هستیشناسی از منطق وحی (کتاب): تفاوت میان نسخهها
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| محل نشر = تهران، ایران | |||
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| تعداد صفحات = ۹۲۸ | |||
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'''هستیشناسی از منطق وحی'''، ترجمهٔ فارسی کتاب [[الشموس الطالعة من مشارق الزیارة الجامعة (کتاب)|الشموس الطالعة من مشارق الزیارة الجامعة]] است و به تفسیر فرازهای زیارت جامعهٔ کبیره میپردازد. نویسندهٔ این اثر به زبان عربی [[سید حسین همدانی درودآبادی]] و مترجم آن [[مصطفی نامور]] است. انتشارات [[آذینه گل مهر]] نشر این کتاب را به عهده داشته است. | |||
== دربارهٔ کتاب == | |||
در این کتاب، اسرار و معانی عرفانی زیارت جامعهٔ کبیره تشریح و تبیین شده است. | |||
نویسنده در ابتدای کتاب به بیان مطالبی پیرامون زیارت، دوستی اهلبیت (ع)، ادب زیارت، حقیقت زیارت، تفسیرعرفانی طهارت و غسل زیارت، حکمت ذکر تکبیر قبل از زیارت و حکمت ایستادن بعد از سی تکبیر میپردازد و در ادامه فقرات مختلف این زیارت را شرح میدهد. | |||
== | == فهرست کتاب == | ||
در | {{فهرست اثر}} | ||
* مقدمه؛ | |||
* شرح حال مختصری از مؤلف؛ | |||
* مقدمهٔ مؤلف در حمد و ستایش حضرت حق؛ | |||
* مقدمه در اینکه الفاظ ظرف معانی واقعی میباشند؛ | |||
* آداب زیارت؛ | |||
* فلسفهٔ تکبیرهای مقدم بر زیارت؛ | |||
* حکمت ایستادن بعد از سی تکبیر؛ | |||
* مقدمه و پیشگفتار اول مترجم؛ | |||
* مقدمه و پیشگفتار دوم مترجم؛ | |||
* مرتبهٔ انسان کامل؛ | |||
* تعریف انسان کامل به وجهی دیگر؛ | |||
* تعریفی دیگر از انسان کامل؛ | |||
* خطبهٔ توحیدیه حضرت امیر (ع)؛ | |||
* قوله (ع): السّلام علیکم؛ | |||
* قوله (ع): یا أهل بیت النّبوّة؛ | |||
* قوله (ع): و موضع الرّسالة؛ | |||
* قوله (ع): و مختلف الملائکة؛ | |||
* قوله (ع): و مهبط الوحی؛ | |||
* قوله (ع): و معدن الرّحمة؛ | |||
* قوله (ع): و خزّان العلم؛ | |||
* قوله (ع): و منتهى الحلم؛ | |||
* قوله (ع): و أصول الکرم؛ | |||
* قوله (ع): و قادة الأمم؛ | |||
* قوله (ع): و أولیاء النّعم؛ | |||
* قوله (ع): و عناصر الأبرار؛ | |||
* قوله (ع): و دعائم الأخیار؛ | |||
* قوله (ع): و ساسة العباد و أرکان البلاد؛ | |||
* قوله (ع): و أبواب الإیمان؛ | |||
* قوله (ع): و أمناء الرّحمن و سلالة النّبیّین؛ | |||
* قوله (ع): و صفوة المرسلین و عترة خیرة ربّ العالمین و رحمة الله و برکاته؛ | |||
* قوله (ع): السّلام علی أئمّة الهدی؛ | |||
* قوله (ع): و مصابیح الدّجی؛ | |||
* قوله (ع): و أعلام التّقی؛ | |||
* قوله (ع): و ذوی النّهی؛ | |||
* قوله (ع): و أولی الحجی و کهف الوری و ورثة الأنبیاء و المثل الأعلی | |||
و الدّعوة الحسنی؛ | |||
* قوله (ع): و حجج الله علی أهل الدّنیا و الآخرة و الأولی و رحمة الله و برکاته؛ | |||
* قوله (ع): السّلام علی محآلّ معرفة الله؛ | |||
* قوله (ع): و مساکن برکة الله؛ | |||
* قوله (ع): و معادن حکمة الله؛ | |||
* قوله (ع): و حفظة سرّ الله؛ | |||
* قوله (ع): و حملة کتاب الله؛ | |||
* قوله (ع): و أوصیآء نبی الله؛ | |||
* قوله (ع): و ذرّیّة رسول الله صلّی الله علیه و آله و رحمة الله و برکاته؛ | |||
* قوله (ع): السّلام علی الدّعاة إلی الله و الأدلّاء علی مرضات الله؛ | |||
* قوله (ع): و المستقرّین فی أمر الله؛ | |||
* قوله (ع): و التّامّین فی محبّة الله؛ | |||
* قوله (ع): و المخلصین فی توحید الله؛ | |||
* قوله (ع): و المظهرین لأمر الله و نهیه و عباده المکرمین الّذین لا یسبقونه بالقول و هم بأمره یعملون و رحمة الله و برکاته؛ | |||
* قوله (ع): السّلام علی الأئمّة الدّعاة و القادة الهداة و السّادة الولاة؛ | |||
* قوله (ع): و الذّادة الحماة و أهل الذّکر؛ | |||
* قوله (ع): و أولی الأمر و بقیّة الله و خیرته؛ | |||
* قوله (ع): و حزبه و عیبة علمه و حجّته؛ | |||
