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خط ۱: |
خط ۱: |
| | == مقدمه == |
| | == معناشناسی == |
| | == [[اسماء و صفات]] [[قرآن]] == |
| | == جایگاه و [[عظمت]] قرآن == |
| | == [[تاریخ قرآن]] == |
| | === [[جمع قرآن]] === |
| | ==== جمع قرآن در [[زمان رسول خدا]]{{صل}} ==== |
| | ==== [[مصحف امام علی]]{{ع}} ==== |
| | ==== [[مصحف]] [[صحابه]] ==== |
| | ==== یکسانسازی [[مصحفها]] ==== |
| | === [[کتابت قرآن]] === |
| | ==== اعرابگذاری قرآن ==== |
| | === [[سورههای قرآن]] === |
| | == [[علوم قرآن]] == |
| | === [[نزول قرآن]] === |
| | ==== [[نزول]] دفعی و تدریجی ==== |
| | ==== [[اسباب نزول]] قرآن ==== |
| | ==== [[سورههای مکی]] و [[مدنی]] ==== |
| | ==== چگونگی ثبت و ضبط [[آیات]] ==== |
| | ==== [[ترتیب نزول]] [[سورهها]] ==== |
| | === [[وحیانی]] بودن قرآن === |
| | ===[[تحریفناپذیری قرآن]] === |
| | === [[جامعیت قرآن]] === |
| | === [[جاودانگی]] و [[جهانشمولی]] قرآن === |
| | === [[انسجام]] ساختاری قرآن === |
| | === انسجام محتوایی قرآن === |
| | === [[محکم و متشابه]] === |
| | === [[ظاهر و باطن قرآن]] === |
| | === [[نسخ]] === |
| | === [[علوم]] مرتبط با قرآن === |
| | == [[تلاوت قرآن]] == |
| | === [[قرائات قرآن]] === |
| | === [[روایات]] [[سبعة احرف]] === |
| | == [[ویژگیهای قرآن]] == |
| | == [[اهداف قرآن]] == |
| | == مراتب قرآن == |
| | == تبیین [[ظاهر قرآن]] == |
| | == [[تفسیر قرآن]] == |
| | === [[ضرورت]] وجود [[مفسر قرآن]] === |
| | === ویژگی مفسر قرآن === |
| | === [[تفسیر]] [[پیامبر]]{{صل}} === |
| | === تفسیر قرآن پس از [[پیامبر خاتم]] === |
| | === [[تفسیر اهل بیت]]{{ع}} === |
| | === [[تفسیر صحابه]] === |
| | === [[تفسیر تابعین]] === |
| | === تفسیر از [[عهد]] تدوین تا معاصر === |
| | === تفسیر در دوران معاصر === |
| | === [[وظیفه]] تفسیر قرآن ([[وظایف]] [[نایب امام]]) === |
| | === [[روشهای تفسیری]] === |
| | ==== [[تفسیر قرآن به قرآن]] ==== |
| | ==== [[تفسیر روایی]] ==== |
| | ===== روایات مجعول ===== |
| | ===== [[اسرائیلیات]] ===== |
| | ==== تفسیر [[عقلی]] ==== |
| | === [[تأویل]] === |
| | === [[جری و تطبیق]] === |
| | == امکان [[فهم قرآن]] == |
| | === موانع و آسیبهای فهم قرآن === |
| | == [[تدبر در قرآن]] == |
| | == [[ارتباط]] ناگسستنی [[قرآن و عترت]] == |
| | == رابطه قرآن با [[فطرت]] == |
| | ==[[اعجاز قرآن]] == |
| | === [[اعجاز علمی قرآن]] === |
| | == [[زبان قرآن]] == |
| | == [[تحدی قرآن]] == |
| | == [[عصمت قرآن]] == |
| | == قرآن در [[آخرالزمان]] == |
| | == [[علم معصوم به قرآن]] == |
| | == [[مستشرقان]] و قرآن == |
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| | ==موسوعة الأحاديث العلوية== |
| | {{فهرست اثر}} |
| | # فضائل القرآن |
| | # القرآن (کتاب الله) |
| | # قراءة القرآن |
| | # الفضائل و الخواص لبعض الآيات و السور |
| | # قرائته و تفسيره و قوله{{ع}} لبعض الآيات و السور |
| | {{پایان فهرست اثر}} |
| | |
| | ==الحياة ج۲== |
| | {{فهرست اثر}} |
| | * الباب السادس: القرآن |
| | * الفصل ۱: حقيقة القرآن |
| | * الفصل ۲: الطريق الاقوم |
| | * الفصل ۳: الصراط المستقيم |
| | * الفصل ۴: کتاب التوحيد الحق |
| | * الفصل ۵: کتاب الوعد الصدق |
| | * الفصل ۶: کتاب الهداية والنور والرحمة والبصائر |
| | * الفصل ۷: کتاب العقل والتفکير |
| | * الفصل ۸: کتاب الحکمة والعلم |
| | * الفصل ۹: کتاب العمل |
| | * الفصل ۱۰: کتاب التبيان والتفصيل |
| | * الفصل ۱۱: کتاب لا ريب فيه ولا اختلاف |
| | * الفصل ۱۲: کتاب الحب |
| | * أ: الحب الالهي |
| | * ب: الحب الانساني |
| | * الفصل ۱۳: کتاب البشارة والانذار |
| | * الفصل ۱۴: کتاب الدعوة والانطلاق |
| | * الفصل ۱۵: کتاب الصمود والرسالية |
| | * الفصل ۱۶: کتاب العدل والإحسان والبر والتقوي |
| | * الفصل ۱۷: کتاب الخصائل الانسانية |
| | * الفصل ۱۸: کتاب الشفاء والجلاء |
| | * الفصل ۱۹: کتاب الرضا والاطمئنان |
| | * الفصل ۲۰: کتاب التأمل والاستذکار |
| | * أ: ملازمة القرآن |
| | * ب: التدبر القرآني |
| | * ج: فيم التدبر؟ |
| | * الأول: في البدن والنفس |
| | * ۱- التدبر في بدايات تکون الوجود الانساني |
| | * ۲- التدبر في مراحل الوجود الإنساني |
| | * ۳- التدبر في خاتمة هذه الحياة |
| | * ۴- انکشاف الواقع |
| | * الثاني- في عالم الانفس والآفاق |
| | * الثالث ۔ في احوال الامم الغابرة ومصائرهم |
| | * الرابع في اسباب ماحلت بالسابقين من الشدائد والبأساء |
| | * د ۔ حصيلة التغير في المجالات السابقة |
| | * أ: الانابة والرجوع |
| | * ب: الاستغفار |
| | * ج: الدعاء والعبادة |
| | * د: المثابرة والسعي |
| | * الفصل ۲۱: کتاب العبرة والوعي |
| | * الفصل ۲۲: کتاب البشرية عامة |
| | * الفصل ۲۳: کتاب السياسة والولاية |
| | * أ: حکومة الربانيين |
| | * ب: شجب الجبارين |
| | * الفصل ۲۴: کتاب العزة والاعتلاء |
| | * الفصل ۲۵: کتاب البيضة والفتح |
| | * الفصل ۲۶: کتاب السلام |
| | * الفصل ۲۷: کتاب اخبار الماضين والآتين |
| | * الفصل ۲۸: کتاب النقد والتصحيح |
| | * الفصل ۲۹: کتاب الاحکام والنظم الشاملة |
| | * الفصل ۳۰: کتاب الامر بالمعروف والنهي عن المنکر |
| | * الفصل ۳۱: کتاب التنمية والاقتصاد |
| | * الفصل ۳۲: کتاب الاجتهاد والايجابية |
| | * الفصل ۳۳: کتاب الطبيعة ومظاهر الحياة |
| | * الفصل۳۴: کتاب الباطن والملکوت |
| | * الفصل ۳۵: کتاب الفن والابداع |
| | * الفصل۳۶: کتاب التحدي والاعجاز |
| | * الفصل ۳۷: کتاب الخلود |
| | * الفصل ۳۸: کلمة جامعة عن القرآن |
| | * الفصل ۳۹: حرمة القرآن |
| | * أ: فضل القرآن وعظمته |
| | * ب: حافظ القرآن |
| | * ج: حامل القرآن |
| | * د: تالي القرآن |
| | * ه: مستمع القرآن |
| | * و: فضل قراءة القرآن في الصلاة |
| | * الفصل ۴۰: تعليم القرآن وتدارسه |
| | * الفصل ۴۱: کيفية قراءة القرآن |
| | * أ: الأدب الظاهري للقراءة |
| | * ب: الأدب الباطني للقراءة |
| | * ج: القراءة التنبيهية |
| | * د: القراءة الاستذکارية |
| | * الفصل ۴۲: آثار قراءة القرآن |
| | * الفصل ۴۳: اقامة الحروف واضاعة الحدود |
| | * الفصل ۴۴: البلاغ والکمال |
| | * الفصل ۴۵: |
| | * أ: طلب الهداية من غير القرآن ظلال |
| | * ب: لايفسر القرآن بالرأي |
| | * الفصل ۴۶: العلماء بالقرآن |
| | * الفصل ۴۷: صامت معه ناطق |
| | * الفصل ۴۸: حبل ممدود (الثقل الأکبر) |
| | * الفصل ۴۹: ظل وارف |
| | * الفصل ۵۰: حياة في حياة |
| | * تذييلات |
| | * ۱- القرآن والحياة المادية |
| | * ۲- القرآن والحياة الروحية |
| | * ۳- القرآن وساعات الرحيل |
| | * ۴- القرآن ومنازل الکرامة |
| | {{پایان فهرست اثر}} |
| | |
| | ==ح نبوی ج۲== |
| | {{فهرست اثر}} |
| | * الباب السادس القرآن والسنة |
| | * الفصل الأول القرآن |
| | * ۱ / ۱ الحث على التمسك بالقرآن |
| | * ۱ / ۲ القرآن أحسن الحديث |
| | * ۱ / ۳ القرآن شفاء للداء |
| | * ۱ / ۴ القرآن غنى لا غنى دونه |
| | * ۱ / ۵ ما في القرآن من العلوم والأخبار |
| | * ۱ / ۶ تعلم القرآن |
| | * ۱ / ۷ ثواب تعليم القرآن |
| | * ۱ / ۸ الحث على حفظ القرآن |
| | * ۱ / ۹ الحث على استذكار القرآن |
| | * ۱ / ۱۰ جزاء حملة القرآن |
| | * ۱ / ۱۱ ما ينبغي لحامل القرآن |
| | * ۱ / ۱۲ ما لا ينبغي لحامل القرآن |
| | * ۱ / ۱۳ الحث على تلاوة القرآن |
| | * ۱ / ۱۴ قراءة القرآن بالصوت الحسن |
| | * ۱ / ۱۵ حق التلاوة |
| | * ۱ / ۱۶ آداب القراءة |
| | * ۱ / ۱۷ محظورات التلاوة |
| | * ۱ / ۱۸ القراء الفجرة |
| | * ۱ / ۱۹ أصناف القراء |
| | * ۱ / ۲۰ استماع القرآن |
| | * ۱ / ۲۱ للقرآن ظهر وبطن |
| | * ۱ / ۲۲ التحذير من التفسير بالرأي |
| | * ۱ / ۲۳ أصناف آيات القرآن |
| | * ۱ / ۲۴ وجوه القرآن |
| | * ۱ / ۲۵ ام القرآن |
| | * ۱ / ۲۶ أعظم آية |
| | * ۱ / ۲۷ أعدل آية |
| | * ۱ / ۲۸ أخوف آية |
| | * ۱ / ۲۹ أرجى آية |
| | * ۱ / ۳۰ النوادر |
| | {{پایان فهرست اثر}} |
| | |
| | ==الدليل التصنيفي== |
| | {{فهرست اثر}} |
| | ===اجمالي=== |
| | * ۱:۱۳ علوم القرآن |
| | * ۱:۱:۱۳ الوحي |
| | * ۲:۱:۱۳ نزول القرآن |
| | * ۳:۱:۱۳ حفظ القرآن وجمعه وترتيبه |
| | * ۴:۱:۱۳ أسباب النزول (انظر ما ورد في أسباب النزول وترتيب المصحف) |
| | * ۵:۱:۱۳ الأحرف السبعة والقراءات والقراء |
| | * ۶:۱:۱۳ اعجاز القرآن |
| | * ۷:۱:۱۳ الناسخ والمنسوخ |
| | * ۸:۱:۱۳ تعلم القرآن وتعلميه |
| | * ۹:۱:۱۳ فقه القرآن |
| | * ۱۰:۱:۱۳ تفسير القرآن |
| | * ۱۲:۱:۱۳ المأثور في تفسير آي القرآن بترتيب المصحف |
| | * ۱۳:۱:۱۳ ما ورد في أسباب النزول بترتيب المصحف |
| | * ۱۴:۱:۱۳ ما ورد في القرعات بترتيب المصحف |
| | * ۱۵:۱:۱۳ ما ورد في الناسخ والمنسوخ بترتيب المصحف |
| | ===تفصيلي=== |
| | * ۱:۱۳ علوم القرآن |
| | * ۱:۱:۱۳ الوحي |
| | * ۱:۱:۱:۱۳ إرهاصات النبوة (انظر دليل السيرة) |
| | * ۲:۱:۱:۱۳ بدء الوحي (انظر دليل السيرة) |
| | * ۳:۱:۱:۱۳ صور الوحي |
| | * ۱:۳:۱:۱:۱۳ تكليم الله من وراء حجاب |
| | * ۲:۳:۱:۱:۱۳ الوحي في المنام |
| | * ۳:۳:۱:۱:۱۳ النفث في الروع |
| | * ۴:۳:۱:۱:۱۳ الوحي عن طريق جبريل |
| | * ۴:۳:۱:۱:۱۳:۱ جبريل على صورته الحقيقية |
| | * ۴:۳:۱:۱:۱۳:۲ جبريل على صورة رجل |
| | * ۴:۳:۱:۱:۱۳:۳ مجيء جبريل كصلصلة الجرس |
| | * ۴:۱:۱:۱۳ أوقات نزول الوحي |
| | * ۱:۴:۱:۱:۱۳ في المنام |
| | * ۴:۱:۱:۱۳:۲ في السفر |
| | * ۳:۴:۱:۱:۱۳ في الجهاد |
| | * ۴:۴:۱:۱:۱۳ في رمضان |
| | * ۵:۴:۱:۱:۱۳ في الليل |
| | * ۶:۴:۱:۱:۱۳ في النهار |
| | * ۷:۶:۱:۱:۱۳ في الصيف |
| | * ۴:۱:۱:۱۳:۸ في الشتاء |
| | * ۴:۱:۱:۱۳ :۹ في أوقات اخري |
| | * ۵:۱:۱:۱۳ آثار الوحي |
| | * ۱:۵:۱:۱:۱۳ آثار الوحي على النبي (ص) |
| | * ۲:۵:۱:۱:۱۳ آثار الوحي على الصحابة |
| | * ۳:۵:۱:۱:۱۳ آثار الوحي على الناقة |
| | * ۶:۱:۱:۱۳ كتاب الوحي (انظر جمع القرآن) |
| | * ۱:۱۳:۲ نزول القرآن |
| | * ۱:۲:۱:۱۳ نزول القرآن إلى السماء الدنيا |
