پیش از همراه کهنسالش لب به سخن گشود. [[پیامبر]] فرمود: (ابتدا) بزرگ(تر) و بزرگ(تر)»<ref>مستدرک الوسائل، ج۸، ص۳۹۳.</ref>.
| |
| | |
| [[رسول]] [[رحمت]] همواره [[خانوادهها]] را به احترام [[پیران]] فرا میخواند و میفرمود:
| |
| [[کهنسال]] در میان خاندانش بسان پیامبر در میان امتش است<ref>جامع الصغیر، ج۲، ص۹۰.</ref>. از ما نیست کسی که کهنسالان ما را احترام نکند<ref>اصول کافی، ج۲، ص۱۶۵.</ref>؛ (زیرا) [[برکت]] با بزرگان شماست<ref>بحار الانوار، ج۷۲، ص۱۳۷؛ برگرفته از: همنام گلهای بهاری، ص۲۱۸.</ref>.<ref>[[سید حسین اسحاقی|اسحاقی، سید حسین]]، [[کانون محبت (کتاب)|کانون محبت]] ص ۵۴.</ref>
| |
| | |
| == جستارهای وابسته ==
| |
| | |
| ==منابع==
| |
| {{منابع}}
| |
| # [[پرونده:1379753.jpg|22px]] [[سید حسین اسحاقی|اسحاقی، سید حسین]]، [[کانون محبت (کتاب)|'''کانون محبت''']] | |
| {{پایان منابع}}
| |
| | |
| ==پانویس==
| |
| {{پانویس}}
| |
| | |
| [[رده:احترام به سالمندان]]
| |
| [[رده:مدخل]]
| |