* قوله (ع): و صراطه و نوره و برهانه و رحمة الله و برکاته؛ | |||
* قوله (ع): أشهد أن لا إله إلّا الله وحده لا شریک له؛ | |||
* قوله (ع): کما شهد الله لنفسه و شهدت له ملائکته و أولوا العلم من خلقه لا إله إلّا هو العزیز الحکیم؛ | |||
* قوله (ع): و أشهد أنّ محمّدا عبده المنتجب و رسوله المرتضی أرسله بالهدی و دین الحق لیظهره علی الدّین کلّه و لو کره المشرکون؛ | |||
* قوله (ع): و أشهد أنّکم الأئمّة الرّاشدون؛ | |||
* قوله (ع): المهدیّون؛ | |||
* قوله (ع): المعصومون؛ | |||
* قوله (ع): المکرّمون؛ | |||
* قوله (ع): المقرّبون؛ | |||
* قوله (ع): المتّقون الصّادقون المصطفون؛ | |||
* قوله (ع): المطیعون لله؛ | |||
* قوله (ع): القوّامون بأمره؛ | |||
* قوله (ع): العاملون بإرادته؛ | |||
* قوله (ع): الفآئزون بکرامته؛ | |||
* قوله (ع): اصطفاکم بعلمه و ارتضاکم لغیبه و اختارکم لسرّه؛ | |||
* قوله (ع): و اجتباکم بقدرته و أعزّکم بهداه؛ | |||
* قوله (ع): و خصّکم ببرهانه؛ | |||
* قوله (ع): و انتجبکم لنوره؛ | |||
* قوله (ع): و أیّدکم بروحه؛ | |||
* قوله (ع): و رضیکم خلفآء فی أرضه و حججا علی بریّته و أنصارا لدینه و حفظة لسرّه و خزنة لعلمه و مستودعا لحکمته و تراجمة لوحیه و أرکانا لتوحیده و شهدآء علی خلقه و أعلاما لعباده عصمکم الله من الزّلل و آمنکم من الفتن و طهّرکم من الدّنس و أذهب عنکم الرّجس و طهّرکم تطهیرا؛ | |||
* قوله (ع): فعظّمتم جلاله و أکبرتم شأنه و مجّدتم کرمه و أدمتم ذکره و وکّدتم میثاقه و أحکمتم عقد طاعته و نصحتم له فی السّرّ و العلانیة و دعوتم إلی سبیله بالحکمة و الموعظة الحسنة؛ | |||
* قوله (ع): و بذلتم أنفسکم فی مرضاته و صبرتم علی ما أصابکم فی جنبه؛ | |||
* قوله (ع): و أقمتم الصّلوة و آتیتم الزّکوة و أمرتم بالمعروف و نهیتم عن المنکر و جاهدتم فی الله حقّ جهاده؛ | |||
* قوله (ع): حتّی أعلنتم دعوته و بیّنتم فرآئضه و أقمتم حدوده و نشرتم شرایع أحکامه و سننتم سنّته؛ | |||
* قوله (ع): و صرتم فی ذلک منه إلی الرّضا؛ | |||
* قوله (ع): و سلّمتم له القضآء؛ | |||
* قوله (ع): و صدّقتم من رسله من مضی؛ | |||
* قوله (ع): فالرّاغب عنکم مارق و اللّازم لکم لاحق و المقصّر فی حقّکم زاهق؛ | |||
* قوله (ع): و الحقّ معکم و فیکم و منکم و إلیکم و أنتم أهله و معدنه؛ | |||
* قوله (ع): و میراث النّبوّة عندکم و إیاب الخلق إلیکم و حسابهم علیکم؛ | |||
* قوله (ع): و فصل الخطاب عندکم؛ | |||
* قوله (ع): و آیات الله لدیکم؛ | |||
* قوله (ع): و عزآئمه فیکم و نوره و برهانه عندکم؛ | |||
* قوله (ع): و أمره إلیکم؛ | |||
* قوله (ع): من والاکم فقد وال الله و من عاداکم فقد عاد الله؛ | |||
* قوله (ع): و من أحبّکم فقد أحبّ الله و من أبغضکم فقد أبغض الله؛ | |||
* قوله (ع): و من اعتصم بکم فقد اعتصم بالله؛ | |||
* قوله (ع): أنتم الصّراط الأقوم؛ | |||
* قوله (ع): و شهداء دار الفناء؛ | |||
* قوله (ع): و شفعاء دار البقاء؛ | |||
* قوله (ع): و الرّحمة الموصولة و الآیة المخزونة؛ | |||
* قوله (ع): و الأمانة المحفوظة؛ | |||
* قوله (ع): و الباب المبتلی به النّاس من أتاکم نجی و من لم یأتکم هلک؛ | |||
* قوله (ع): إلی الله تدعون و علیه تدلّون و به تؤمنون و له تسلّمون و بأمره تعملون و إلی سبیله ترشدون و بقوله تحکمون؛ | |||
* قوله (ع): سعد من والاکم و هلک من عاداکم؛ | |||
* قوله (ع): و خاب من جحدکم و ضلّ من فارقکم و فاز من تمسّک بکم؛ | |||
* قوله (ع): و أمن من لجأ إلیکم و سلم من صدّقکم؛ | |||
* قوله (ع): و هدی من اعتصم بکم من اتّبعکم فالجنّة مأواه و من خالفکم فالنّار مثواه و من جحدکم کافر؛ | |||
* قوله (ع): و من حاربکم مشرک؛ | |||
* قوله (ع): و من ردّ علیکم فی أسفل درک من الجحیم؛ | |||
* قوله (ع): أشهد أنّ هذا سابق لکم فیما مضی وجار لکم فیما بقی؛ | |||
* قوله (ع): و أنّ أرواحکم و نورکم و طینتکم واحدة؛ | |||
* قوله (ع): طابت و طهرت بعضها من بعض؛ | |||