| | * ۲:۲:۱:۱۳ أول ما نزل |
| | * ۳:۲:۱:۱۳ آخر ما نزل |
| | * ۴:۲:۱:۱۳ نزول القرآن منجما |
| | * ۵:۲:۱:۱۳ أماكن نزول القرآن |
| | * ۱:۵:۲:۱:۱۳ نزول القرآن بمكة المكرمة |
| | * ۲:۵:۲:۱:۱۳ نزول القرآن بالمدينة المنورة |
| | * ۳:۵:۲:۱:۱۳ نزول القرآن في طريق الهجرة |
| | * ۴:۵:۲:۱:۱۳ نزول القرآن في تبوك |
| | * ۵:۵:۲:۱:۱۳ نزول القرآن في الطائف |
| | * ۶:۵:۱:۱:۱۳ نزول القرآن في أماكن أخري |
| | * ۶:۲:۱:۱۳ ما نزل موافقا لكلام بعض الصحابة |
| | * ۷:۲:۱:۱۳ ما نزل مشيعا |
| | * ۸:۲:۱:۱۳ ما نزل مفردا |
| | * ۹:۲:۱:۱۳ كمية النازل |
| | * ۱۰:۲:۱:۱۳ أسماء من نزل فيهم القرآن (انظر أسباب النزول) |
| | * ۱۱:۲:۱:۱۳ مدة نزول القرآن |
| | * ۳:۱:۱۳ حفظ القرآن وجمعة وترتيبه |
| | * ۱:۳:۱:۱۳ حفظ القرآن في الصدور |
| | * ۱:۱:۳:۱:۱۳ حفظ النبي صلى الله عليه وسلم للقرآن |
| | * ۲:۱:۳:۱:۱۳ تلاوة الرسول القرآن على الناس |
| | * ۳:۱:۳:۱:۱۳ حفظ الصحابة للقرآن |
| | * ۴:۱:۳:۱:۱۳ حفظة القرآن من الصحابة |
| | * ۵:۱:۳:۱:۱۳ عرض القرآن ومذاكرته |
| | * ۱:۳:۱:۱۳ حفظ القرآن في السطور |
| | * ۱:۲:۳:۱:۱۳ الأمر بكتابة القرآن |
| | * ۲:۲:۳:۱:۱۳ كتاب الوحي بمكة |
| | * ۳:۲:۳:۱:۱۳ كتاب الوحي بالمدينة |
| | * ۴:۲:۳:۱:۱۳ كتابة الصحابة للقرآن |
| | * ۵:۲:۳:۱:۱۳ أدوات كتابة القرآن ووسائلها |
| | * ۶:۲:۳:۱:۱۳ جمع القرآن في عهد أبي بكر |
| | * ۷:۲:۳:۱:۱۳ جمع القرآن في عهد عثمان |
| | * ۸:۲:۳:۱:۱۳ مصاحف الصحابة |
| | * ۹:۲:۳:۱:۱۳ كتابة القرآن بحرف قريش |
| | * ۳:۳:۱:۱۳ ترتيب القرآن ورسمه |
| | * ۱:۳:۳:۱:۱۳ ترتيب السور والآيات |
| | * ۲:۳:۳:۱:۱۳ تسمية السور |
| | * ۳:۳:۳:۱:۱۳ عدد الآيات والسور |
| | * ۴:۳:۳:۱:۱۳ الرسم العثماني |
| | * ۵:۳:۳:۱:۱۳ نقط المصحف وتشكليه |
| | * ۶:۲:۳:۱:۱۳ أدب كتابة الصحف |
| | * ۷:۳:۳:۱:۱۳ تعشير المصحف وتحزبيه |
| | * ۸:۳:۳:۱:۱۳ مواضع الوقف في القرآن |
| | * ۴:۱:۱۳ أسباب النزول (انظر ما ورد في أسباب النزول وترتيب المصحف) |
| | * ۱:۴:۱:۱۳ فوائد معرفة اسباب النزول |
| | * ۵:۱:۱۳ الأحرف السبعة والقراءات والقراء |
| | * ۱:۵:۱:۱۳ القراءات والقراء (انظر ما ورد في القراءات بترتيب المصحف) |
| | * ۶:۱:۱۳ إعجاز القرآن |
| | * ۱:۶:۱:۱۳ لكل نبي معجزة |
| | * ۲:۶:۱:۱۳ كلام المشركين في القرآن |
| | * ۳:۶:۱:۱۳ أثر سماع القرآن |
| | * ۱:۳:۶:۱:۱۳ قصة إسلام عمر (انظر السيرة) |
| | * ۱:۳:۶:۱:۱۳ استماع زعماء الكفار للقرآن |
| | * ۲:۳:۶:۱:۱۳ الكفار يطلبون معجزات مادية |
| | * ۵:۶:۱:۱۳ معارضة القرآن |
| | * ۶:۶:۱:۱۳ تحدي العرب |
| | * ۷:۶:۱:۱۳ تحدي أهل الكتاب |
| | * ۸:۶:۱:۱۳ المباهلة |
| | * ۹:۶:۱:۱۳ الإعجاز بالإخبار عن الماضي والمستقبل |
| | * ۱:۷:۱:۱۳ الناسخ والمنسوخ |
| | * ۱:۷:۱:۱۳ أهمية العلم به |
| | * ۲:۷:۱:۱۳ أنواع النسخ |
| | * ۱:۲:۷:۱:۱۳ نسخ الحكم دون التلاوة |
| | * ۲:۲:۷:۱:۱۳ نسخ التلاوة دون الحكم |
| | * ۳:۲:۷:۱:۱۳ نسخ الحكم دون التلاوة |
| | * ۳:۷:۱:۱۳ أول ما نسخ من القرآن |
| | * ۴:۷:۱:۱۳ آخر ما نسخ من القرآن |
| | * ۵:۷:۱:۱۳ نسخ القرآن بالسنة |
| | * ۶:۷:۱:۱۳ نسخ السنة بالقرآن |
| | * ۷:۷:۱:۱۳ أقسام النسخ من حيث البدل |
| | * ۱:۷:۷:۱:۱۳ نسخ إلى بدل |
| | * ۲:۷:۷:۱:۱۳ نسخ إلى غير بدل |
| | * ۸:۷:۱:۱۳ الآيات الناسخة والمنسوخة (انظر ما ورد في الناسخ والمنسوخ بترتيب المصحف) |
| | * ۸:۱:۱۳ تعلم القرآن وتعلمية |
| | * ۱:۸:۱:۱۳ فضل تعلم القرآن وتعليمه |
| | * ۲:۸:۱:۱۳ تعليم القرآن ووقت التعلم |
| | * ۸:۱:۱۳ :۱:۲ تلاوة القرآن |
| | * ۱:۱:۲:۸:۱:۱۳ فضل تلاوة القرآن |
| | * ۲:۱:۲:۸:۱:۱۳ الاستعاذة والبسملة |
| | * ۳:۱:۲:۸:۱:۱۳ تلاوة النبي (ص) |
| | * ۴:۱:۲:۸:۱:۱۳ فضل الماهر بالقرآن |
| | * ۵:۱:۲:۸:۱:۱۳ نزول السكينة عند القراءة |
| | * ۶:۱:۲:۸:۱:۱۳ الجهر بالقراءة |
| | * ۷:۱:۲:۸:۱:۱۳ مدالصوت |
| | * ۸:۱:۲:۸:۱:۱۳ مدة ختم القرآن؟ |
| | * ۹:۱:۲:۸:۱:۱۳ ختم القرآن وفضله |
| | * ۱۰:۱:۲:۸:۱:۱۳ من استعجم عليه القرآن |
| | * ۱۱:۱:۲:۸:۱:۱۳ الترجيع في القراءة |
| | * ۱۲:۱:۲:۸:۱:۱۳ القراءة عن ظهر قلب |
| | * ۱۳:۱:۲:۸:۱:۱۳ القراءة بحزن |
| | * ۱۴:۱:۲:۸:۱:۱۳ القراءة على الدابه |
| | * ۱۵:۱:۲:۸:۱:۱۳ القراءة بترنم |
| | * ۱۶:۱:۲:۸:۱:۱۳ المتتعتع بالقراءة |
| | * ۱۷:۱:۲:۸:۱:۱۳ اقرأوا القرآن ما أئتلفت عليه قلوبكم |
| | * ۱۸:۱:۲:۸:۱:۱۳ ما جاء في صعاب السور |
| | * ۱۹:۱:۲:۸:۱:۱۳ ما يقرأ به الجاهل بالقرآن |
| | * ۲۰:۱:۲:۸:۱:۱۳ في السور التي لا يقرأها المنافق |
| | * ۲۱:۱:۲:۸:۱:۱۳ قضاء حزبه من القرآن |
| | * ۲۲:۱:۲:۸:۱:۱۳ تلاوة القرآن في أوقات مخصوصة |
| | * ۲:۲:۸:۱:۱۳ مندوبات القراءة |
| | * ۱:۲:۲:۸:۱:۱۳ احسن الصوت بالقراءة |
| | * ۲:۲:۲:۸:۱:۱۳ السواك عند القراءة |
| | * ۳:۲:۲:۸:۱:۱۳ البكاء عند قراءة القرآن |
| | * ۴:۲:۲:۸:۱:۱۳ التغني بالقرآن |
| | * ۵:۲:۲:۸:۱:۱۳ ما يقول عقب قراءة بعض الآيات |
| | * ۳:۲:۸:۱:۱۳ مكرومات القراءة |
| | * ۱:۳:۲:۸:۱:۱۳ التطريب في القراءة |
| | * ۲:۳:۲:۸:۱:۱۳ التنطع بالقراءة |
| | * ۳:۳:۲:۸:۱:۱۳ التنكيس في القراءة |
| | * ۴:۳:۲:۸:۱:۱۳ من كره أن يقول: قرأت القرآن كله |
| | * ۵:۳:۲:۸:۱:۱۳ من كره أن يقول: المفصل |
| | * ۶:۳:۲:۸:۱:۱۳ من كره إذا قرأ القرآن أن يقول: ليس كذا |
| | * ۳:۸:۱:۱۳ فضل حفظ القرآن وتعاهده |
| | * ۱:۳:۸:۱:۱۳ استذكار القرآن وتعاهده |
| | * ۲:۳:۸:۱:۱۳ تدارس القرآن |
| | * ۳:۳:۸:۱:۱۳ نسيان القرآن |
| | * ۴:۳:۸:۱:۱۳ ارتفاع العلم بالقرآن في آخر الزمان |
| | * ۴:۸:۱:۱۳ قاريء القرآن وآدب القراءة |
| | * ۱:۴:۸:۱:۱۳ القاريء |
| | * ۱:۱:۴:۸:۱:۱۳ مثل قارئ القرآن |
| | * ۲:۱:۴:۸:۱:۱۳ اغتباط صاحب القرآن |
| | * ۳:۱:۴:۸:۱:۱۳ أخلاق قارئ القرآن |
| | * ۴:۱:۴:۸:۱:۱۳ آداب قرأءة القرآن |
| | * ۵:۱:۴:۸:۱:۱۳ من لا تنفعة قراءة القرآن |
| | * ۶:۱:۴:۸:۱:۱۳ أحسن الناس قراءة (انظر القراء) |
| | * ۷:۱:۴:۸:۱:۱۳ من قرأ القرآن من ذرية اليهود |
| | * ۹:۱:۱۳ فقة القرآن |
| | * ۱:۹:۱:۱۳ أحكام القرآن وقراءته |
| | * ۱:۱:۹:۱:۱۳ |
| | * ۲:۱:۹:۱:۱۳ أخذ الأجرة على القرآن |
| | * ۳:۱:۹:۱:۱۳ الرقي بالقرآن والتداوي به |
| | * ۴:۱:۹:۱:۱۳ الدعاء يوم الختم |
| | * ۵:۱:۹:۱:۱۳ التكبير من الضحي إلى آخر القرآن |
| | * ۶:۱:۹:۱:۱۳ من قال اعظموا القرآن |
| | * ۷:۱:۹:۱:۱۳ الزواج بالقرآن |
| | * ۸:۱:۹:۱:۱۳ قراءة القرآن في الخطبة |
| | * ۹:۱:۹:۱:۱۳ اتباع القرآن |
| | * ۱۰:۱:۹:۱:۱۳ عدم كتمان النبي عليه السلام لشيء من القرآن |
| | * ۱۱:۱:۹:۱:۱۳ من كره أن يتناول القرآن عند الأمر بعرض من أمور الدنيا |
| | * ۱۲:۱:۹:۱:۱۳ من كان يدعو بالقرآن |
| | * ۱۳:۱:۹:۱:۱۳ استماع الجن للقرآن |
| | * ۱۴:۱:۹:۱:۱۳ قراءة المحدث للقرآن |
| | * ۲:۹:۱:۱۳ أحكام المصحف |
| | * ۱:۲:۹:۱:۱۳ مس المحدث والحائض والجنب للمصحف |
| | * ۲:۲:۹:۱:۱۳ النظر في المصحف |
| | * ۳:۲:۹:۱:۱۳ تحلية المصحف |
| | * ۴:۲:۹:۱:۱۳ تقبيل المصحف |
| | * ۵:۲:۹:۱:۱۳ تطييب المصحف |
| | * ۶:۲:۹:۱:۱۳ الأمر باقتناء المصحف |
| | * ۷:۲:۹:۱:۱۳ السفر بالقرآن |
| | * ۸:۲:۹:۱:۱۳ حكم اخذ الاجرة على نسخ القرآن |
| | * ۹:۲:۹:۱:۱۳ بيع المصحف |
| | * ۱۰:۱:۱۳ تفسير القرآن |
| | * ۱:۱۰:۱:۱۳ التفسير والمفسرون من الصحابة |
| | * ۱:۱:۱۰:۱:۱۳ شرف علم التفسير |
| | * ۲:۱:۱۰:۱:۱۳ أقسام التفسير |
| | * ۳:۱:۱۰:۱:۱۳ كيف يفسر القرآن؟ |
| | * ۴:۱:۱۰:۱:۱۳ القول في القرآن بغير علم |
| | * ۵:۱:۱۰:۱:۱۳ المفسرون من الصحابة |
| | * ۶:۱:۱۰:۱:۱۳ التوقيف في تفسير القرآن |
| | * ۷:۱:۱۰:۱:۱۳ من كرة أن يفسر القرآن |
| | * ۲:۱۰:۱:۱۳ لغة القرآن |
| | * ۱:۲:۱۰:۱:۱۳ ما نزل بلسان الحبشة |
| | * ۲:۲:۱۰:۱:۱۳ مانزل بالرومية |
| | * ۳:۲:۱۰:۱:۱۳ ما نزل بالنبطية |
| | * ۴:۲:۱۰:۱:۱۳ مانزل بالفارسية |
| | * ۵:۲:۱۰:۱:۱۳ ما فسر بالشعر من القرآن |
| | * ۳:۱۰:۱:۱۳ مباحث حول علم التفسير |
| | * ۱:۳:۱۰:۱:۱۳ إعراب القرآن |
| | * ۲:۳:۱۰:۱:۱۳ المحكوم والمتشابه في القرآن |
| | * ۳:۳:۱۰:۱:۱۳ الآخذ عن بين إسرائيل |
| | * ۴:۳:۱۰:۱:۱۳ ظاهر القرآن وباطنه |
| | * ۵:۳:۱۰:۱:۱۳ غريب القرآن |
| | * ۶:۳:۱۰:۱:۱۳ الوجوه والنظائر في القرآن |
| | * ۷:۳:۱۰:۱:۱۳ مشكل القرآن |
| | * ۸:۳:۱۰:۱:۱۳ أمثال القرآن |
| | * ۹:۳:۱۰:۱:۱۳ أقسام القرآن |
| | * ۱۱:۱:۱۳ |
| | * ۱۲:۱:۱۳ المأثور في تفسير آي القرآن بترتيب المصحف |
| | * ۱۳:۱:۱۳ ما ورد في أسباب النزول بترتيب المصحف |
| | * ۱۴:۱:۱۳ ما ورد في القراءات بترتيب المصحف |
| | * ۱۵:۱:۱۳ ما ورد في الناسخ والمنسوخ بترتيب المصحف |
| | {{پایان فهرست اثر}} |
| | |
| | ==مطلب== |
| '''قرآن''' ممکن است به یکی از موارد زیر اشاره داشته باشد: | | '''قرآن''' ممکن است به یکی از موارد زیر اشاره داشته باشد: |
|
| |
|
| | * [[قرآن (معجزه پیامبر خاتم)]] |
| * [[قرآن (منبع علم معصوم)]] | | * [[قرآن (منبع علم معصوم)]] |
| * [[رابطه معصوم با قرآن]] | | * [[رابطه معصوم با قرآن]] |
خط ۱۱: |
خط ۴۵۶: |
| * [[مرجعیت علمی قرآن]] | | * [[مرجعیت علمی قرآن]] |
|
| |
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| {{ابهامزدایی}} | | ==فهرست کتاب فرهنگنامه موضوعی قرآن کریم== |
| [[رده:صفحههای ابهامزدایی]] | | ===جلد اول=== |
| | | {{فهرست اثر}} |
| | | # آب و [[باران]] |
| ==مقدمه==
| | # [[آداب]] و آداب شرعیه |
| *[[قرآن کریم]] به صورت تدریجی در طول دوره بیست و سه ساله [[نبوت]] [[پیامبر اکرم]]{{صل}} نازل شده است. این [[وحی]] همانند جویبار زلالی از بلندای جبل النّور در مکه جاری شد و پس از طی فراز و نشیبهای گوناگون و گذر از بستر شرایط و موقعیتهای سخت دوران مکّی، به سرزمین یثرب رسید و در آنجا با بارور ساختن بذرهای قانون و مدنیت، مدینة النبی را بنیان نهاد. اگرچه هر یک از این فراز و نشیبهای موجود در بستر [[وحی قرآنی]]، در شکلگیری دین مبین اسلام جایگاه معینی دارد، اما مکه و مدینه به عنوان دو گرانیگاه مهم در این زمینه از اهمیت ویژهای برخوردار است. تمایزات و شاخصههای [[وحی]] در مکه و مدینه نشانگر آن است که قرآن با محیط، شرایط اجتماعی و فرهنگی که در آن نازل شده است، تعاملی پویا و زنده دارد.
| | # [[آداب دوستی]] و [[دوستیابی]] |
| *دانشمندان علوم قرآنی از دیرباز به صورت مستقل یا در ضمن مجموعههایی، از مکّی و مدنی بودن آیات و سور قرآن سخن گفتهاند. این سخنان به موضوعهایی چون تفاوت سورههای مکّی با سورههای مدنی، آیات مکّی در سور مدنی، آیات مدنی در سور مکّی و ویژگیهای [[وحی]] در هر دو دوره مکّی و مدنی اختصاص دارد. در دهههای اخیر، برخی از مخالفان اسلام و خاورشناسان نیز در جهت اثبات دعاوی خود ـ مبنی بر اینکه قرآن منبعی انسانی و زمینی دارد ـ به بحث مکّی و مدنی علاقه نشان داده و به نظریهپردازی در این زمینه پرداختهاند. لازم به ذکر است که مبحث مکّی و مدنی، هم از مباحث علومٌ للقرآن و هم از مباحث علومٌ حولَ القرآن به شمار میآید<ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۰۶.</ref>.
| | # آداب [[عقود]] |
| | | # آداب و [[احکام]] [[ارث]] و [[میراث]] |
| ==تعریف مکّی و مدنی==
| | # آداب و احکام [[امانت]] و [[امانتداری]] |
| *سؤال اصلی این است که چه معیاری باعث تفکیک [[وحی]] قرآن به مکّی و مدنی شده است؟ در پاسخ به این سؤال دو عامل زمان و مکان به ذهن متبادر میشود. بر این اساس برای مکّی و مدنی دو تعریف عمده به شرح زیر وجود دارد<ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۰۶.</ref>.
| | # آداب و احکام خوردن |
| ===معیار مکان===
| | # آداب و احکام شیر دادن و بارداری |
| *بر اساس معیار مکان، مکّی به آیاتی از قرآن گفته میشود که در مکه، اعم از شهر مکه و نواحی اطراف آن چون منی، عرفات و حدیبیه، نازل شده باشد و مدنی به آیاتی گفته میشود که در مدینه و نواحی اطرافش نظیر بدر، اُحُد و سَلْع <ref>نام کوهی در مدینه.</ref> نازل شده باشد<ref>ر. ک: الاتقان فی علوم القرآن، جلال الدین سیوطی، قم، منشورات رضی، ج ۱، ص ۳۸ (نوع اول).</ref>. طبق این تعریف، آیاتی که در مکانهای دیگری مانند جحفه، تبوک و بیت المقدس نازل شده است، در هیچ یک از دو دسته مکّی یا مدنی قرار نمیگیرد. در روایتی از [[رسول خدا]]{{صل}} نقل شده است که [[قرآن]] در سه مکان نازل شده است: "مکه، مدینه و شام"، برخی شام را به بیت المقدس و برخی دیگر نیز به تبوک تفسیر کردهاند. همچنین در باره آیه{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|وَاسْأَلْ مَنْ أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ مِن رُّسُلِنَا أَجَعَلْنَا مِن دُونِ الرَّحْمَنِ آلِهَةً يُعْبَدُونَ }}﴾}}<ref> و از پیامبران ما که پیش از تو فرستادهایم بپرس، آیا به جای (خداوند) بخشنده خدایانی را قرار دادهایم که پرستیده شوند؟؛ سوره زخرف، آیه:۴۵.</ref> گفته شده است که در شب اِسراء و در بیت المقدس نازل شده است<ref>جلالالدین سیوطی، الدّر المنثور فی التفسیر المأثور، ص:۷۸.</ref><ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۰۷.</ref>.
| | # آداب و احکام [[طلاق]] |
| ===معیار زمان===
| | # آداب و احکام لعان |
| *بر اساس معیار زمان، هجرت [[پیامبر]]{{صل}} از مکه به مدینه نقطه عطفی در تاریخ اسلام و حیات پیامبرانه آن حضرت است. اهمیت این هجرت، صفآرایی جدید بین مکه و مدینه و تغییر جغرافیای سیاسی، اجتماعی و مذهبی منطقه عربستان، حضور مهاجران در کنار انصار و... در حیات پربرکت پیامبر اسلام و زندگی مسلمانان تحولی شگرف پدید آورد و از این رو جهتگیریهای وحی قرآنی نیز با وضعیت جدید و دگرگونیهای حاصلشده هماهنگ شد.
| | # آداب و احکام مکاسب |
| *با این تعریف، به آیات و سوری مکّی گفته میشود که قبل از هجرت نازل شدهاند و مدنی عبارت است از آیات و سوری که بعد از هجرت [[رسول اکرم]]{{صل}} به مدینه نازل شده است. بر این اساس آیاتی که قبل از هجرت در مناطق دیگری چون طائف نیز نازل شده است، مکّی به شمار میرود. همچنین آیاتی که بعد از هجرت به هنگام مسافرت [[رسول خدا]] به مکه یا دیگر مناطق نازل شده است، مدنی به شمار میرود. با این معیار، تمام آیات قرآن یا مکّی است یا مدنی؛ چرا که تمام آیات [[قرآن]] یا قبل از هجرت نازل شده یا بعد از هجرت. تنها موردی که در این تعریف محل تردید است، آن بخش از قرآن است که احتمال میرود در هنگام هجرت [[پیامبر]] و قبل از رسیدن او به مدینه نازل شده باشد، که برخی آن را ملحق به مکّی<ref>جلالالدین سیوطی، البرهان فی علوم القرآن،ص ۳۸؛ زرکشی، البرهان فی علوم القرآن، ج ۱، ص ۲۷۴ (نوع نهم).</ref> و برخی ملحق به مدنی دانستهاند<ref>درآمدی بر تاریخگذاری قرآن، جعفر نکونام، تهران، هستینما، ۱۳۸۰ ش، ص ۱۸۰.</ref> این امر به ملاک ما در تمایز بین دو دوره زمانی مکّی و مدنی بستگی دارد؛ اگر ما ملاک تمایز بین دو دوره زمانی مکی و مدنی را زمانی بدانیم که پیامبر اکرم مکه را به قصد هجرت به مدینه، ترک گفتند، در این صورت آیات اشاره شده مدنی خواهد بود، اما اگر زمان ورود [[پیامبر اکرم]] به مدینه را ملاک بدانیم، در این صورت آیات اشاره شده مکّی است. از آنجا که در بین راه مکه و مدینه آیات زیادی نازل نشده است لذا در این زمینه، مشکل چندانی وجود ندارد. گفته شده است که فقط آیه{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|إِنَّ الَّذِي فَرَضَ عَلَيْكَ الْقُرْآنَ لَرَادُّكَ إِلَى مَعَادٍ قُل رَّبِّي أَعْلَمُ مَن جَاءَ بِالْهُدَى وَمَنْ هُوَ فِي ضَلالٍ مُّبِينٍ }}﴾}}<ref> بیگمان آن کس که قرآن را بر تو واجب کرده است تو را به بازگشتگاهی باز میگرداند؛ بگو: پروردگار من بهتر میداند چه کسی رهنمود آورده است و چه کسی در گمراهی آشکاری است؛ سوره قصص، آیه:۸۵.</ref> در هنگام هجرت و در محلی به نام جُحفه بر [[پیامبر]]{{صل}} نازل شده است<ref>جلالالدین سیوطی، الاتقان فی علوم القرآن، ج ۱، ص ۷۸.</ref>. از میان این دو معیار، معیار زمانی ارجح است، زیرا اولاً آنچه بیشتر باعث تفاوتهای محتوایی در دو دسته از آیات میشود، تمایز زمانی و تاریخی نزول آیات است نه صرف مکانهای جغرافیایی، ثانیاً زمان هجرت [[رسول اکرم]]{{صل}} به عنوان نقطه عطف تاریخی حد فاصل بین دو دوره حضور [[پیامبر]] در مکه و مدینه تلقی شده است و دوره رسالت [[پیامبر اکرم]]{{صل}} و نزول قرآن را به دو بخش کاملاً مجزا تقسیم میکند و مجموع آیات و سور قرآنی، به حصر عقلی، یا مکّی و یا مدنی است، در صورتی که با معیار مکانی، آیات منحصراً به مکّی و مدنی تقسیم نمیشود. گفته شده است که مراد از مکّی و مدنی در اصطلاح صحابه و تابعین و قدما اصطلاح اول است. اما در عین حال باید توجه داشت که گاهی در برخی متون روایی، تفسیری یا علوم قرآنی اصطلاح مکّی و مدنی در مورد دوم نیز به کار رفته است، به عنوان مثال، ماوردی گفته است که سوره بقره مدنی است جز آیه{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|وَاتَّقُواْ يَوْمًا تُرْجَعُونَ فِيهِ إِلَى اللَّهِ ثُمَّ تُوَفَّى كُلُّ نَفْسٍ مَّا كَسَبَتْ وَهُمْ لاَ يُظْلَمُونَ}}﴾}}<ref> و از روزی پروا کنید که در آن به سوی خداوند بازگردانده میشوید آنگاه به هر کس پاداش آنچه انجام داده است تمام خواهند داد و به آنان ستم نخواهد رفت؛ سوره بقره، آیه:۲۸۱.</ref> که در روز عید قربان در منی نازل شده است<ref>ر. ک: الاتقان فی علوم القرآن، جلال الدین سیوطی، قم، منشورات رضی، ج ۱، ص ۳۸ (نوع اول)؛ زرکشی، البرهان فی علوم القرآن، ج ۱، ص ۲۷۴</ref> بنا بر این منظور او از مکّی در باره این آیه، نزول آن در شهر مکه است.
| | # آداب و احکام [[نکاح]] و [[زناشویی]] |
| *ناگفته نماند که گاهی از تعریف سومی نیز یاد میشود که در آن خطاب به اهل مکه یا مدینه به عنوان معیار شناخت آیات مکّی و مدنی یاد شده است<ref>زرکشی، البرهان فی علوم القرآن، ج ۱، ص ۲۷۴.</ref> بنا بر این تعریف، هر سورهای که در آن عبارت {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| يَا أَيُّهَا النَّاس}}﴾}} به کار رفته باشد و عبارت {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ }}﴾}} در آن سوره یافت نشود، مکّی و هر سورهای که در آن عبارت {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ }}﴾}} به کار رفته باشد، مدنی است. روشن است که این تعریف شامل تمامی آیات و سور [[قرآن کریم]] نمیشود، چرا که اولاً خطابهای قرآنی فراتر از دو خطاب مذکور است، برای مثال در آیات فراوانی [[پیامبر اکرم]]{{صل}} مورد خطاب قرار گرفته است، ثانیاً در بسیاری از سورهها هیچ یک از این دو خطاب وجود ندارد.
| | # آداب و احکام وضوء |
| *واقعیت آن است که مسئله خطاب به مؤمنان یا مردم را نباید جزء معیارهای تعریف مکّی و مدنی به شمار آورد، بلکه این امر جزء شاخصههای غالب در آیات و سورههای مکّی و مدنی است، بنا بر این مکّی و مدنی دو اصطلاح بیشتر ندارد که طبق اصطلاح مشهور، معیار زمانی و طبق اصطلاح دیگر معیار مکانی در تعریف آن منظور شده است<ref>درآمدی بر تاریخگذاری قرآن، جعفر نکونام، تهران، هستینما، ۱۳۸۰ ش، ص ۱۸۰.</ref><ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۰۷ - ۱۰۸.</ref>.
| | # آداب ورود به [[خانه]] |
| | | # [[آدم]]{{ع}} |
| ==جایگاه بحث مکّی و مدنی در [[قرآن]]==
| | # آدم{{ع}} و نخستین [[نافرمانی]] |
| *بر خلاف مباحثی چون محکم و متشابه و [[وحی]]، مکّی و مدنی بودن سورهها از جمله مباحثی است که در [[قرآن کریم]] به طور مستقیم در باره آن بحث نشده است. در هیچ جای قرآن از اصطلاح مکّی و مدنی و تقسیم آیات به این دو دسته، به صراحت یا به اشارت، سخنی دیده نمیشود و ما تنها از مضمون و محتوای برخی از سورهها میتوانیم به زمان نزول آنها و مکّی و مدنی بودن آنها پی ببریم.
| | # آراستن [[کردار]] |
| *در برخی از آیات قرآن به رخدادهای زمانمند، مانند شکست روم<ref>سوره روم، آیه:۲</ref> و جنگ بدر<ref>سوره آل عمران، آیه:۱۲۳.</ref> تصریح شده است. در بعضی از آیات نیز به حوادثی زمانمند اشاره شده به این معنا که اوصافی از آنها در این آیات آمده است، مانند جنگ تبوک که اوصاف آن در آیاتی از سوره توبه آمده است.
| | # [[آرامش]] خاطر،نشانهای از [[ایمان]] |
| *برخی گفتهاند که حدود پنجاه رخداد زمانمند در آیات [[قرآن]] به تصریح یا تلمیح یاد شده است، که مهمترین آنها به ترتیب وقوع عبارتاند از: [[بعثت]] (۱ ب)<ref>حرف ب، علامت اختصاری بعثت است.</ref>، ولادت [[حضرت زهرا]]{{س}} (۲ ب)، دعوت علنی (۳ ب)، هجرت به حبشه (۵ ب)، شکست روم (۱۲ ب)، هجرت به مکه (۱۳ ب)، تغییر قبله (۲ ﻫ) <ref>حرف ﻫ، علامت اختصاری هجرت است.</ref>، غزوه بدر (۲ ﻫ)، غزوه احد (۳ ﻫ)، غزوه بنی نضیر (۴ ﻫ)، غزوه خندق (۵ ﻫ)، غزوه بنیقریظه (۵ ﻫ)، صلح حدیبیه (۲ ﻫ)، فتح مکه (۸ ﻫ)، غزوه حنین (۸ ﻫ)، غزوه تبوک (۹ ﻫ)، برائت از مشرکان (۹ ﻫ) و حجة الوداع (۱۰ ﻫ).
| | # آرزوی [[مرگ]] |
| *برای نمونه آیه {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| لَقَدْ نَصَرَكُمُ اللَّهُ فِي مَوَاطِنَ كَثِيرَةٍ وَيَوْمَ حُنَيْنٍ إِذْ أَعْجَبَتْكُمْ كَثْرَتُكُمْ فَلَمْ تُغْنِ عَنكُمْ شَيْئًا وَضَاقَتْ عَلَيْكُمُ الأَرْضُ بِمَا رَحُبَتْ ثُمَّ وَلَّيْتُم مُّدْبِرِينَ }}﴾}}<ref> بیگمان خداوند در نبردهایی بسیار و در روز (جنگ) «حنین» شما را یاری کرده است؛ هنگامی که فزونیتان شما را به غرور واداشت اما هیچ سودی برای شما نداشت و زمین با گستردگیش بر شما تنگ شد سپس با پشت کردن (به دشمن) واپس گریختید؛ سوره توبه، آیه:۲۵.</ref> که بعد از غزوه حنین نازل شده است، با آیات مربوط به آن، جزء آیات مدنی و مربوط به بعد از زمان وقوع جنگ حنین است.
| | # [[آزر]] |
| *علاوه بر تصریحات و اشارههای قرآن به حوادث زمانمند، از طریق مضمون و سیاق برخی از آیات قرآن نیز میتوان به مکّی و مدنی بودن برخی از سورهها پی برد. علامه طباطبایی میگوید:
| | # [[آسمانها]] ویژگیها و امکانات |
| *تنها راه [مطمئن] برای تشخیص مکّی و مدنی بودن سورههای قرآن تدبّر در مضامین آنها و تطبیق آن با اوضاع و احوال پیش و پس از هجرت است<ref>قرآن در اسلام، محمد حسین طباطبایی، تصحیح: محمدباقر بهبودی، تهران، دار الکتب الاسلامیه، ۱۳۷۹ ش، چاپ نهم، ص ۱۲۸.</ref>.
| | # [[آفاق و انفس]] |
| *بنا بر این استفاده از خود قرآن در تشخیص مکّی یا مدنی از اتکا به روایات مطمئنتر است، برای نمونه [[علامه طباطبایی]] معتقد است که مضامین سورههای انسان، العادیات و مطففین بر مدنی بودن آنها گواهی میدهد، در حالیکه در برخی از روایات، آنها را جزء سورههای مکّی ذکر کردهاند<ref>قرآن در اسلام، محمد حسین طباطبایی، تصحیح: محمدباقر بهبودی، تهران، دار الکتب الاسلامیه، ۱۳۷۹ ش، چاپ نهم، ص ۱۲۸.</ref><ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۰۸ - ۱۰۹.</ref>.