* قوله (ع): خلقکم الله أنوارا فجعلکم بعرشه محدقین؛ | |||
* قوله (ع): حتّی منّ علینا بکم؛ | |||
* قوله (ع): فجعلکم فی بیوت أذن الله أن ترفع و یذکر فیها اسمه؛ | |||
* قوله (ع): و جعل صلواتنا علیکم و ما خصّنا به من ولایتکم طیبا لخلقنا و طهارة لأنفسنا و تزکیة لنا و کفّارة لذنوبنا؛ | |||
* قوله (ع): فکنّا عنده مسلّمین بفضلکم؛ | |||
* قوله (ع): و معروفین بتصدیقنا إیّاکم؛ | |||
* قوله (ع): فبلغ الله بکم أشرف محلّ المکرّمین و أعلی منازل المقرّبین و أرفع درجات المرسلین حیث لا یلحقه لاحق و لا یفوقه فآئق و لا یسبقه سابق و لا یطمع فی إدراکه طامع؛ | |||
* قوله (ع): حتّی لا یبقی ملک مقرّب و لا نبّی مرسل و لا صدّیق و لا شهید و لا عالم و لا جاهل؛ | |||
* قوله (ع): بأبی أنتم و أمّی و أهلی و مالی و أسرتی؛ | |||
* قوله (ع): أشهد الله و أشهدکم أنّی مؤمن بکم و بما آمنتم به کافر بعدوّکم و بما کفرتم به؛ | |||
* قوله (ع): مستبصر بشأنکم و بضلالة من خالفکم موال لکم و لأولیآئکم مبغض لأعدآئکم و معاد لهم؛ | |||
* قوله (ع): سلم لمن سالمکم و حرب لمن حاربکم؛ | |||
* قوله (ع): محقّق لما حقّقتم مبطل لما أبطلتم مطیع لکم عارف بحقّکم مقرّ بفضلکم محتمل لعلمکم؛ | |||
* قوله (ع): محتجب بذمّتکم؛ | |||
* قوله (ع): معترف بکم؛ | |||
* قوله (ع): مؤمن بإیابکم مصدّق برجعتکم؛ | |||
* قوله (ع): منتظر لأمرکم مرتقب لدولتکم؛ | |||
* قوله (ع): آخذ بقولکم؛ | |||
* قوله (ع): عامل بأمرکم؛ | |||
* قوله (ع): مستجیر بکم؛ | |||
* قوله (ع): زآئر لکم لائذ عآئذ بقبورکم مستشفع إلی الله عزّ و جلّ بکم؛ | |||
* قوله (ع): و متقرّب بکم إلیه؛ | |||
* قوله (ع): و مقدّمکم أمام طلبتی و حوائجی و إرادتی فی کلّ احوالی و أموری؛ | |||
* قوله (ع): مؤمن بسرّکم و علانیتکم و شاهدکم و غائبکم و أوّلکم و آخرکم؛ | |||
* قوله (ع): و مفوّض فی ذلک کلّه إلیکم و مسلّم فیه معکم؛ | |||
* قوله (ع): و قلبی لکم مسلّم؛ | |||
* قوله (ع): و رأیی لکم تبع؛ | |||
* قوله (ع): و نصرتی لکم معدّة؛ | |||
* قوله (ع): حتّی یحیی الله تعالی دینه بکم و یردّکم فی أیّامه و یظهرکم لعدله و یمکّنکم فی أرضه؛ | |||
* قوله (ع): فمعکم معکم لا مع غیرکم؛ | |||
* قوله (ع): آمنت بکم و تولّیت آخرکم بما تولّیت به أوّلکم؛ | |||
* قوله (ع): و برئت إلی الله عزّ و جلّ من أعدائکم و من الجبت والطّاغوت و الشّیاطین؛ | |||
* قوله (ع): فثبّتنی الله أبدا ما حییت علی موالاتکم و محبّتکم و دینکم و وفّقنی لطاعتکم؛ | |||
* قوله (ع): و رزقنی شفاعتکم؛ | |||
* قوله (ع): و جعلنی من خیار موالیکم التّابعین لما دعوتم إلیه؛ | |||
* قوله (ع): و جعلنی ممّن یقتصّ آثارکم و یسلک سبیلکم و یهتدی بهداکم و یحشر فی زمرتکم؛ | |||
* قوله (ع): بأبی أنتم و أمّی و نفسی و أهلی و مالی من أراد الله بدأ بکم؛ | |||
* قوله (ع): و من وحّده قبل عنکم؛ | |||
* قوله (ع): و من قصده توجّه بکم؛ | |||
* قوله (ع): موالیّ لا أحصی ثنائکم و لا أبلغ من المدح کنهکم و من الوصف قدرکم؛ | |||
* قوله (ع): و أنتم نور الأخیار و هداة الأبرار و حجج الجبّار؛ | |||
* قوله (ع): بکم فتح الله و بکم یختم و بکم ینزّل الغیث و بکم یمسک السّمآء أن تقع علی الأرض إلّا بإذنه؛ | |||
* قوله (ع): و بکم ینفّس الهم و یکشف الضر؛ | |||
* قوله (ع): و عندکم ما نزلت به رسله؛ | |||
* قوله (ع): و هبطت به ملائکته؛ | |||
* قوله (ع): و إلی جدّکم بعث الرّوح الأمین؛ | |||
* قوله (ع): آتاکم الله ما لم یؤت أحدا من العالمین؛ | |||
* قوله (ع): طأطأ کلّ شریف لشرفکم؛ | |||
* قوله (ع): و بخع کلّ متکبّر لطاعتکم و خضع کلّ جبّار لفضلکم؛ | |||
* قوله (ع): وذلّ کلّ شیء لکم؛ | |||
* قوله (ع): و أشرقت الأرض بنورکم و فاز الفائزون بولایتکم بکم یسلک إلی الرّضوان و علی من جحد ولایتکم غضب الرّحمن؛ | |||
* قوله (ع): بأبی أنتم و أمّی و نفسی و أهلی و مالی ذکرکم فی الذّاکرین؛ | |||