| | # [[آفرینش]]؛ زمینهای برای [[معرفت خدا]] |
| | | # [[آل ابراهیم]] |
| ==جایگاه بحث مکّی و مدنی در روایات==
| | # [[آل داوود]] |
| *پس از دلالت مضمونی آیات و سور بر مکّی یا مدنی بودن آنها، بهترین راه برای تشخیص این امر، نقلِ معتبر است. با توجه به آنچه که در اخبار و آثار در باره مکّی و مدنی بودن آیات آمده است، میتوان به موارد زیر اشاره کرد:
| | # [[آل عمران]] |
| ۱. هیچ روایتی از [[پیامبر اکرم]]{{صل}} نقل نشده است که به صراحت مکّی یا مدنی بودن بخشی از [[قرآن]] را اعلام کند، و آنچه که در این زمینه وجود دارد، به صحابه یا تابعین منتهی میشود<ref>ر. ک: الاتقان فی علوم القرآن، جلال الدین سیوطی، قم، منشورات رضی، ج ۱، ص ۳۸ (نوع اول).</ref>.
| | # [[آل فرعون]] |
| | | # [[آل لوط]] |
| ۲. روایاتی از صحابه و تابعین رسیده است که در آنها سورههای مکّی و مدنی قرآن کریم مشخص شده است. در حقیقت این روایات همان روایات مربوط به ترتیب سورههای قرآن است که در درس گذشته آن را نقل کردیم. مطابق با این روایات، هشتاد و شش سوره "از علق تا مطففین" مکّی و بیست و هشت سوره "از بقره تا توبه" مدنی است<ref>ر. ک: الاتقان فی علوم القرآن، جلال الدین سیوطی، قم، منشورات رضی، ج ۱، ص ۳۱ (نوع اول).</ref>. سورههای مطففین، فجر، لیل، قدر، رعد، رحمن، انسان، جمعه، حجرات و حمد نیز در برخی از روایات به عنوان سورههای مکّی و در برخی دیگر به عنوان سورههای مدنی ذکر شدهاند<ref>ر. ک: الاتقان فی علوم القرآن، جلال الدین سیوطی، قم، منشورات رضی، ج ۱، ص ۴۱؛ محمد حسین طباطبایی، قرآن در اسلام، ص ۱۲۷ ـ ۱۲۶.</ref>.
| | # [[آل محمد]]{{صل}} |
| | | # [[آل موسی]] |
| ۳. علاوه بر تعیین آیات و سور مکّی و مدنی، در برخی روایات معیارهایی نیز برای مکّی و مدنی بودن آیات بیان شده است که برای نمونه به روایات زیر میتوان اشاره کرد:
| | # [[آل هارون]] |
| :#[[ابن مسعود]] گوید: "سورههای مفصّل (فاصلهدار) در مکه نازل شد. ما سالها آنها را میخواندیم و جز آنها نازل نمیشد"<ref>الاتقان فی علوم القرآن، جلال الدین سیوطی، ص ۷۰ (نوع اول). {{عربی|اندازه=120%|" نَزَلَ المُفَصَّلَ بمَکَّةَ فَمَکَثْنا حِجَجاً نَقرَؤُهُ، لٰا یَنْزِلُ غیرَه"}}</ref>
| | # [[آل یعقوب]] |
| :#از [[ابن مسعود]] نقل شده است که میگفت:"هرچه در آن {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| يَا أَيُّهَا النَّاس}}﴾}}است، در مکه و هرچه در آن {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ }}﴾}} است، در مدینه نازل شده است"<ref>الاتقان فی علوم القرآن، جلال الدین سیوطی، ص ۶۸ (نوع اول).</ref>
| | # آمادهکردن [[سپاه]] |
| :#[[میمون بن مهران]] گفته است:"آنچه در آن {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| يَا أَيُّهَا النَّاس}}﴾}} یا {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| يَا بَنِي آدَمَ }}﴾}} آمده، مکّی و آنچه در آن {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ }}﴾}} آمده، مدنی است"<ref>الاتقان فی علوم القرآن، جلال الدین سیوطی، ص ۶۸ (نوع اول).</ref>.
| | # [[آیات]] سجدهدار |
| :#از [[عروة بن زبیر]] نقل شده است که میگفت:"هرچه در آن امّتهای گذشته ذکر شده است، در مکه و هرچه در آن فرائض و سُنن آمده، در مدینه نازل شده است"<ref>الاتقان فی علوم القرآن، جلال الدین سیوطی، ص ۶۹ (نوع اول).</ref>. بنا بر این میتوان گفت که در روایات هر دو شیوه سماعی و قیاسی (بیان قواعد کلی برای تشخیص مکی و مدنی) برای تعیین سورههای مکّی و مدنی به کار رفته است.
| | # آیات و نشانههای [[خدا]] |
| ۴. علاوه بر روایات ترتیب نزول که در آنها سورههای مکّی و مدنی به همراه ترتیب آنها آمده است، روایات دیگری نیز از صحابه یا تابعین نقل شده است که در آنها ضمن بیان سورههای مکّی و مدنی، آیات استثنا نیز ذکر شده است <ref>برای مثال ر. ک: الاتقان فی علوم القرآن، جلال الدین سیوطی، ص ۳۹.</ref>.
| | # [[آیه اخوت]] |
| | | # [[آیه اُذُن]] / [[آیه]] [[تصدیق]] |
| ۵. اقوال پراکندهای نیز از صحابه یا تابعین در باره آیات استثنا از سور مکّی یا مدنی رسیده است<ref>الاتقان فی علوم القرآن، جلال الدین سیوطی، ص ۶۷ - ۵۶(نوع اول).</ref>.
| | # آیه [[اذن جهاد]] |
| | | # [[آیه اذن واعیه]] |
| ۶. روایات مربوط به اسباب نزول نیز با بحث مکّی و مدنی تعامل نزدیکی دارد؛ چرا که بسیاری از این روایات در سبب یا شأن نزول آیات، از حوادثی سخن میگویند که تاریخ و محل وقوع آنها مشخص است، از این رو از روایات اسباب نزول نیز میتوان برای تعیین مکی و مدنی بودن آیات و سور استفاده کرد<ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۰۹ - ۱۱۱.</ref>.
| | # آیه إستدراج |
| | | # [[آیه استرجاع]] |
| ==تحقیقات متقدمان درباره مکّی و مدنی==
| | # آیه إستعاذه |
| *از دوره تابعین به بعد کتابهایی در باره مکّی و مدنی آیات و سورههای قرآن به رشته تحریر درآمده است. چنانچه نوشتههایی با نام "نزول القرآن" به [[ضحاک بن مزاحم]]، [[عکرمه]] و [[حسن بصری]] نسبت داده شده است. *عمدهترین کتابهای مربوط به مبحث مکی و مدنی سورهها در میان قدما عبارتاند از:
| | # [[آیه استیذان]] |
| #تنزیل القرآن بمکة و المدینه از [[ابن شهاب زهری]] <ref>این کتاب با تحقیق صلاح الدین المنجد، توسط دار الکتاب الجدید در سال ۱۹۶۳ در بیروت به چاپ رسیده است.</ref> | | # [[آیه اطاعت]] |
| #التنزیل من القرآن<ref>ر. ک: معجم المؤلّفین، محمد رضا کحاله، بیروت، دار احیاء التراث العربی، بیتا، ج ۷، ص ۳۱۲؛ ایضاح المکنون في الذیل علی کشف الظنون عن اسامی الکتب و الفنون، اسماعیل باشا بغدادی، بیروت، دارالکتب العلمیه، بیتا، ج ۴، ص ۲۳۸.</ref> از [[ابن فضّال کوفی]] <ref>داودی گفته است که او از علمای شیعه است؛ ر. ک: محمد بن علی داودی، بیروت، دارالکتب العلمیه؛ طبقات المفسرین، ج ۱، ص ۴۰۳؛ نیز ر.ک: الذریعة الي تصانيف الشيعه، شیخ آغا بزرگ تهرانی، نجف، ۱۹۷۰م، ج ۱، ص ۱۹.</ref>. | | # آیه إفک |
| #فضائل القرآن و ما أنزل من القرآن بمکة و ما أنزل بالمدینه از [[محمد بن ایوب بن الضریس البجلی]] <ref>این کتاب نیز هماکنون موجود است.</ref>. | | # آیه إکمال |
| #بیان عدد سور القرآن و آیاته و کلماته و مکّیه و مدنیه از [[ابن عبد الکافی]]<ref> نسخۀ خطی این کتاب در دارالکتب المصریه به رقم ۷۴ موجود است؛ ر. ک: المکی و المدنی في القرآن الكريم، عبد الرزاق حسین احمد، قاهره، دار ابنعفان، ۱۹۹۹م، ج ۱، ص ۶۸.</ref>. | | # [[آیه امانات]] |
| #ما نزل من القرآن فی صلب الزمان از [[احمد بن محمد بن عبید الله جوهری]]<ref>نویسندۀ این کتاب شیعی است؛ ر.ک: اسماعیل باشا البغدادی، ایضاح المکنون فی الذیل علی کشف الظنون عن اسماء الکتب و الفنون، ص ۴۲۱.</ref> | | # [[آیه امانت]] |
| #تنزیل القرآن از [[ابو زرعة عبد الرحمن بن محمد بن زنجله]]<ref> نسخۀ خطی این کتاب موجود است. عبد الرزاق حسین احمد، المکی و المدنی فی القرآن الکریم، ص ۶۹.</ref>. | | # [[آیه امتحان]] |
| #التنزیل و ترتیبه از [[ابو القاسم حسن بن محمد بن الحسن نیشابوری]]<ref> نسخۀ خطی این کتاب موجود است. عبد الرزاق حسین احمد، المکی و المدنی فی القرآن الکریم، ص ۶۹.</ref>. | | # آیه إملاق |
| #کتاب المکّی و المدنی از [[مکّی بن ابی طالب قیسی]].
| | # آیه [[أمن]] یجیب |
| #المکّی و المدنی فی القرآن از [[ابو عبد الله محمد بن شریح الرعیینی]]<ref>ر.ک: زركشی، پیشین، ج ۱، ص ۲۷۳ (پاورقی محقق).</ref>.
| | # آیه إنذار |
| #یتیمة الدُّرر فی النزول و آیات السور از [[محمد بن احمد بن محمد موصلی]] <ref>این کتاب در کتابخانۀ دوبلین در ایرلند موجود است؛ به نقل از عبد الرزاق حسین احمد، المکی و المدنی في القرآن الكريم، ص ۷۶.</ref> | | # [[آیه انفاق]] |
| #منظومة فی المکّی و المدنی از [[برهانالدین ابراهیم بن جعبری]] <ref>این کتاب در سال ۱۸۹۳ به همراه کتاب التغییر فی علوم التفسیر نوشتۀ دیرینی به چاپ رسیده است، عبد الرزاق حسین احمد، المکی و المدنی في القرآن الكريم، ص ۷۶.</ref>. | | # آیه أولوالأرحام |
| *در قرنهای بعد نیز دانشمندانی چون [[بدرالدین زرکشی]] و [[جلالالدین سیوطی]] بابهای مستقلی را با عنوان "معرفة المکّی و المدنی" در کتابهای خود گنجاندهاند<ref>ر.ک: زرکشی، البرهان فی علوم القرآن، ص ۲۹۲ ـ ۲۷۳ (نوع اوّل)؛ الاتقان فی علوم القرآن، جلال الدین سیوطی، ص ۷۲ ـ ۳۶ (نوع اول).</ref>.
| | # آیه [[برّ]] |
| *برخی از مفسّران متقدّم نیز به ذکر مکّی و مدنی قرآن توجه خاصی داشتهاند و مباحث مربوط به این موضوع را در تفاسیر خود ذکر میکردند که به عنوان نمونه از تفاسیر زیر میتوان نام برد:
| | # آیه [[بیعت رضوان]] |
| #المحرّر الوجیز فی تفسیر الکتاب العزیز از [[ابن عطیه اندلسی]] | | # [[آیه تبدیل]] |
| #زاد المسیر فی علم التفسیر از [[ماوردی]] | | # [[آیه تبلیغ]] |
| #تفسیر القرآن العظیم از [[ابن کثیر]] | | # [[آیه تحریم]] |
| #الدر المنثور فی التفسیر بالمأثور از [[جلال الدین سیوطی]]<ref>جهت تفصیل بیشتر ر.ک: المکی و المدنی في القرآن الكريم، عبد الرزاق حسین احمد، ص ۱۹۱ ـ ۱۸۰.</ref> | | # [[آیه تحویل قبله]] |
| *عمده کار متقدمان در باره مکّی و مدنی بودن سورهها را میتوان در سه حوزه زیر دستهبندی کرد:
| | # آیه تداین |
| #نقل و گزارش اقوال رسیده از صحابه و تابعین در باره مکّی و مدنی | | # [[آیه تربص]] یا عده [[وفات]] |
| #کوشش در جهت رفع تعارض بین روایات مربوط به این باب | | # [[آیه تطهیر]] |
| #گسترش معیارهای قیاسی در ساماندهی به امر مکّی و مدنی<ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۱۱ - ۱۱۲.</ref>.
| | # [[آیه تلاعن]] |
| ==تعارض در روایات مكی و مدنی==
| | # [[آیه تمتع]] |
| *یکی از مشکلات در باب تاریخگذاریهای قرآن چندگونگی و تعارض میان اخبار است. بیشتر پژوهشگران متقدم میکوشیدند تا از میان روایات متعارض در باره مکّی یا مدنی بودن سور، یک روایت را ترجیح دهند و زمانی که معیارهای ترجیح از جهت صحت سند و صداقت راوی مساوی و معادل میشد و امکان ترجیح وجود نداشت، سعی میکردند به یکی از دو طریق زیر مسئله را حل کنند: یا اینکه میگفتند این بخش از قرآن دو بار، یک بار در مکه و بار دیگر در مدینه، نازل شده است، یا اینکه نزول آن آیات را به مکه و تشریع حکم شرعی و فقهی آن را به مدینه نسبت میدادند<ref>نصر حامد ابوزید، معنای متن: پژوهشی در علوم قرآن، ترجمه: مرتضی کریمینیا، تهران، طرح نو، ۱۳۸۰ ش، ص ۱۵۴.</ref> به عنوان مثال برخی از محققان در باره سوره حمد به تکرار نزول آن رأی دادهاند، چرا که از یک طرف [[پیامبر]]{{صل}} و مسلمانان در دوره مکّی نماز میخواندند که این مسئله دالّ بر مکی بودن این سوره است، و از طرف دیگر برخی معتقدند که مراد از {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلاَ الضَّالِّينَ }}﴾}} در این سوره یهود و نصاری هستند و این امر بر مدنی بودن سوره دلالت میکند. علاوه بر این در روایات مربوط به ترتیب نزول سورهها نیز سوره حمد گاهی جزء سورههای مکّی و گاهی جزء سورههای مدنی ذکر شده است. در باره آیه مربوط به وضو و تیمّم نیز گفتهاند که اگر چه این آیه در مدینه نازل شده است، اما حکم آن قبلاً در مکه تشریع شده بود<ref>نصر حامد ابوزید، معنای متن: پژوهشی در علوم قرآن، ترجمه: مرتضی کریمینیا، تهران، طرح نو، ۱۳۸۰ ش، ص ۱۶۸.</ref><ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۱۲.</ref>.
| | # [[آیه توارث بالایمان]] |
| | | # [[آیه تهلکه]] |
| ==معیارهای تشخیص مكی و مدنی==
| | # [[آیه تیمم]] |
| *برخی از متقدمان به ویژگیهای موجود در آیات و سور مکّی و مدنی توجه کرده و تلاش نمودهاند تا یکسری معیارهای قیاسی را برای شناخت مکی از مدنی عرضه کنند. [[جعبری]] میگوید:شناخت مکّی و مدنی از دو روش سماعی و قیاسی امکانپذیر است؛ طریق سماعی آن است که روایاتی در تعیین مکّی و مدنی به ما رسیده باشد و طریق قیاسی آن است که مثلاً گفته شده آن سورههایی که در آنها تنها {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| يَا أَيُّهَا النَّاس}}﴾}} آمده باشد، بدون {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ }}﴾}}، یا در آنها "کَلّا" یا "حروف مقطّعه" غیر از بقره، آلعمران و رعد یا داستان آدم و ابلیس به جز بقره یا داستانهایی از امّتهای پیشین آمده باشد، مکّی است و هر سورهای که در آن احکام واجب یا حدود شرعی آمده باشد، مدنی است<ref>زرکشی، البرهان فی علوم القرآن، ص ۲۷۶.</ref><ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۱۳.</ref>.
| | # آیه جزای [[فحشاء]] |
| | | # [[آیه جمعه]] |
| ==پژوهشهای متأخران و معاصران==
| | # [[آیه حجاب]] |
| *متأخران و معاصران نیز در کتب علوم قرآنی و تفسیر، مباحث مربوط به مکّی و مدنیِ قرآن را دنبال کردهاند. از میان تفاسیر قرآن، کتب تفسیری زیر به بحث مکّی و مدنی اهتمام بیشتری داشتهاند:
| | # آیه حد [[زنا]] |
| #التفسیر الحدیث از [[محمد عزّة دروزه]]؛
| | # آیه [[حِذر]] |
| #بیان المعانی از [[عبدالقادر ملّاحویش]]؛ | | # آیه [[حرث]] |
| #المیزان فی تفسیر القرآن از [[محمد حسین طباطبایی]]؛ | | # [[آیه حفظ]] |
| #محاسن التأویل از [[قاسمی]]؛ | | # [[آیه حیض]] |
| #المنار از [[محمد رشید رضا]]؛
| | # آیه خاتم |
| #فی ظلال القرآن از [[سید قطب]]؛ | | # [[آیه خمس]] |
| #التحریر و التنویر از [[ابن عاشور]]. | | # [[آیه ربا]] |
| *دانشمندان و پژوهشگران معاصر بیش از آنکه به گزارش روایات در باره مکّی و مدنی توجه نشان دهند، به رابطه بین مدلول آیات قرآن با واقعیت تاریخی در دو دوره مکّی و مدنی اندیشیدهاند. آنها پذیرفتهاند که اسلوب و محتوای متن قرآن، همراه با تغییر شرایط فکری ـ فرهنگی تغییر کرده است. متأخران در نقد احادیث متعارض نیز، به معیارهای ترجیح روایتی بر روایت دیگر یا قبول دو بار نزول در صورت عدم ترجیح، چندان توجهی نشان نمیدهند، بلکه بیشتر بر سازگاری متن با واقعیت توجه دارند<ref>نصر حامد ابوزید، معنای متن: پژوهشی در علوم قرآن، ترجمه: مرتضی کریمینیا، تهران، طرح نو، ۱۳۸۰ ش، ص ۱۶۸.</ref>.
| | # [[آیه روح]] |
| *یکی دیگر از مواردی که دانشمندان متأخر به نقد آن پرداختهاند، آیات استثنا است؛ برای متقدمان پذیرش یک یا چند آیه مکّی در ضمن سورههای مدنی یا بالعکس امری به نسبت سهل بوده است، اما متأخران بیشتر این موارد را، که در روایات و سخن متقدمان گزارش شده است، با دیده تردید نگریسته و به دفاع از همگونی آیاتِ یک سوره از نظر مکّی یا مدنی بودن پرداختهاند.
| | # [[آیه زکات]] |
| *خاورشناسان به بحثهای مربوط به مکی و مدنی توجهی ویژهای دارند. آنها سورههای قرآن را به چندین طبقه دستهبندی کردهاند. برخی از آنها سورهها را به سه طبقه "دو گروه مکّی و یک گروه مدنی"<ref>گریم (Grimme hubret) (۱۹۴۲ ـ ۱۸۶۴ م)، خاورشناس آلمانی و بل (Richard Bell)، خاورشناس انگلیسی، سورهها را به دو طبقۀ مکی و یک طبقۀ مدنی تقسیم نمودهاند.</ref>. برخی دیگر به چهار طبقه "سه طبقه مکّی و یک طبقه مدنی"<ref>گوستاو ویل (weil gustav) و نولدکه (Noldeke) (۱۹۳۰ـ ۱۸۳۶ م)، خاورشناسان آلمانی، رودول (john medoRodwell)، خاورشناس انگلیسی، درنبورگ (Drenbeureg)، خاورشناس سوئدی و بلاشر (Blachere) خاورشناس فرانسوی، سورهها را به سه طبقۀ مکی و یک طبقۀ مدنی تقسیم کردهاند.</ref> و بعضی به شش طبقه "پنج طبقه مکی و یک طبقه مدنی" تقسیم کردهاند.
| | # آیه سُخره |
| *ویل، خاورشناس آلمانی، در کتابی به نام مقدمه تاریخی ـ انتقادی بر قرآن<ref>Historisch - Kritishe Einleitung in der Koran.</ref>، سورهها را در چهار گروه مکّی "سه گروه مکی و یک گروه مدنی" طبقهبندی کرده است. او گروههای سهگانه مکّی را به ترتیب به فواصل زمانی زیر نسبت داده است:
| | # [[آیه سرقت]] |
| #از مبعث تا هجرت گروهی از مسلمانان به حبشه "سالهای اول تا پنجم بعثت". | | # [[آیه سقایة الحاج]] |
| #از هجرت به حبشه تا بازگشت [[پیامبر]]{{صل}} از سفر طائف "سالهای پنجم تا دهم بعثت".
| | # [[آیه سؤال]] |
| #از بازگشت از سفر طائف تا هجرت [[پیامبر]]{{صل}} سالهای دهم تا سیزدهم بعثت. | | # آیه شعوبیّه |
| *او معیارهای طبقهبندی خود را، اشارات قرآن به حوادث تاریخدار، سبکِ سورهها و مضامینِ آنها دانسته است. *ویژگیهایی که این خاورشناس برای هر یک از طبقات چهارگانه بیان کرده است، به قرار زیر است: سورههای گروه نخست، اغلب آیاتی کوتاه، موزون و خیالانگیز دارند و بیشتر با سوگند آغاز میشوند. سورههای گروه دوم، آیاتی بلندتر و به نثر نزدیکتر دارند، اما همچنان خیالانگیزند، همچنین در آنها نشانههای خدا در طبیعت، صفات الهی و اوصاف بهشت و دوزخ ذکر شده است. آیات گروه سوم، از گروه دوم بلندتر و به نثر نزدیکترند، اما دیگر خیالانگیز نیستند، بلکه بیشتر به شکل خطابهاند. همچنین در آنها اخبار مربوط به پیامبران و کیفرهای اخروی با تفصیل بیشتری بازگو شده است. آیات گروه چهارم نیز، قدرت روزافزون سیاسی [[حضرت محمد]]{{صل}} و سیر رویدادهای پس از هجرت را گزارش میکنند<ref>درآمدی بر تاریخگذاری قرآن، جعفر نکونام، تهران، هستینما، ۱۳۸۰ ش، ص ۱۳ - ۱۵.</ref>.
| | # آیه [[شفاء]] |
| *نولدکه نیز مشابه همین طبقهبندی را در کتاب تاریخ قرآن عرضه کرده است. او ویژگی هر یک از طبقات را چنین بیان کرده است:
| | # آیه صَفح |
| *ویژگیهای طبقه اول مکی: کوتاهی سور و زبان شعری و وجود سوگندها
| | # [[آیه صلح]] |
| *ویژگیهای طبقه دوم: وعظ و انذار و استفاده از قصص پیامبران در تأیید وعدهها و وعیدهای قرآن
| | # آیه [[صلوات بر پیامبر]] |
| *ویژگیهای طبقه سوم: تشدید لهجه تهدید و وعید علیه کافران
| | # [[آیه صوم]] |
| *ویژگیهای طبقه چهارم: پرداختن به شئون اجتماعی و وضع قوانین و مقررات<ref>ر.ک: تاریخ القرآن، نولدکه، مؤسسة کونراد ـ ٱدناور، بیروت، ۲۰۰۴ م، ص ۱۴۸ ـ ۶۸.</ref>.
| | # آیه طریق [[دعوت]] |
| *برخی از خاورشناسان در پژوهشهای خود در باره آیات مکّی و مدنی به دنبال این هدف بودهاند تا نشان دهند که بین آیات مکّی و مدنی تعارضهایی وجود دارد<ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۱۳ - ۱۱۵.</ref>.
| | # [[آیه طلاق]] |
| | | # [[آیه ظهار]] |
| ==ویژگیهای [[وحی]] مکی و مدنی==
| | # آیه عَبَث |
| *اگرچه دورههای مکی و مدنی تفاوتهای عمدهای با یکدیگر دارند و ویژگیهای هر دوره در وحی قرآنی نیز منعکس شده است، اما حقیقت آن است که یافتن شاخصهها و معیارهایی که به طور قاطع به تمایز بین مکی و مدنی دلالت داشته باشد، دور از واقعیت است. چرا که تحوّلات و تغییرات، نه در واقعیت خارجی و نه در متن قرآنی، هیچگاه به یکباره و با جهش روی نداده است، بلکه این تحوّل به صورت تدریجی بوده است. از این رو، تفکیک قطعی مکی از مدنی بر اساس ویژگیها و توصیفات کلی امکانپذیر نخواهد بود، چرا که برخی از آیات مدنی، ویژگیهای آیات مکی را دارند و به عکس، پارهای آیات مکی نیز ویژگیهای آیات مدنی را دارند<ref>ر.ک: معنای متن: پژوهشی در علوم قرآن، نصر حامد ابو زید، ترجمۀ مرتضی کریمینیا، تهران، طرح نو، ۱۳۸۰ ﻫ. ش، ص ۱۵۰ و ۱۷۷.</ref>. بر این پایه، در بسیاری از موارد، در کنار ویژگیهای موجود در متن قرآن، نقل معتبر نیز چارهساز است.
| | # [[آیه عده]] طلاق |
| *به طور کلی، تفاوتهای آیات و سور مکی و مدنی را میتوان در دو بخش ساختار و محتوا خلاصه کرد. تغییر در این دو بخش، هر دو معلول یک علت اساسی است و آن تفاوت بنیادینِ بین این دو مرحله در دعوت و رسالت [[پیامبر اکرم]]{{صل است. یکی از نظریهپردازان معاصر معتقد است که مراحل دعوت [[پیامبر]]{{صل}}، که در مکه به ندرت از حدِّ "انذار" به حدّ "رسالت" میرسید، با هجرت به مدینه به کلّی به "رسالت" تبدیل شد. تفاوت میان انذار و رسالت در این است که انذار مربوط به مقابله با مفاهیم فکری گذشته و دعوت به مفاهیم جدید است. پیامبر و وحی در مرحله انذار، مردم را متوجه فساد موجود در جامعه میکنند و از این راه، جامعه را به تغییر وضع موجود بر میانگیزند. رسالت به معنای ساخت ایدئولوژی جامعه جدید است<ref>ر.ک: معنای متن: پژوهشی در علوم قرآن، نصر حامد ابو زید، ترجمۀ مرتضی کریمینیا، تهران، طرح نو، ۱۳۸۰ ﻫ. ش، ص و ۱۴۸.</ref><ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۱۸ - ۱۱۹.</ref>.
| | # [[آیه عزت]] |
| ===معیارهای اسلوبی در تفکیک مکی و مدنی===
| | # [[آیه غار]] |
| *برای تفکیک مکی از مدنی، دستکم میتوان از دو ویژگی اسلوبی "کوتاهی و بلندی آیات و سور" و "رعایت فاصله" یاد کرد. هر دو ویژگی مورد اشاره را میتوان در پرتو ویژگی اصلی هر یک از دو دوره مکی و مدنی تبیین کرد؛ هدف اصلی وحی، در مرحله إنذار اثرگذاری است که آن نیز به نوبه خود در زبانی کوبنده، موزون و آهنگین نُمود پیدا میکند. بر این پایه، بیشتر آیات و سورههای مکی کوتاه، آهنگین و موزوناند. اما در مرحله رسالت، امری فراتر از اثرگذاریِ صِرف مورد نظر است؛ از این رو، رسالت از نظر ساخت و ترکیب به زبان متفاوتی نیازمند است. در رسالت، جنبه انتقال معلومات بر جنبه اثرگذاری غلبه دارد، در حالی که در انذار، اولویت با اثرگذاری است<ref>ر.ک: معنای متن: پژوهشی در علوم قرآن، نصر حامد ابو زید، ترجمۀ مرتضی کریمینیا، تهران، طرح نو، ۱۳۸۰ ﻫ. ش، ص ۱۵۳.</ref>.
| | # [[آیه فطرت]] |
| *نکته دیگر که در علت فاصلهدار بودن آیات مکی گفتهاند این است که در دوره جاهلیت مسجع بودن کلام کاهنان نشانهای بر غیبی بودن سخن آنان بود؛ از این رو، سردمداران کفر بسیار میکوشیدند قرآن را در شمار شعر شاعران و سجع کاهنان و اورادِ ساحران درآورند، اما در آن راه درماندند<ref>ر.ک: معنای متن: پژوهشی در علوم قرآن، نصر حامد ابو زید، ترجمۀ مرتضی کریمینیا، تهران، طرح نو، ۱۳۸۰ ﻫ. ش، ص۲۷.</ref>، چرا که قرآن خود به صراحت این اتهامها را رد کرد:{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| فَذَكِّرْ فَمَا أَنتَ بِنِعْمَتِ رَبِّكَ بِكَاهِنٍ وَلا مَجْنُونٍ أَمْ يَقُولُونَ شَاعِرٌ نَّتَرَبَّصُ بِهِ رَيْبَ الْمَنُونِ }}﴾}}<ref> بنابراین پند بده که تو، به (برکت) نعمت پروردگارت نه پیشگویی و نه دیوانه. بلکه میگویند شاعری است که چشم به راه رویداد مرگ برای اوییم؛ سوره طور، آیه: ۲۹- ۳۰.</ref>، {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|وَمَا عَلَّمْنَاهُ الشِّعْرَ وَمَا يَنبَغِي لَهُ إِنْ هُوَ إِلاَّ ذِكْرٌ وَقُرْآنٌ مُّبِينٌ}}﴾}}<ref> و به او شعر نیاموختیم و در خور او (نیز) نیست، این (کتاب) جز پند و قرآنی روشن نیست؛ سوره یس، آیه:۶۹.</ref> خداوند از کافران میخواهد که اگر میتوانند با کمک گرفتن از جن و انس، کلامی شبیه آن بیاورند، اما همگی در این مبارزه طلبی در میمانند. شاید سرّ اینکه قرآن در تحدّی خود، از جن نیز نام برده است، این باشد که باور عمومی در آن دوران بر این بود که کاهنان پیامهای خود را از جنّیان دریافت میکنند.
| | # [[آیه فیء]] |
| *حاصل آنکه، [[وحی قرآنی]] در مکّه برای اثرگذاری و نیز به نشانه غیبی بودن، از درونمایههای بلاغی و جنبههای ادبی بهرهمند بود. داستانِ ایمان آوردن [[عمر بن خطاب]] ـ در اثر شنیدن نخستین آیات سوره طه، به رغم آنکه وی در صددِ تأدیب خواهر و شوهر خواهر خود به دلیل پیروی از [[پیامبر اکرم]]{{صل}} بود ـ گواه آن است که ایمان آوردن او به الهی بودن منشأ قرآن و پذیرفتن دین اسلام، بر پایه همین "جنبه ادبی" قرآن صورت گرفته است<ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۱۹.</ref>.
| | # آیه [[قذف]] و لعان |
| *حِکمت دیگری که برای کوتاه و موزون بودن آیات و سور مکی ذکر کردهاند، آن است که حفظ و به خاطرسپاری آن آسانتر است، چرا که مردم مکه کمتر با کتابت آشنایی داشتند و بیشتر بر حافظه خود تکیه میکردند.
| | # آیه [[قصاص]] |
| از دیگر ویژگیهای اسلوبی قرآنِ مکی، وجود سوگندها، تکرار واژه "کلّا" و نیز "حروف مقطعه" ابتدای سورهها به جز سورههای بقره و آلعمران و شاید رعد است. همچنین عبارت {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| يَا أَيُّهَا النَّاس}}﴾}} بیشتر در [[وحی]] مکی آمده است<ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۱۹.</ref>.
| | # [[آیه کتمان]] /[[حرمت]] [[کتمان]] |
| | | # [[آیه کنز]] |
| ==ویژگیهای محتوایی مکی و مدنی==
| | # [[آیه لیلة المبیت]] |
| *از نظر محتوایی، مدار دعوت اسلامی در مکه، بیشتر حول محور ایمان به خدای یکتا و روز قیامت و تصویر بهشت و دوزخ دور میزند. تمسک به اخلاق پسندیده، پایداری بر نیکی، ذکر داستان پیامبران و اقوام گذشته، مجادله با مشرکان، حمله شدید به شرک و بتپرستی، آشکار ساختن زشتی تقلید و نادرستی عادات سنتی آنها از قبیل نفرت از دختر، مباح شمردن ناموس، خوردن مال یتیم و آدمکشی از دیگر محورهایی است که [[وحی]] مکی به آنها پرداخته است. همچنین [[وحی]] مکی، ضمن فرو ریختن دیوارهای کجبنیان اعتقادات و اخلاقیات نادرست، به بیان اصول اخلاقی و دعوت به رعایت حقوق اجتماعی میپردازد و به تدریج مردم را با اصول تازه زندگی آشنا میکند و پایه عقاید و اخلاقیات و عادات نیکو را استحکام میبخشد تا بَعدها، در [[وحی]] مدنی، به تدریج به "عبادات" و "معاملات" بپردازد.