* قوله (ع): و أسمآؤکم فی الأسماء و أجسادکم فی الأجساد و أرواحکم فی الأرواح و أنفسکم فی النّفوس؛ | |||
* قوله (ع): و آثارکم فی الآثار و قبورکم فی القبور؛ | |||
* قوله (ع): فما أحلی أسمآئکم؛ | |||
* قوله (ع): و أکرم أنفسکم؛ | |||
* قوله (ع): و أعظم شأنکم و أجلّ خطرکم؛ | |||
* قوله (ع): و أوفی عهدکم و أصدق وعدکم؛ | |||
* قوله (ع): کلامکم نور؛ | |||
* قوله (ع): و أمرکم رشد؛ | |||
* قوله (ع): و وصیّتکم التّقوی؛ | |||
* قوله (ع): و فعلکم الخیر؛ | |||
* قوله (ع): و عادتکم الإحسان؛ | |||
* قوله (ع): و سجیّتکم الکرم؛ | |||
* قوله (ع): و شأنکم الحق و الصّدق و الرّفق؛ | |||
* قوله (ع): و قولکم حکم و حتم؛ | |||
* قوله (ع): و رأیکم علم و حلم و حزم؛ | |||
* قوله (ع): إن ذکر الخیر کنتم أوّله و أصله و فرعه و معدنه و مأواه و منتهاه؛ | |||
* قوله (ع): بأبی أنتم و أمّی و نفسی کیف أصف حسن ثنائکم؛ | |||
* قوله (ع): و أحصی جمیل بلائکم؛ | |||
* قوله (ع): و بکم أخرجنا الله من الذّل و فرّج عنّا غمرات الکروب؛ | |||
* قوله (ع): و أنقذنا من شفا جرف الهلکات و من النّار؛ | |||
* قوله (ع): بأبی أنتم و أمّی و نفسی بموالاتکم علّمنا الله معالم دیننا؛ | |||
* قوله (ع): و أصلح ما کان فسد من دنیانا؛ | |||
* قوله (ع): و بموالاتکم تمّت الکلمة؛ | |||
* قوله (ع): و عظمت النّعمة؛ | |||
* قوله (ع): و ائتلفت الفرقة؛ | |||
* قوله (ع): و بموالاتکم تقبل الطّاعة المفترضة؛ | |||
* قوله (ع): و لکم المودّة الواجبة؛ | |||
* قوله (ع): و الدّرجات الرّفیعة؛ | |||
* قوله (ع): و المقام المحمود؛ | |||
* قوله (ع): و المکان المعلوم عند الله عزّ و جلّ؛ | |||
* قوله (ع): و الجاه العظیم و الشّان الکبیر؛ | |||
* قوله (ع): و الشّفاعة المقبولة؛ | |||
* قوله (ع): ربّنا آمنّا بما أنزلت و اتّبعنا الرّسول فاکتبنا مع الشّاهدین؛ | |||
* قوله (ع): ربّنا لا تزغ قلوبنا بعد إذ هدیتنا و هب لنا من لدنک رحمة إنّک أنت الوهّاب؛ | |||
* قوله (ع): سبحان ربّنا إن کان وعد ربّنا لمفعولا؛ | |||
* قوله (ع): یا ولیَّ الله إنّ بینی و بین الله عزّ و جلّ ذنوبا لا یأتی علیها إلّا رضاکم؛ | |||
* قوله (ع): فبحقّ من ائتمنکم علی سرّه و استرعاکم أمر خلقه و قرن طاعتکم بطاعته؛ | |||
* قوله (ع): لمّا استوهبتم ذنوبی و کنتم شفعائی؛ | |||
* قوله (ع): فإنّی لکم مطیع؛ | |||
* قوله (ع): من أطاعکم فقد أطاع الله و من عصاکم فقد عصی الله و من أحبّکم فقد أحبّ الله و من أبغضکم فقد أبغض الله؛ | |||
* قوله (ع): الّلهمّ إنّی لو وجدت شفعاء أقرب إلیک من محمّد و أهل بیته الأخیار الأئمّة الأبرار؛ | |||
* قوله (ع): لجعلتهم شفعائی؛ | |||
* قوله (ع): فبحقّهم الّذی أوجبت لهم علیک؛ | |||
* قوله (ع): أسئلک أن تدخلنی فی جملة العارفین بهم و بحقّهم؛ | |||
* قوله (ع): و فی زمرة المرحومین بشفاعتهم؛ | |||
* قوله (ع): إنّک أرحم الرّاحمین؛ | |||
* قوله (ع): و صلّی الله علی محمّد و آله الطّاهرین؛ | |||
* قوله (ع): و سلّم تسلیما کثیرا؛ | |||
* قوله (ع): و حسبنا الله و نعم الوکیل. | |||
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نسخهٔ کنونی تا ۱۴ ژانویهٔ ۲۰۲۳، ساعت ۰۹:۲۷
هستیشناسی از منطق وحی | |
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زبان | فارسی |
نویسنده | سید حسین همدانی درودآبادی |
مترجم | مصطفی نامور |
موضوع | زیارت جامعهٔ کبیره، امامت و ولایت |
مذهب | شیعه |
ناشر | انتشارات آذینه گل مهر |
محل نشر | تهران، ایران |
سال نشر | ۱۳۹۴ ش |
تعداد صفحه | ۹۲۸ |
شابک | ۹۷۸-۹۶۴-۸۶۰۹-۸۰-۶ |
شماره ملی | ۴۰۱۴۰۰۵ |
هستیشناسی از منطق وحی، ترجمهٔ فارسی کتاب الشموس الطالعة من مشارق الزیارة الجامعة است و به تفسیر فرازهای زیارت جامعهٔ کبیره میپردازد. نویسندهٔ این اثر به زبان عربی سید حسین همدانی درودآبادی و مترجم آن مصطفی نامور است. انتشارات آذینه گل مهر نشر این کتاب را به عهده داشته است.