| | # [[آیه مباهله]] |
| *محور سور مدنی از نظر محتوایی، قانونگذاری و بنای اجتماع جدید است و در این مسیر از کلامی نرم و آرام، همراه با بیان تفصیلی و مناسب با مردمی پذیرای حق، بهره میگیرد. سورههای مدنی از حدود، فرائض، حقوق افراد، قوانین مدنی و احکام شرعی سخن میگوید.
| | # [[آیه مجاهدان]] |
| *[[وحی]] مدنی به طور عمده با چهار گروه از مردم سر و کار دارد:
| | # [[آیه محاربه]] |
| #مشرکان مکّه که در صدد شکست دادن پیامبر و یاران او هستند، که در اینباره آیات جهاد و احکام مربوط به آن نازل شده است؛ | | # آیه محو و [[اثبات]] |
| #اهل کتاب، شامل یهود و نصاری، که قرآن آنها را به وحدت بر عقیده بنیادین مورد اتفاق "توحید"<ref>قرآن میفرماید:{{عربی|اندازه=120%|﴿{{متن قرآن|قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ تَعَالَوْا إِلَى كَلِمَةٍ سَوَاء بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمْ أَلاَّ نَعْبُدَ إِلاَّ اللَّهَ وَلاَ نُشْرِكَ بِهِ شَيْئًا وَلاَ يَتَّخِذَ بَعْضُنَا بَعْضًا أَرْبَابًا مِّن دُونِ اللَّهِ فَإِن تَوَلَّوْا فَقُولُواْ اشْهَدُواْ بِأَنَّا مُسْلِمُونَ }}﴾}}؛ بگو: ای اهل کتاب! بیایید بر کلمهای که میان ما و شما برابر است همداستان شویم که: جز خداوند را نپرستیم و چیزی را شریک او ندانیم و یکی از ما، دیگری را به جای خداوند، به خدایی نگیرد پس اگر روی گرداندند بگویید: گواه باشید که ما مسلمانیم؛ سوره آل عمران، آیه:۶۴.</ref> و مجادله احسن در موارد اختلافی فرا میخواند<ref>{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|وَلا تُجَادِلُوا أَهْلَ الْكِتَابِ إِلاَّ بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ إِلاَّ الَّذِينَ ظَلَمُوا مِنْهُمْ وَقُولُوا آمَنَّا بِالَّذِي أُنزِلَ إِلَيْنَا وَأُنزِلَ إِلَيْكُمْ وَإِلَهُنَا وَإِلَهُكُمْ وَاحِدٌ وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ}}﴾}}؛ و با اهل کتاب جز به بهترین شیوه چالش مکنید مگر با ستمکاران از ایشان و بگویید: ما به آنچه بر ما و بر شما فرو فرستادهاند ایمان آوردهایم و خدای ما و خدای شما یکی است و ما فرمانپذیر اوییم؛ سوره عنکبوت، آیه:۴۶.</ref>؛ | | # [[آیه مشیت]] / [[آیه استثناء]] |
| #منافقان که گروهی نوظهور بودند، زیرا اسلام در مدینه شوکتی یافت؛ از این رو، گروهی بدباطن، به طمع یا از رویِ ترس، نقاب مسلمانی بر چهره زدند و زبان به اعتراف و دل به انکار واداشتند؛ | | # [[آیه مُلک]] |
| #مؤمنان که در حال شکلدهی جامعه مدنی بودند و از [[وحی]] الهی انتظار میرفت که بیانگر قوانین و مقررات لازم برای تأسیس و تداوم حیات چنین اجتماعی باشد<ref>ر.ک: علوم قرآن، رجبعلی مظلومی، ج ۱ ص ۱۹۰ ـ ۱۸۸.</ref><ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۲۱.</ref>. | | # [[آیه مودت]]/ [[آیه قربی]] |
| ==بررسی و نقد برخی از شبهات مطرحشده پیرامون تعارض آیات مکی و مدنی==
| | # [[آیه میثاق]]/ آیه[[ذر]] |
| *عدهای از خاورشناسان گفتهاند که در متن قرآن دو شیوه متعارض مشاهده میشود که هیچگونه ارتباطی با هم ندارد. آنها این امر را بیانگر آن دانستهاند که قرآن صرفاً کتابی بشری است و پدیدآورنده آن، به طور کامل، تحت تأثیر محیط و جامعهای بوده که در آن زندگی میکرده است. آنها در تبیین ادعای خود به بیان چند نکته به شرح زیر پرداختهاند:
| | # [[آیه نبأ]] |
| #ملاحظه میشود که در آیات و سور مکی قرآن، ویژگیهای یک جامعه منحط از قبیل شدّت، خشونت، خشم، تندگویی و تهدید منعکس شده است و بر عکس، در بخش مدنیِ قرآن، نشانههای فرهنگ و روشنگری مشاهده میشود. آنها برای اثبات این ادعا به برخی از آیات مکی نظیر سورههای مسد، عصر و تکاثر تمسّک جستهاند<ref>ر.ک: مناهل العرفان، عبدالعظیم زرقانی، بیروت، دار الفكر، ۱۹۸۸ م، ج ۱، ص ۲۰۸ ـ ۲۰۷.</ref>. | | # [[آیه نجوا]] |
| #قرآن مکی با اثرپذیری از جامعه امّی و بی سوادِ مکه و سَبْْک کاهنان و منجمان، دارای نثری مسجّع و آیاتی کوتاه و فاصلهدار است، اما آیات و سور قرآن مدنی طولانی است. | | # [[آیه نسخ]] |
| #قرآنِ مکی، به دلیل حضور در جامعهای بدوی، خالی از تشریع و قانونگذاری است، در حالیکه قرآنِ مدنی به دلیل حضور در جامعه قانونمند، با وضع و تبیین قوانین و مقررات همراه است<ref>ر.ک: مناهل العرفان، عبدالعظیم زرقانی، بیروت، دار الفكر، ۱۹۸۸ م، ج ۱، ص ۲۰۷ ـ ۲۱۹.</ref>. | | # آیه نَفر |
| *در جواب ادعاهای این گروه از خاورشناسان به بیان چند نکته میپردازیم:
| | # [[آیه نفی سبیل]] |
| #نه آیات قرآن و نه رویه مسلمانان در مکه، هیچکدام خشونت و تهدید را توصیه نکردهاند. قوانین مربوط به جهاد و قتال نیز در مکه نازل نشده است و مسلمانان عملاً، نه به صورت جمعی و نه به صورت انفرادی، مأموریتی در جهت برخورد قهرآمیز با مشرکان نداشتهاند. دوره مکی دورهای است که پیامبر و مسلمانان با صبر و شکیبایی و عفو و تسامح، خشونتها و تهدیدهای طرفِ مقابل را به جان میخریدند و آنها را تحمل و خنثی میکردند و بدین وسیله از نهال نوپای عقیده توحیدی دفاع میکردند. | | # [[آیه نور]] |
| #اگر منظور از وجود عنصر خشونت و تهدید، آیاتی است که قرآن، کافران و مجرمان را به آتش دوزخ و عذابهای اخروی تهدید میکند، این امر از شیوههای مهم تربیتی است که در همه نظامهای تربیتی، متناسب با اهداف و اهمیت موضوع، به کار گرفته میشود. این همان چیزی است که در نظامهای تربیتی نوین به نام تشویق و تنبیه، اعمال میشود. از نظر همه ادیان ابراهیمی، سعادت و شقاوت ابدیِ انسان در گرو ایمان و عملِ او است؛ از این رو، این امر اختصاص به آیات مکی ندارد، بلکه انذار و تبشیر، هم در آیات مکی و هم در آیات مدنی وجود دارد، اما به دلیل تفاوتهای موجود در جامعه مکه و مدینه، انذار و تبشیر شدت و ضعف پیدا کرده است. برای نمونه، آیات زیر از جمله آیات مکی است که در آنها به عفو و گذشت در مقابل رفتار بد و ناشایست کافران توصیه شده است:{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|وَمَنْ أَحْسَنُ قَوْلا مِّمَّن دَعَا إِلَى اللَّهِ وَعَمِلَ صَالِحًا وَقَالَ إِنَّنِي مِنَ الْمُسْلِمِينَ وَلا تَسْتَوِي الْحَسَنَةُ وَلا السَّيِّئَةُ ادْفَعْ بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ فَإِذَا الَّذِي بَيْنَكَ وَبَيْنَهُ عَدَاوَةٌ كَأَنَّهُ وَلِيٌّ حَمِيمٌ وَمَا يُلَقَّاهَا إِلاَّ الَّذِينَ صَبَرُوا وَمَا يُلَقَّاهَا إِلاَّ ذُو حَظٍّ عَظِيمٍ }}﴾}}<ref> و نکوگفتارتر از کسی که به سوی خداوند فرا خواند و کاری شایسته کند و گوید: من از مسلمانانم کیست؟نیکی با بدی برابر نیست؛ به بهترین شیوه (دیگران را از چالش با خود) باز دار، ناگاه آن کس که میان تو و او دشمنی است چون دوستی مهربان میگردد.و این را جز به آنان که میشکیبند، و جز به آنان که بهرهای سترگ دارند فرانیاموزند؛ سوره فصلت، آیه: ۳۳- ۳۵.</ref>. همچنین آیات زیر از جمله آیات مدنی است که در آن مجرمان در مقابل کارهای ناشایستشان به عذاب الهی تهدید شدهاند:{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ لَن تُغْنِيَ عَنْهُمْ أَمْوَالُهُمْ وَلاَ أَوْلادُهُم مِّنَ اللَّهِ شَيْئًا وَأُولَئِكَ هُمْ وَقُودُ النَّارِ كَدَأْبِ آلِ فِرْعَوْنَ وَالَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ كَذَّبُواْ بِآيَاتِنَا فَأَخَذَهُمُ اللَّهُ بِذُنُوبِهِمْ وَاللَّهُ شَدِيدُ الْعِقَابِ قُل لِّلَّذِينَ كَفَرُواْ سَتُغْلَبُونَ وَتُحْشَرُونَ إِلَى جَهَنَّمَ وَبِئْسَ الْمِهَادُ}}﴾}}<ref> بیگمان داراییها و فرزندان کافران هرگز برای آنان در برابر (عذاب) خداوند هیچ سودی نخواهد داشت و آنانند که هیزم دوزخاند.همچون شیوه فرعونیان و پیشینیان آنان که آیات ما را دروغ شمردند و خداوند آنها را برای گناهانشان فرو گرفت و خداوند، سخت کیفر است.به کافران بگو: از پا در خواهید آمد و در دوزخ گردتان میآورند و این بستر، بد است؛ سوره آل عمران، آیه: ۱۰- ۱۲.</ref>. | | # آیه و إن یکاد |
| #تدریجی بودن نزول قرآن از ویژگیهای این کتاب آسمانی است که در خود قرآن نیز به این نوع نزول و برخی حکمتهای آن اشاره کرده است {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَوْلا نُزِّلَ عَلَيْهِ الْقُرْآنُ جُمْلَةً وَاحِدَةً كَذَلِكَ لِنُثَبِّتَ بِهِ فُؤَادَكَ وَرَتَّلْنَاهُ تَرْتِيلا وَلا يَأْتُونَكَ بِمَثَلٍ إِلاَّ جِئْنَاكَ بِالْحَقِّ وَأَحْسَنَ تَفْسِيرًا }}﴾}}<ref> و کافران گفتند: چرا قرآن بر او یکجا فرو فرستاده نشده است؟ این چنین (فرو فرستادهایم) تا دلت را بدان استوار داریم و آن را (بر تو) بسیار آرام خواندیم؛ سوره فرقان، آیه: ۳۲ - ۳۳.</ref>. [[وحی]] قرآنی همچون یک مربی، جامعه نوپای دینی را به رشد و کمال میرساند و طبیعی است که در سیر تربیتِ این جامعه، شیوههای گوناگون و دستور العملهای مختلف، متناسب با وضعیتهای گوناگون زمانی، مکانی و اجتماعی، به کار گرفته شود. از این رو، در آغاز دعوت، در برخورد با شرک و جرمهای بسیار بزرگ، ضمن تأکید بر توحید و نفی شرک، مشرکان و مجرمان به عذابهای دردناک تهدید میشوند، اما پس از شکلگیری جامعه توحیدی، ضرورت شکلگیری نظامی قانونمند، که در آن ارتباط فرد، خانواده و جامعه با خدا و طبیعت در آن روشن باشد، آشکار میشود. همچنین اختصاص دادن قانونگذاری به مدینه، امری خلاف واقع است، چرا که در آیات مکی نیز به قوانین و احکام شریعت اشاره شده است، به عنوان مثال آیات زیر ضمن آیات مکی نازل شده است:{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|قُلْ تَعَالَوْا أَتْلُ مَا حَرَّمَ رَبُّكُمْ عَلَيْكُمْ أَلاَّ تُشْرِكُواْ بِهِ شَيْئًا وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا وَلاَ تَقْتُلُواْ أَوْلادَكُم مِّنْ إِمْلاقٍ نَّحْنُ نَرْزُقُكُمْ وَإِيَّاهُمْ وَلاَ تَقْرَبُواْ الْفَوَاحِشَ مَا ظَهَرَ مِنْهَا وَمَا بَطَنَ وَلاَ تَقْتُلُواْ النَّفْسَ الَّتِي حَرَّمَ اللَّهُ إِلاَّ بِالْحَقِّ ذَلِكُمْ وَصَّاكُمْ بِهِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ وَلاَ تَقْرَبُواْ مَالَ الْيَتِيمِ إِلاَّ بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ حَتَّى يَبْلُغَ أَشُدَّهُ وَأَوْفُواْ الْكَيْلَ وَالْمِيزَانَ بِالْقِسْطِ لاَ نُكَلِّفُ نَفْسًا إِلاَّ وُسْعَهَا وَإِذَا قُلْتُمْ فَاعْدِلُواْ وَلَوْ كَانَ ذَا قُرْبَى وَبِعَهْدِ اللَّهِ أَوْفُواْ ذَلِكُمْ وَصَّاكُم بِهِ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ}}﴾}}<ref> بگو: بیایید تا آنچه را خداوند بر شما حرام کرده است برایتان بخوانم: اینکه چیزی را شریک او نگیرید و به پدر و مادر نیکی کنید و فرزندانتان را از ناداری نکشید؛ ما به شما و آنان روزی میرسانیم؛ و زشتکاریهای آشکار و پنهان نزدیک نشوید و آن کس را که خداوند (کشتن او را) حرام کرده است جز به حق مکشید؛ این است آنچه شما را به آن سفارش کرده است باشد که خرد ورزید و به مال یتیم نزدیک نشوید جز به گونهای که (برای یتیم) نیکوتر است تا به برنایی خود برسد و پیمانه و ترازو را با دادگری، تمام بپیمایید؛ ما بر کسی جز (برابر با) توانش تکلیف نمیکنیم؛ و چون سخن میگویید با دادگری بگویید هر چند (درباره) خویشاوند باشد؛ و به پیمان با خداوند وفا کنید؛ این است آنچه شما را بدان سفارش کرده است باشد که پند گیرید؛ سوره انعام، آیه: ۱۵۱- ۱۵۲.</ref>.
| | # [[آیه وصیت]] |
| #این ادعا که بین وحی مکی و وحی مدنی هیچ ارتباطی وجود ندارد، بیشتر به گزافهگویی شبیه است نه یک ادعای قابل طرح در یک بحث علمی؛ قرآن مجموعهای است که هر کس در آن با دیده انصاف نظر کند، بیش از آنکه بین اجزایش از نظر اسلوب و محتوا، اختلاف مشاهده کند، وحدت و انسجام را بر آن حاکم میبیند. قرآن اگرچه از نظر اسلوب و سبک بیان، از شیوههای مختلف بهره گرفته است، به گونهای که آیات آنگاه کوتاه و موزون و برای انذار و تبشیر و گاه بلند و بدون فاصله و برای بیان احکام شریعت است، اما اشتراک آن در اسلوب نیز به گونهای است که در مجموع، این کتاب را از هر کتاب دیگر و حتی احادیث پیامبر و معصومان، متمایز میسازد. از نظر محتوایی نیز به رغم آنکه قرآن به موضوعات بسیار متنوع پرداخته است، اما همه آنها همچون دانههای تسبیح حول یک محور، که همان محور توحید است، گرد آمدهاند و از همین رو، در وصف آن آمده است:{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| كِتَابٌ أُحْكِمَتْ آيَاتُهُ ثُمَّ فُصِّلَتْ مِن لَّدُنْ حَكِيمٍ خَبِيرٍ}}﴾}}<ref> این کتابی است که آیاتش استواری یافته سپس از سوی فرزانهای آگاه آشکار شده است؛ سوره هود، آیه:۱.</ref> و بر همین پایه است که کتابی سراسر متشابه است: {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| اللَّهُ نَزَّلَ أَحْسَنَ الْحَدِيثِ كِتَابًا مُّتَشَابِهًا مَّثَانِيَ تَقْشَعِرُّ مِنْهُ جُلُودُ الَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ ثُمَّ تَلِينُ جُلُودُهُمْ وَقُلُوبُهُمْ إِلَى ذِكْرِ اللَّهِ ذَلِكَ هُدَى اللَّهِ يَهْدِي بِهِ مَنْ يَشَاء وَمَن يُضْلِلْ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِنْ هَادٍ }}﴾}}<ref> خداوند است که بهترین گفتار را (به گونه) کتابی (با آیاتی) همانند دوگانه (یعنی مکرّر) فرو فرستاده است؛ پوستهای آنان که از پروردگار خویش میهراسند از آن به لرزه میافتد سپس با یاد خداوند پوستها و دلهاشان نرم میشود؛ این رهنمود خداوند است که با آن هر که را بخواهد راهنمایی میکند و هر که را گمراه گذارد رهنمونی نخواهد داشت؛ سوره زمر، آیه:۲۳.</ref>.
| | # [[آیه وضو]] |
| *تأکید بر الوهیت و ربوبیت خداوند و صفات جلال و جمال پروردگار و دعوت انسان به عبودیت حق، در سراسر قرآن به چشم میخورد. آنچه از اختلاف در سبک و محتوا بین آیات و سور مکی و مدنی به چشم میخورد، از امتیازات قرآن و بیشتر نشانه وحیانی بودن آن است، چرا که در همه احوال، به مقتضای حال و فضای موجود در جامعه سخن گفته و در عین حال از نظر فصاحت و بلاغت، در اوج باقی مانده و از نظر محتوا، طرح منسجمی را از یک دین جامع و برتر فراهم آورده است<ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۲۱ - ۱۲۴.</ref>.
| | # [[آیه ولایت]] |
| ==آیات استثنا==
| | # [[آیة الکرسی]] |
| *هشتاد و شش سوره قرآن مکی، و بیست و هشت سوره آن مدنی است، اما گذشته از اختلاف روایات در مورد مکی یا مدنی بودن برخی از سورهها، برخی از آیات نیز به عنوان استثنا مطرح شدهاند؛ به این معنی که برخی آیات مدنی در سورههای مکی و برخی آیات مکی در سورههای مدنی قرار گرفته است. [[بدرالدین زرکشی]] در کتاب البرهان فی علوم القرآن، دو باب را به نامهای "الآیات المدنیات فی السور المکیه" و "الآیات المکیة فی السور المدنیه"، به این موضوع اختصاص داده است<ref>ر.ک: البرهان فی علوم القرآن، بدر الدین زركشی، بیروت، دار المعرفه، ۱۹۹۴ م، ج ۱، ص ۲۶۰ ـ ۲۵۷، نوع نهم.</ref>.
| | # آیینهای [[جهاد]] |
| *[[جلال الدین سیوطی]] نیز فصلی را به نام "فی ذکر ما استثنی من المکی و المدنی" به این امر اختصاص داده و آیاتی را به عنوان استثنا برای پنجاه و دو سوره قرآن، شامل مکی و مدنی، نقل کرده است<ref>ر.ک: الاتقان فی علوم القرآن، جلال الدین سیوطی، قم، منشورات الرضی، ۱۳۶۳ ش، ج ۱، ص ۵۲ ـ ۴۳، نوع اول.</ref>.
| | # [[ابتلاء]] و [[آزمایش]] [[مؤمنان]] |
| *تفاوت بحثهای [[بدرالدین زرکشی]] و [[جلال الدین سیوطی]] در این است که [[بدرالدین زرکشی]] تنها به نقل آنچه به عنوان استثنا روایت شده، پرداخته است، در حالیکه [[جلال الدین سیوطی]] در برخی موارد، آنها را نقد هم نموده است. برای نمونه، در مورد استثنای نُه آیه از سوره انعام میگوید:" نقل صحیحی در اینباره وجود ندارد و علاوه بر آن، روایت شده است که این سوره به صورت یکپارچه نازل شده است"<ref>ر.ک: الاتقان فی علوم القرآن، جلال الدین سیوطی، قم، منشورات الرضی، ۱۳۶۳ ش، ج ۱، ص ۴۳، نوع اول.</ref>.
| | # [[ابرار]] / [[اولیاء]] |
| او همچنین استثنای سه آیه اول سوره یوسف را امری واهی شمرده است<ref>ر.ک: الاتقان فی علوم القرآن، جلال الدین سیوطی، قم، منشورات الرضی، ۱۳۶۳ ش، ج ۱، ص ۴۵، نوع اول.</ref>.
| | # عام |
| *[[عبد الرّزاق حسین احمد]]، نویسنده دوره دو جلدی المکی و المدنی فی القرآن الکریم، مفصلترین بحث را در زمینه آیات استثنا انجام داده و اکثریت قریب به اتفاق این ادعاها را متکی بر دلیل صحیح ندانسته است<ref>المکی و المدنی فی القرآن الکریم، عبد الرزاق حسین احمد، قاهره، دار ابنعفان، ۱۹۹۹ م، ج ۲، ص ۸۱۱ ـ ۵۰۷.</ref>. وی تنها دو مورد از این ادعاها را صحیح دانسته است و آن دو آیه مدنی است که در سورههای مکی قرار گرفته است<ref>و این دو مورد، آیات ۱۱۴ سورۀ هود و ۱۱۰ سورۀ نحل است؛ ر.ک: المکی و المدنی فی القرآن الکریم، عبد الرزاق حسین احمد، ص ۸۲۷ ـ ۸۱۲.</ref>.
| | # [[ابراهیم]]{{ع}} |
| *آیت الله [[محمد هادی معرفت]] نیز در جلد اول مجموعه التمهید فی علوم القرآن به طور گسترده به این موضوع پرداخته است. او نیز معتقد است که آنچه سیوطی و دیگران به عنوان آیات استثنا گزارش کردهاند، بر نقل صحیحی استوار نیست، بلکه بیشتر آنها بر اجتهادات شخصی متکی است<ref>التمهید فی علوم القرآن، محمد هادی معرفت، قم، مؤسسة النشر الاسلامی، ۱۴۱۶ ﻫ. چاپ سوم، ج ۱، ص ۱۳۸ ـ ۱۳۷.</ref>. وی تکتک موارد ادعاشده را ذکر و همه موارد را رد کرده است<ref>التمهید فی علوم القرآن، محمد هادی معرفت، قم، مؤسسة النشر الاسلامی، ۱۴۱۶ ﻫ. چاپ سوم، ج ۱، ص ۲۰۳ ـ ۱۳۹.</ref>.
| | # [[ابر]]، ویژگیها و امکانات |
| *واقعیت آن است که مبنای چینش آیات در هر یک از سورههای قرآن به این صورت است که از ابتدا تا انتها به دنبال یکدیگر نازل شدهاند. تعدادی از روایات حکایت از آن دارد که نزول آیه {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ}}﴾}} علامت پایان یافتن یک سوره و شروع سوره دیگری بوده است. از [[امام صادق]]{{ع}} نقل شده است که فرمود:"همانا با نزول بَسْمَلَه، انتهای سوره و ابتدای سوره دیگر معلوم میشد"<ref>تفسیر العیاشی، محمد بن مسعود عیاش (عیاشی) تحقیقق سید هاشم رسولی محلّاتی، تهران، مکتبة العلمیة الاسلامیة، بیتا، ج ۱، ص ۱۹.</ref>. از این روایت و روایات مشابه آن<ref>ر.ک: المستدرک، حاکم نیشابوری، بیروت، دار المعرفة، ۱۴۰۶ م، ج ۱، ص ۳۳۱؛ السنن الکبری، نسائی، بیروت، دار الکتب العلمیة، ۱۹۹۱ م، ج ۲، ص ۴۳۲.</ref>. استفاده میشود که چینش آیات در هر یک از سورهها به ترتیب نزول بوده است. بنا بر این، اصل و مبنا در چینش آیات در سورهها، چینش آنها به ترتیب نزول است و اثبات ناهماهنگی آیه یا آیاتی از یک سوره از نظر ترتیب زمانی با آیات قبل و بعد آن، نیازمند دلیل است که یا باید مضمون آیه یا آیات مذکور در آن صراحت داشته باشد، یا نقل صحیح و صریحی در اینباره رسیده باشد. به طور کلی این مطلب که [[پیامبر اکرم]]{{صل}} در مواردی دستور داده باشند که آیه یا آیاتی را در سورهای که قبلاً نازل شده است، قرار دهند، قابل پذیرش است، چنانکه روایاتی نیز بر این امر دلالت دارد<ref>ر.ک: کتاب المصاحف، ابو داود سجستانی، بیروت، دار الکتب العلمیة، ۱۹۸۵ م، ص ۳۹؛ الاتقان فی علوم القرآن، سیوطی، دمشق، بیروت، دار ابن کثیر و دار العلوم الانسانیة، ج ۷، ص ۱۹۵ ـ ۱۹۴ (نوع ۱۸).</ref>. از این رو، وجود برخی از آیات مدنی در سور مکی، در صورت وجود دلیل معتبر انکار نمیشود. به این معنی که ممکن است آیه یا آیاتی بعد از هجرت نازل شده باشد و [[پیامبر اکرم]]{{صل}} به امر الهی آن را در یکی از سورههای مکی قرار داده باشند. اما بسیار بعید به نظر میرسد که آیه یا آیاتی قبل از هجرت نازل شده و تا زمان بعد از هجرت هیچ در سورهای جای نگرفته باشد و پس از هجرت در سورهای مدنی قرار گرفته باشد. از این رو، اگر روایتی حاکی از آن باشد که آیهای قبل از هجرت، در مکه نازل شده است، ولی در یک از سوره مدنی قرار دارد، با چنین اخباری باید با حساسیت بیشتری برخورد کرد<ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۲۴ - 125.</ref>.
| | # [[ابلیس]] و [[سجده]] نکردن او بر آدم |
| ==نمونههایی از آیات مدنی در سورههای مکی==
| | # [[ابن سبیل]] |
| *در موارد بسیاری ادعا شده است که آیات مدنی در سورههای مکی قرار دارند، اما محققان بیشتر این ادعاها را رد کردهاند که در اینجا به ذکر دو نمونه میپردازیم.
| | # [[ابولهب]] |
| #'''آیه ۲۰ سوره مزمّل:'''مطابق روایات ترتیب نزول، سوره مزمّل یکی از پنج سورهای است که در آغاز بعثت و در اولین سال نزول قرآن، بر [[پیامبر اکرم]]{{صل}} نازل شده است. با این حال، آیه ۲۰ این سوره از نظر اسلوب و طول آیه با آیات دیگر این سوره قابل مقایسه نیست، به طوری که این آیه به تنهایی یک سوم حجم سوره مزمّل را به خود اختصاص داده است و برخلاف سایر آیات، فاصله هم در آن رعایت نشده است. همچنین از نظر محتوایی گفتهاند که در این آیه از زکات واجب و قتال در راه خدا سخن رفته است که مربوط به دوره بعد از هجرت است<ref>المیزان فی تفسیر القرآن، محمد حسین طباطبائی، قم، مؤسسة النشر الاسلامي التابعة لجماعة المدرسین، بیتا، ج ۲۰، ص ۷۴.</ref>.
| | # اثبات [[یکتایی خدا]] و [[نفی]] [[شرک]] |
| *اما عدهای بر یکپارچه بودن این سوره تأکید کردهاند و همه آیات آن را مکی میدانند، این گروه معتقدند که منظور از زکات در این سوره، زکات واجب با حدود معین نیست، بلکه مراد از آن مطلق صدقه است و جمله {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| وَآخَرُونَ يُقَاتِلُونَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ }}﴾}}<ref> و گروهی دیگر در راه خداوند جنگ میکنند؛ سوره مزمل، آیه:۲۰.</ref> مربوط به جهاد در آینده است و آیه دلالت صریحی بر فعلیت آن در زمان نزول ندارد<ref>التمهید فی علوم القرآن، محمد هادی معرفت، قم، مؤسسة النشر الاسلامی، ۱۴۱۶ ﻫ. چاپ سوم، ج ۱، ص ۱۸۹ ـ ۱۹۰.</ref>
| | # إثم / [[گناه]] |
| #'''آیه ۴۵ سوره قمر:'''از [[ابن عباس]] نقل شده است که{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| سَيُهْزَمُ الْجَمْعُ وَيُوَلُّونَ الدُّبُرَ}}﴾}}<ref> زودا که آن گروه در هم شکنند و واپس بگریزند؛ سوره قمر، آیه:۴۵.</ref> در روز جنگ بدر نازل شده است<ref>لباب النقول فی اسباب النزول، جلال الدین سیوطی، بیروت، مکتبة لبنان ناشرون، ۲۰۰۱، ص ۲۱۴.</ref>. در مقابل، عدهای به مکی بودن همه آیات این سوره حکم کردهاند و معتقدند که این آیه هیچ دلالتی بر نزول آن در جنگ بدر ندارد، بلکه آیه در میان آیاتی واقع شده است که مشرکان مکه را به عذاب دنیوی و اخروی تهدید میکند. این آیه بشارتی برای مؤمنان در مورد متلاشی شدن جمعیت مشرکان در آینده نزدیک است. حرف "س" در {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| سَيُهْزَمُ}}﴾}} نیز بر تحقق این امر در آینده نزدیک دلالت دارد و روز جنگ بدر در واقع روز تحقق این وعده الهی است. از این رو، [[پیامبر اکرم]]{{صل}} به همین مناسبت این آیه را هنگام جنگ بدر قرائت کردند<ref>ر.ک: محمد هادی معرفت، پیشین، ص ۱۸۶؛ نصر حامد ابو زید، پیشین، ص ۱۷۸ ـ ۱۷۶.</ref><ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۲۶.</ref>.
| | # [[اجابت]] کردن خدا و [[رسول]] [[مردم]] را |
| ==نمونههایی از آیات مکی در سورههای مدنی==
| | # اجابت کردن مردم خدا و رسول را |
| *گفتیم که وجود آیات مکی در سور مدنی جای تأمل است و باید در دلایل آن دقت لازم را به کار برد. به هر حال سیوطی و دیگران مواردی از این نوع را ذکر کردهاند که در اینجا به ذکر دو نمونه میپردازیم.
| | # اجازه ورود به منازل |
| #'''آیه ۱۱۳ سوره توبه:'''گفته شده است که آیه {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|مَا كَانَ لِلنَّبِيِّ وَالَّذِينَ آمَنُواْ أَن يَسْتَغْفِرُواْ لِلْمُشْرِكِينَ وَلَوْ كَانُواْ أُولِي قُرْبَى مِن بَعْدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُمْ أَنَّهُمْ أَصْحَابُ الْجَحِيمِ}}﴾}}<ref> پیامبر و مؤمنان نباید برای مشرکان پس از آنکه بر ایشان آشکار شد که آنان دوزخیند آمرزش بخواهند هر چند خویشاوند باشند؛ سوره تویه، آیه:۱۱۳.</ref> در مورد استغفار [[پیامبر اکرم]]{{صل}} برای عمویش [[ابو طالب]] و به دنبال مرگ او نازل شده است<ref>لباب النقول فی اسباب النزول، جلال الدین سیوطی، بیروت، مکتبة لبنان ناشرون، ۲۰۰۱، ص ۱۲۸.</ref>.