دربارهٔ کتاب
در این کتاب، اسرار و معانی عرفانی زیارت جامعهٔ کبیره تشریح و تبیین شده است. نویسنده در ابتدای کتاب به بیان مطالبی پیرامون زیارت، دوستی اهلبیت (ع)، ادب زیارت، حقیقت زیارت، تفسیرعرفانی طهارت و غسل زیارت، حکمت ذکر تکبیر قبل از زیارت و حکمت ایستادن بعد از سی تکبیر میپردازد و در ادامه فقرات مختلف این زیارت را شرح میدهد.
فهرست کتاب
- مقدمه؛
- شرح حال مختصری از مؤلف؛
- مقدمهٔ مؤلف در حمد و ستایش حضرت حق؛
- مقدمه در اینکه الفاظ ظرف معانی واقعی میباشند؛
- آداب زیارت؛
- فلسفهٔ تکبیرهای مقدم بر زیارت؛
- حکمت ایستادن بعد از سی تکبیر؛
- مقدمه و پیشگفتار اول مترجم؛
- مقدمه و پیشگفتار دوم مترجم؛
- مرتبهٔ انسان کامل؛
- تعریف انسان کامل به وجهی دیگر؛
- تعریفی دیگر از انسان کامل؛
- خطبهٔ توحیدیه حضرت امیر (ع)؛
- قوله (ع): السّلام علیکم؛
- قوله (ع): یا أهل بیت النّبوّة؛
- قوله (ع): و موضع الرّسالة؛
- قوله (ع): و مختلف الملائکة؛
- قوله (ع): و مهبط الوحی؛
- قوله (ع): و معدن الرّحمة؛
- قوله (ع): و خزّان العلم؛
- قوله (ع): و منتهى الحلم؛
- قوله (ع): و أصول الکرم؛
- قوله (ع): و قادة الأمم؛
- قوله (ع): و أولیاء النّعم؛
- قوله (ع): و عناصر الأبرار؛
- قوله (ع): و دعائم الأخیار؛
- قوله (ع): و ساسة العباد و أرکان البلاد؛
- قوله (ع): و أبواب الإیمان؛
- قوله (ع): و أمناء الرّحمن و سلالة النّبیّین؛
- قوله (ع): و صفوة المرسلین و عترة خیرة ربّ العالمین و رحمة الله و برکاته؛
- قوله (ع): السّلام علی أئمّة الهدی؛
- قوله (ع): و مصابیح الدّجی؛
- قوله (ع): و أعلام التّقی؛
- قوله (ع): و ذوی النّهی؛
- قوله (ع): و أولی الحجی و کهف الوری و ورثة الأنبیاء و المثل الأعلی
و الدّعوة الحسنی؛
- قوله (ع): و حجج الله علی أهل الدّنیا و الآخرة و الأولی و رحمة الله و برکاته؛
- قوله (ع): السّلام علی محآلّ معرفة الله؛
- قوله (ع): و مساکن برکة الله؛
- قوله (ع): و معادن حکمة الله؛
- قوله (ع): و حفظة سرّ الله؛
- قوله (ع): و حملة کتاب الله؛
- قوله (ع): و أوصیآء نبی الله؛
- قوله (ع): و ذرّیّة رسول الله صلّی الله علیه و آله و رحمة الله و برکاته؛
- قوله (ع): السّلام علی الدّعاة إلی الله و الأدلّاء علی مرضات الله؛
- قوله (ع): و المستقرّین فی أمر الله؛
- قوله (ع): و التّامّین فی محبّة الله؛
- قوله (ع): و المخلصین فی توحید الله؛
- قوله (ع): و المظهرین لأمر الله و نهیه و عباده المکرمین الّذین لا یسبقونه بالقول و هم بأمره یعملون و رحمة الله و برکاته؛
- قوله (ع): السّلام علی الأئمّة الدّعاة و القادة الهداة و السّادة الولاة؛
- قوله (ع): و الذّادة الحماة و أهل الذّکر؛
- قوله (ع): و أولی الأمر و بقیّة الله و خیرته؛
- قوله (ع): و حزبه و عیبة علمه و حجّته؛
- قوله (ع): و صراطه و نوره و برهانه و رحمة الله و برکاته؛
- قوله (ع): أشهد أن لا إله إلّا الله وحده لا شریک له؛
- قوله (ع): کما شهد الله لنفسه و شهدت له ملائکته و أولوا العلم من خلقه لا إله إلّا هو العزیز الحکیم؛
- قوله (ع): و أشهد أنّ محمّدا عبده المنتجب و رسوله المرتضی أرسله بالهدی و دین الحق لیظهره علی الدّین کلّه و لو کره المشرکون؛
- قوله (ع): و أشهد أنّکم الأئمّة الرّاشدون؛
- قوله (ع): المهدیّون؛
- قوله (ع): المعصومون؛
- قوله (ع): المکرّمون؛
- قوله (ع): المقرّبون؛
- قوله (ع): المتّقون الصّادقون المصطفون؛
- قوله (ع): المطیعون لله؛
- قوله (ع): القوّامون بأمره؛
- قوله (ع): العاملون بإرادته؛
- قوله (ع): الفآئزون بکرامته؛
- قوله (ع): اصطفاکم بعلمه و ارتضاکم لغیبه و اختارکم لسرّه؛
- قوله (ع): و اجتباکم بقدرته و أعزّکم بهداه؛
- قوله (ع): و خصّکم ببرهانه؛
- قوله (ع): و انتجبکم لنوره؛
- قوله (ع): و أیّدکم بروحه؛
- قوله (ع): و رضیکم خلفآء فی أرضه و حججا علی بریّته و أنصارا لدینه و حفظة لسرّه و خزنة لعلمه و مستودعا لحکمته و تراجمة لوحیه و أرکانا لتوحیده و شهدآء علی خلقه و أعلاما لعباده عصمکم الله من الزّلل و آمنکم من الفتن و طهّرکم من الدّنس و أذهب عنکم الرّجس و طهّرکم تطهیرا؛
- قوله (ع): فعظّمتم جلاله و أکبرتم شأنه و مجّدتم کرمه و أدمتم ذکره و وکّدتم میثاقه و أحکمتم عقد طاعته و نصحتم له فی السّرّ و العلانیة و دعوتم إلی سبیله بالحکمة و الموعظة الحسنة؛
- قوله (ع): و بذلتم أنفسکم فی مرضاته و صبرتم علی ما أصابکم فی جنبه؛
- قوله (ع): و أقمتم الصّلوة و آتیتم الزّکوة و أمرتم بالمعروف و نهیتم عن المنکر و جاهدتم فی الله حقّ جهاده؛
- قوله (ع): حتّی أعلنتم دعوته و بیّنتم فرآئضه و أقمتم حدوده و نشرتم شرایع أحکامه و سننتم سنّته؛
- قوله (ع): و صرتم فی ذلک منه إلی الرّضا؛
- قوله (ع): و سلّمتم له القضآء؛
- قوله (ع): و صدّقتم من رسله من مضی؛
- قوله (ع): فالرّاغب عنکم مارق و اللّازم لکم لاحق و المقصّر فی حقّکم زاهق؛
- قوله (ع): و الحقّ معکم و فیکم و منکم و إلیکم و أنتم أهله و معدنه؛
- قوله (ع): و میراث النّبوّة عندکم و إیاب الخلق إلیکم و حسابهم علیکم؛
- قوله (ع): و فصل الخطاب عندکم؛
- قوله (ع): و آیات الله لدیکم؛
- قوله (ع): و عزآئمه فیکم و نوره و برهانه عندکم؛
- قوله (ع): و أمره إلیکم؛
- قوله (ع): من والاکم فقد وال الله و من عاداکم فقد عاد الله؛
- قوله (ع): و من أحبّکم فقد أحبّ الله و من أبغضکم فقد أبغض الله؛
- قوله (ع): و من اعتصم بکم فقد اعتصم بالله؛
- قوله (ع): أنتم الصّراط الأقوم؛
- قوله (ع): و شهداء دار الفناء؛
- قوله (ع): و شفعاء دار البقاء؛
- قوله (ع): و الرّحمة الموصولة و الآیة المخزونة؛
- قوله (ع): و الأمانة المحفوظة؛
- قوله (ع): و الباب المبتلی به النّاس من أتاکم نجی و من لم یأتکم هلک؛
- قوله (ع): إلی الله تدعون و علیه تدلّون و به تؤمنون و له تسلّمون و بأمره تعملون و إلی سبیله ترشدون و بقوله تحکمون؛
- قوله (ع): سعد من والاکم و هلک من عاداکم؛
- قوله (ع): و خاب من جحدکم و ضلّ من فارقکم و فاز من تمسّک بکم؛
- قوله (ع): و أمن من لجأ إلیکم و سلم من صدّقکم؛
- قوله (ع): و هدی من اعتصم بکم من اتّبعکم فالجنّة مأواه و من خالفکم فالنّار مثواه و من جحدکم کافر؛
- قوله (ع): و من حاربکم مشرک؛
- قوله (ع): و من ردّ علیکم فی أسفل درک من الجحیم؛
- قوله (ع): أشهد أنّ هذا سابق لکم فیما مضی وجار لکم فیما بقی؛
- قوله (ع): و أنّ أرواحکم و نورکم و طینتکم واحدة؛
- قوله (ع): طابت و طهرت بعضها من بعض؛
- قوله (ع): خلقکم الله أنوارا فجعلکم بعرشه محدقین؛
- قوله (ع): حتّی منّ علینا بکم؛
- قوله (ع): فجعلکم فی بیوت أذن الله أن ترفع و یذکر فیها اسمه؛
- قوله (ع): و جعل صلواتنا علیکم و ما خصّنا به من ولایتکم طیبا لخلقنا و طهارة لأنفسنا و تزکیة لنا و کفّارة لذنوبنا؛
- قوله (ع): فکنّا عنده مسلّمین بفضلکم؛
- قوله (ع): و معروفین بتصدیقنا إیّاکم؛
- قوله (ع): فبلغ الله بکم أشرف محلّ المکرّمین و أعلی منازل المقرّبین و أرفع درجات المرسلین حیث لا یلحقه لاحق و لا یفوقه فآئق و لا یسبقه سابق و لا یطمع فی إدراکه طامع؛
- قوله (ع): حتّی لا یبقی ملک مقرّب و لا نبّی مرسل و لا صدّیق و لا شهید و لا عالم و لا جاهل؛
- قوله (ع): بأبی أنتم و أمّی و أهلی و مالی و أسرتی؛
- قوله (ع): أشهد الله و أشهدکم أنّی مؤمن بکم و بما آمنتم به کافر بعدوّکم و بما کفرتم به؛
- قوله (ع): مستبصر بشأنکم و بضلالة من خالفکم موال لکم و لأولیآئکم مبغض لأعدآئکم و معاد لهم؛
- قوله (ع): سلم لمن سالمکم و حرب لمن حاربکم؛
- قوله (ع): محقّق لما حقّقتم مبطل لما أبطلتم مطیع لکم عارف بحقّکم مقرّ بفضلکم محتمل لعلمکم؛
- قوله (ع): محتجب بذمّتکم؛
- قوله (ع): معترف بکم؛
- قوله (ع): مؤمن بإیابکم مصدّق برجعتکم؛
- قوله (ع): منتظر لأمرکم مرتقب لدولتکم؛
- قوله (ع): آخذ بقولکم؛
- قوله (ع): عامل بأمرکم؛
- قوله (ع): مستجیر بکم؛
- قوله (ع): زآئر لکم لائذ عآئذ بقبورکم مستشفع إلی الله عزّ و جلّ بکم؛
- قوله (ع): و متقرّب بکم إلیه؛
- قوله (ع): و مقدّمکم أمام طلبتی و حوائجی و إرادتی فی کلّ احوالی و أموری؛
- قوله (ع): مؤمن بسرّکم و علانیتکم و شاهدکم و غائبکم و أوّلکم و آخرکم؛
- قوله (ع): و مفوّض فی ذلک کلّه إلیکم و مسلّم فیه معکم؛
- قوله (ع): و قلبی لکم مسلّم؛
- قوله (ع): و رأیی لکم تبع؛
- قوله (ع): و نصرتی لکم معدّة؛
- قوله (ع): حتّی یحیی الله تعالی دینه بکم و یردّکم فی أیّامه و یظهرکم لعدله و یمکّنکم فی أرضه؛
- قوله (ع): فمعکم معکم لا مع غیرکم؛
- قوله (ع): آمنت بکم و تولّیت آخرکم بما تولّیت به أوّلکم؛
- قوله (ع): و برئت إلی الله عزّ و جلّ من أعدائکم و من الجبت والطّاغوت و الشّیاطین؛
- قوله (ع): فثبّتنی الله أبدا ما حییت علی موالاتکم و محبّتکم و دینکم و وفّقنی لطاعتکم؛
- قوله (ع): و رزقنی شفاعتکم؛
- قوله (ع): و جعلنی من خیار موالیکم التّابعین لما دعوتم إلیه؛
- قوله (ع): و جعلنی ممّن یقتصّ آثارکم و یسلک سبیلکم و یهتدی بهداکم و یحشر فی زمرتکم؛
- قوله (ع): بأبی أنتم و أمّی و نفسی و أهلی و مالی من أراد الله بدأ بکم؛
- قوله (ع): و من وحّده قبل عنکم؛
- قوله (ع): و من قصده توجّه بکم؛
- قوله (ع): موالیّ لا أحصی ثنائکم و لا أبلغ من المدح کنهکم و من الوصف قدرکم؛
- قوله (ع): و أنتم نور الأخیار و هداة الأبرار و حجج الجبّار؛
- قوله (ع): بکم فتح الله و بکم یختم و بکم ینزّل الغیث و بکم یمسک السّمآء أن تقع علی الأرض إلّا بإذنه؛
- قوله (ع): و بکم ینفّس الهم و یکشف الضر؛
- قوله (ع): و عندکم ما نزلت به رسله؛
- قوله (ع): و هبطت به ملائکته؛
- قوله (ع): و إلی جدّکم بعث الرّوح الأمین؛
- قوله (ع): آتاکم الله ما لم یؤت أحدا من العالمین؛
- قوله (ع): طأطأ کلّ شریف لشرفکم؛
- قوله (ع): و بخع کلّ متکبّر لطاعتکم و خضع کلّ جبّار لفضلکم؛
- قوله (ع): وذلّ کلّ شیء لکم؛
- قوله (ع): و أشرقت الأرض بنورکم و فاز الفائزون بولایتکم بکم یسلک إلی الرّضوان و علی من جحد ولایتکم غضب الرّحمن؛
- قوله (ع): بأبی أنتم و أمّی و نفسی و أهلی و مالی ذکرکم فی الذّاکرین؛
- قوله (ع): و أسمآؤکم فی الأسماء و أجسادکم فی الأجساد و أرواحکم فی الأرواح و أنفسکم فی النّفوس؛
- قوله (ع): و آثارکم فی الآثار و قبورکم فی القبور؛
- قوله (ع): فما أحلی أسمآئکم؛
- قوله (ع): و أکرم أنفسکم؛
- قوله (ع): و أعظم شأنکم و أجلّ خطرکم؛
- قوله (ع): و أوفی عهدکم و أصدق وعدکم؛
- قوله (ع): کلامکم نور؛
- قوله (ع): و أمرکم رشد؛
- قوله (ع): و وصیّتکم التّقوی؛
- قوله (ع): و فعلکم الخیر؛
- قوله (ع): و عادتکم الإحسان؛
- قوله (ع): و سجیّتکم الکرم؛
- قوله (ع): و شأنکم الحق و الصّدق و الرّفق؛
- قوله (ع): و قولکم حکم و حتم؛
- قوله (ع): و رأیکم علم و حلم و حزم؛
- قوله (ع): إن ذکر الخیر کنتم أوّله و أصله و فرعه و معدنه و مأواه و منتهاه؛
- قوله (ع): بأبی أنتم و أمّی و نفسی کیف أصف حسن ثنائکم؛
- قوله (ع): و أحصی جمیل بلائکم؛
- قوله (ع): و بکم أخرجنا الله من الذّل و فرّج عنّا غمرات الکروب؛
- قوله (ع): و أنقذنا من شفا جرف الهلکات و من النّار؛
- قوله (ع): بأبی أنتم و أمّی و نفسی بموالاتکم علّمنا الله معالم دیننا؛
- قوله (ع): و أصلح ما کان فسد من دنیانا؛
- قوله (ع): و بموالاتکم تمّت الکلمة؛
- قوله (ع): و عظمت النّعمة؛
- قوله (ع): و ائتلفت الفرقة؛
- قوله (ع): و بموالاتکم تقبل الطّاعة المفترضة؛
- قوله (ع): و لکم المودّة الواجبة؛
- قوله (ع): و الدّرجات الرّفیعة؛
- قوله (ع): و المقام المحمود؛
- قوله (ع): و المکان المعلوم عند الله عزّ و جلّ؛
- قوله (ع): و الجاه العظیم و الشّان الکبیر؛
- قوله (ع): و الشّفاعة المقبولة؛
- قوله (ع): ربّنا آمنّا بما أنزلت و اتّبعنا الرّسول فاکتبنا مع الشّاهدین؛
- قوله (ع): ربّنا لا تزغ قلوبنا بعد إذ هدیتنا و هب لنا من لدنک رحمة إنّک أنت الوهّاب؛
- قوله (ع): سبحان ربّنا إن کان وعد ربّنا لمفعولا؛
- قوله (ع): یا ولیَّ الله إنّ بینی و بین الله عزّ و جلّ ذنوبا لا یأتی علیها إلّا رضاکم؛
- قوله (ع): فبحقّ من ائتمنکم علی سرّه و استرعاکم أمر خلقه و قرن طاعتکم بطاعته؛
- قوله (ع): لمّا استوهبتم ذنوبی و کنتم شفعائی؛
- قوله (ع): فإنّی لکم مطیع؛
- قوله (ع): من أطاعکم فقد أطاع الله و من عصاکم فقد عصی الله و من أحبّکم فقد أحبّ الله و من أبغضکم فقد أبغض الله؛
- قوله (ع): الّلهمّ إنّی لو وجدت شفعاء أقرب إلیک من محمّد و أهل بیته الأخیار الأئمّة الأبرار؛
- قوله (ع): لجعلتهم شفعائی؛
- قوله (ع): فبحقّهم الّذی أوجبت لهم علیک؛
- قوله (ع): أسئلک أن تدخلنی فی جملة العارفین بهم و بحقّهم؛
- قوله (ع): و فی زمرة المرحومین بشفاعتهم؛
- قوله (ع): إنّک أرحم الرّاحمین؛
- قوله (ع): و صلّی الله علی محمّد و آله الطّاهرین؛
- قوله (ع): و سلّم تسلیما کثیرا؛
- قوله (ع): و حسبنا الله و نعم الوکیل.
دربارهٔ پدیدآورندگان
سید حسین همدانی درودآبادی (پدیدآورنده) |
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آیتالله سید حسین همدانی درودآبادی (متولد ۱۲۸۰ ق، همدان)، تحصیلات حوزوی خود را نزد اساتیدی همچون حضرات آیات: سید محمد حسن حسینی شیرازی، حبیبالله رشتی، حسین قلی همدانی و حسین خلیلی به اتمام رساند. از جمله فعالیتهای علمی او تألیف آثاری با موضوعات علمی و اعتقادی است. «رسالة نسک التلویث فی جواب أهل التثلیث»، «القسطاس المستقیم و عصارة الثقلین»، «عصارة الثقلین فی حقیقة النشأتین»، «التحفة الرضویة الشیعة المرتضویة»، «الشموس الطالعة من مشارق الزیارة الجامعة» و «ملخص الأصول فی دین آل الرسول» برخی از آثار او است.[۱] |
مصطفی نامور (مترجم) |
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