| | # [[اجر]] و [[پاداش الهی]] |
| *در مقابل، برخی از عالمان [[اهل سنت]] با این امر مخالفت کرده و گفتهاند که مرگ [[ابو طالب]] سه سال قبل از هجرت اتفاق افتاده است، در حالی که سوره توبه از آخرین سورههای نازل شده بر [[پیامبر اکرم]]{{صل}} است. [[ابن عاشور]]، از مفسران معاصر [[اهل سنت]]، در تفسیر التحریر و التنویر این قول را که آیه مذکور در مورد استغفار [[پیامبر]] برای عمویش [[ابو طالب]] یا مادرش [[آمنه]] نازل شده باشد، قولی واهی و بیاساس دانسته است و بر فاصله بین حوادث مرگ [[آمنه]] و [[ابو طالب]] و نزول این آیه تکیه میکند. وی این آیه را توضیحی تکمیلی برای آیه ۸۰ سوره توبه میداند که طی آن خداوند فرموده است:{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|اسْتَغْفِرْ لَهُمْ أَوْ لاَ تَسْتَغْفِرْ لَهُمْ }}﴾}}. از آنجا که از این آیه جواز استغفار فهمیده میشده است، لذا آیه ۱۱۳ جلوی این استنباط را گرفته و صریحاً اعلام کرده است که هیچ کس، حتی [[پیامبر]] حق ندارد برای مشرکان، هرچند از نزدیکانش باشد، استغفار کند<ref>تفسیر التحریر و التنویر المعروف بتفسیر ابن عاشور، بیروت، مؤسسة التاریخ، ۱۴۲۰ ﻫ، ج ۱۰، ص ۲۱۵ ـ ۲۱۴.</ref>. آیت الله [[محمد هادی معرفت]] نیز حدیث منقول در اسباب نزول را، که آیه ۱۱۳ را در مورد استغفار [[پیامبر]] برای عمویش [[ابو طالب]] میداند، از جعلیات بنی امیه برای خدشهدار کردن خاندان پاک [[پیامبر اکرم]]{{صل}} دانسته است و میگوید: تردیدی نیست که [[حضرت ابو طالب]] جزء اولین حامیان و یاوران [[پیامبر اکرم]] در سالهای سخت دوره اول ظهور اسلام است و بنی امیه میخواهند او را به عنوان کافر معرفی کنند <ref>ر.ک: محمد هادی معرفت، پیشین، ص ۱۸۶؛ نصر حامد ابو زید، پیشین، ص ۱۹۷.</ref>.
| | # [[اجل]] [[امتها]] |
| #'''آیه ۲۸۱ سوره بقره:''' گفته شده است که آیه ۲۸۱ سوره بقره مکی است و در حجة الوداع در منی نازل شده است <ref>الدر المنثور، جلال الدین سیوطی، بیروت، دار الفكر، ۱۹۹۳ م، ج ۱، ص ۳۷۰.</ref>. باید گفت که مکی دانستن این آیه بر مبنای ملاک مکانی در تقسیم آیات به مکی و مدنی است، اما بر اساس نظر مشهور، که ملاک زمانی را برای تعیین مکی و مدنی معتبر میدانند، این آیه نیز مدنی محسوب میشود، هر چند که نزول آن در سرزمین مکه است. برخی موارد دیگر که آیاتی را به عنوان آیات مکی در سور مدنی به حساب آوردهاند، نیز از همین قبیل است؛ به این معنی که این آیات بعد از هجرت در سرزمین مکه نازل شدهاند، لذا در حقیقت جزء آیات مدنی هستند<ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۲۶ - ۱۲۷.</ref>.
| | # اجل مکتوب و مقدّر |
| | | # [[احساس]] [[ایمنی]] از [[عذاب الهی]] و [[نکوهش]] آن |
| ==آشنایی با اصطلاحات سبب نزول، شأن نزول، فضای نزول و جوّ نزول==
| | # احکام اجاره / [[اجیر]] کردن |
| ===سبب نزول و شأن نزول===
| | # احکام [[اسارت]] و برخورد با [[اسیران]] |
| *معروفترین اصطلاح در این حوزه، سبب نزول است. کتابهایی که در این زمینه تألیف شده است، اسباب النزول نام گرفتهاند. در زبان فارسی به جای سبب نزول، بیشتر از اصطلاح "شأن نزول" استفاده میشود و آثاری که در این حوزه به زبان فارسی ترجمه یا تألیف شده است، بیشتر "شأن نزول آیات" نام گرفته است<ref>به عنوان مثال کتاب شأن نزول آیات ترجمهای است از اسباب النزول واحدی نیشابوری و لباب النقول فی اسباب النزول سیوطی که توسط آقای محمد جعفر اسلامی ترجمه و منتشر شده است. (ناشر: مترجم، چاپ دوم، ۱۳۷۱) همچنین آقای دکتر محمد باقر محقق به مناسبت کنگرۀ هزارۀ شیخ طوسی کتابی را با عنوان نمونۀ بیّنات در شأن نزول آیات فراهم آورده است. (تهران، اسلامی، چاپ دوم، ۱۳۵۹ ﻫ. ش).</ref>. صرف نظر از تنوع اصطلاح در زبانهای عربی و فارسی، به جز برخی از معاصران، کسی این دو واژه را حاکی از دو مفهوم متعدد ندانسته است. اما سبب نزول چیست؟ سبب نزول، حادثه، پیشامد یا طرح سؤالی است که موجب نزول آیه یا آیاتی از [[قرآن کریم]] شده است. همان طور که از این تعریف به دست میآید، اسباب نزول به طور معمول یکی از دو صورت زیر است:
| | # احکام [[ابداع]] |
| #حوادث یا رخدادهایی که در زمان نزول قرآن اتفاق میافتاد و [[وحی]] الهی در شأن آنها نازل میشد؛
| | # احکام ایضاع |
| #پرسشهایی که از ناحیه مردم، اعم از مسلمانان، مشرکان یا اهل کتاب، مطرح میشد و آیه یا آیاتی در پاسخ آنها فرود میآمد<ref>ر.ک: العُجاب فی بیان الاسباب، ابن حجر عسقلانی، بیروت، دار ابن حزم، ۲۰۰۲ م، ص ۱۷ ـ ۱۶.</ref>.
| | # احکام[[حیض]] |
| *باید توجه داشت که بر اساس این تعریف، تنها بخشی از آیات قرآن دارای سبب نزول است، چرا که نزول بسیاری از آیات و سور قرآن به هیچ پیشامد یا سؤال خاصی مربوط نبوده است؛ از این رو، بیشتر آیات قرآن کریم دارای اسباب نزول خاصی نیستند.
| | # احکام رهن و گرو |
| *از میان محققان معاصر، [[محمد هادی معرفت]] بین سبب نزول و شأن نزول تفاوت قائل شده است. وی معتقد است که شأن نزول اعم از سبب نزول است؛ هرگاه به مناسبت جریانی در باره شخص یا حادثهای، خواه در گذشته، حال یا آینده یا در باره احکام، آیه یا آیاتی نازل شود، همه این موارد شأن نزول آن آیات نامیده میشوند. مثلاً میگویند که فلان آیه در باره [[عصمت]] [[انبیا]] یا [[عصمت]] ملائکه یا [[حضرت ابراهیم]]{{ع}} یا [[حضرت نوح]]{{ع}} یا [[حضرت آدم]]{{ع}} نازل شده است، یا گفته میشود که سوره فیل در شأن ابرهه و لشکریان او، که برای تخریب خانه خدا آمده بودند، نازل شده است. تمام اینها را شأن نزول آیه میگویند. اما سبب نزول در جایی است که پیشامد و سؤالی باعث نزول آیه یا آیاتی مقارن با آن پیشامد و سؤال شود. از این رو، سبب اخص از شأن نزول است <ref>التمهید فی علوم القرآن، محمد هادی معرفت، قم، مؤسسة النشر الاسلامی، ۱۴۱۶ ﻫ، ج ۱، ص ۲۵۴؛ همان، علوم قرآنی، قم، مؤسسۀ فرهنگی انتشاراتی التمهید، ۱۳۷۸ ﻫ . ش، ص ۱۰۰؛ علوم قرآنی (با استفاده از تقریرات درس آیتالله معرفت)، محمد جواد اسکندرلو، قم، سازمان حوزهها و مدارس علمیّۀ خارج از کشور، ۱۳۷۹ ﻫ ش، ص ۶۷.</ref>. به نظر میرسد که محقق مذکور این نکته را از آن جهت گفته است که در کتب اسباب نزول یا تفسیر، وقتی در باره آیهای گفته میشود {{عربی|اندازه=150%|" نَزَلَتْ فی کَذا"}}، اعم از آن است که موردی موجب نزول آن آیه شده باشد یا آنکه آن آیه متضمّن حکم یا توضیحی در آن مورد باشد. [[زرکشی]] و دیگران نیز این نکته را یادآور شدهاند که عبارت {{عربی|اندازه=150%|"نَزَلَتْ الآیةُ فی کَذا"}} همیشه به معنای سبب نزول نیست<ref>البرهان فی علوم القرآن، بدر الدین زرکشی، تحقیق یوسف عبد الرحمن بن مرعشلی، بیروت، دار المعرفة، ۱۴۱۰ ﻫ، ج ۱، ص ۱۲۶.</ref>.
| | # احکام شُفعه |
| *بنا بر این، در جاهایی که در روایات به لفظ "سبب" تصریح شده باشد، مراد سبب نزول است. مثلاً اگر راوی بگوید: {{عربی|اندازه=150%|"سَبَبُ نزولِ الآیةِ کَذا"}}، یا بعد از ذکر حادثه یا سؤال، از فاء تعقیبیه استفاده کند، به عنوان مثال بگوید: {{عربی|اندازه=150%|"حَدَّثَ کذا فَنَزَلَتِ الآیةُ"}} یا {{عربی|اندازه=150%|"سُئِلَ رسولُ اللهِ {{صل}} عَنْ کذا فَنَزَلَتِ الآیةُ"}}، در این گونه موارد، روایت بیانگر اسباب نزول است. اما اگر گفته شود: {{عربی|اندازه=150%|"نَزَلَتِ الآیةُ فی کَذا"}} دو احتمال وجود دارد: یا بیانگر سبب نزول است، یا به این معنا است که آیه در باره آن موضوع نازل شده است<ref>الصحیح المُسند من اسباب النزول، ابو عبد الرحمن مقبل بن هادی الوادعی، بیروت، دار ابنحزم، ۱۴۱۵ ﻫ، ص ۱۸.</ref>.
| | # احکام [[عهد]] |
| *گفتنی است که غیر از پیشامدها یا سؤالاتی که موجب نزول قرآن میشده، گاهی به حکمت و فلسفه نزول آیه یا آیاتی از قرآن نیز، سبب اطلاق شده است. به عنوان مثال گفتهاند که سبب نزول آیه {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ}}﴾}} در ابتدای سورههای قرآن کریم این بوده است که حدّ فاصل بین سورهها باشد، چون از [[عبد الله بن عباس]] نقل شده است که [[پیامبر اکرم]]{{صل}} انتهای سورهها را نمیشناخت تا آنکه {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ}}﴾}} بر او نازل میشد. به هر حال کتب موسوم به [[اسباب نزول]]، در بر دارنده روایاتی در همه اقسام پیشگفته است و تنها به روایاتی که بیانگر حادثه یا سؤالی که موجب نزول قرآن شده باشد، اختصاص ندارد. به عنوان مثال واحدی در اسبابِ نزول خود آورده است که به گفته ضحّاک آیه{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ سَوَاءٌ عَلَيْهِمْ أَأَنذَرْتَهُمْ أَمْ لَمْ تُنذِرْهُمْ لاَ يُؤْمِنُونَ}}﴾}}<ref> بیگمان بر کافران برابر است، چه بیمشان دهی یا بیمشان ندهی، ایمان نمیآورند؛ سوره بقره، آیه:۶.</ref> در باره [[ابو جهل]] و پنج تن از خاندان وی نازل شده است و به قول کلبی در باره یهود است<ref>ر. ک: الاستیعاب فی بیان الاسباب، سلیم بن عبد الهلالی و محمد بن موسی آل نصر، عربستان سعودی، دار ابنجوزی، ۱۴۲۵ ﻫ، ج ۱، ص ۱۷.</ref>. پیدا است که در این مورد، حادثه یا سؤالی موجب نزول نشده است، بلکه مراد آن است که آیه در باره افراد یا گروه خاصی از کافران است. اما در مورد زیر، حادثهای موجب نزول سوره تبّت شده است: وقتی آیه {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|وَأَنذِرْ عَشِيرَتَكَ الأَقْرَبِينَ }}﴾}}<ref> و نزدیکترین خویشاوندانت را بیم ده!؛ سوره شعراء، آیه: ۲۱۴.</ref>. نازل شد، [[پیامبر اکرم]]{{صل}} به تپه صفا برشد و بانگ زد: {{عربی|اندازه=150%|" يَا صَبَاحَاهْ "}} (اعلام خطر!). قریش گرد آمدند و گفتند چه شده است؟ فرمود: به من بگویید که اگر باخبرتان کنم که دشمن صبح یا شب بر شما فرو میآید، از من باور میدارید؟. گفتند: آری. فرمود: اکنون به راستی شما را بیم میدهم که یک عذاب سخت در پیش دارید. [[ابو لهب]] گفت: {{عربی|اندازه=150%|" تَبّاً لَكَ "}}؛ یعنی زیانت باد! برای این ما را جمع کردی؟! این آیه در جواب او نازل شد که دو دست ابو لهب زیانزده باد، و هست! که مال و دستاوردش او را بی نیاز نکند و کارساز نتواند بود. به زودی در آتشی شعلهور گرفتار آید با زنش، آن هیزمکش که در گردن، ریسمانی از لیف خرما دارد"<ref>اسباب النزول، علی بن احمد واحدی نیشابوری، ص:۲۱.</ref><ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۳۰ - ۱۳۲.</ref>.
| | # احکام [[غضب]] |
| ===فضای نزول و جوّ نزول===
| | # احکام قصاص و دیه |
| *آیت الله [[عبدالله جوادی آملی]] در کتاب تسنیم، ضمن آنکه دو اصطلاح سبب نزول و شأن نزول را یکی دانسته، دو اصطلاح دیگر به اصطلاحات این حوزه افزوده است. مطابق نظر ایشان، مفسران قرآن کریم، عنایت و اهتمام ویژهای به تبیین شأن و سبب نزول آیات قرآن نشان دادهاند، ولی از "فضای نزول"، که مربوط به مجموع یک سوره است، و "جوّ نزول" که مربوط به مجموع قرآن کریم است، غافل شدهاند و آن را در تفاسیر خود مطرح نکردهاند. ایشان معتقدند که فرق شأن نزول با فضا و جوّ نزول در این است که شأن نزول یا سبب نزول، حوادث، مناسبتها و عواملی است که در عصر [[پیامبر اکرم]]{{صل}} در محدوده حجاز یا خارج از آن رخ داده و زمینهساز نزول یک یا چند آیه از آیات [[قرآن کریم]] شده است، اما فضای نزول، بررسی اوضاع عمومی، اوصاف مردمی، رخدادها و شرایط ویژهای است که در مدت نزول یک سوره در حجاز و خارج از آن حاکم بوده است.
| | # احکام [[نذر]] |
| *هر یک از سورههای قرآن کریم فصل جدیدی بود که با نزول آیه کریمه {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ}}﴾}} گشوده میشد و با نزول {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ}}﴾}} سوره بعد، پایان مییافت. برخی از سورههای قرآن کریم مانند سورههای حمد، انعام و نصر به صورت دفعی و برخی به تدریج و طی چند ماه یا چند سال نازل شده است و در طی مدت نزول یک سوره، در محدوده زندگی مسلمانان و جهان خارج، حوادثی رخ داده و شرایط خاصی بر آن دوران حاکم بوده است. کشف و پردهبرداری از این رخدادها و شرایط و تبیین آن در آغاز هر یک از سورهها، ترسیم فضای نزول آن سوره خواهد بود. اما جوّ نزول، به سراسر قرآن کریم مربوط است و مراد از آن، بستر مناسب زمانی و مکانی سراسر قرآن است. قرآن کریم طی مدت ۲۳ سال بر قلب مطهر و گرامی [[پیامبر اکرم]]{{صل}} نازل شد. حوادثی که طی سالیان نزول قرآن در حوزه اسلامی یا خارج از قلمرو زندگی مسلمانان و حکومت اسلامی پدید آمد و شرایط و افکاری که بر آن حاکم بود، یا رخدادهایی که بر اثر نزول آیات قرآن کریم در جهان آن روز پدید آمد، "جوّ نزول قرآن" است. سه عنوان یاد شده "شأن، فضا و جوّ نزول" تفاوت دیگری نیز با هم دارند و آن این است که شأن نزول تنها ناظر به تأثیر یک جانبه رخدادهای خاص بر نزول آیه یا آیات است، ولی در فضای نزول سوره و همچنین جوّ نزول قرآن، سخن از تعامل و تأثیر دوجانبه فضای بیرونی با نزول سوره یا جوّ جهانی با نزول مجموع قرآن است؛ بدین معنا که هم فضا و جوّ موجود مقتضی نزول سوره و کل قرآن بود و هم نزول سوره و تنزل مجموع قرآن، فضا و جوّ را دگرگون میساخت<ref>اسباب النزول، واحدی نیشابوری، ترجمه: علی رضا ذکاوتی قراگزلو، تهران، نشر نی، ۱۳۸۳ ش، ص ۲۴۸.</ref><ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۳۲ - ۱۳۳.</ref>.
| | # احوال بیشتر مردم |
| | | # احوال [[ستمکاران]] |
| ==جایگاه اسباب نزول در آیات قرآن==
| | # احوال [[کافران]] در [[روز رستاخیز]] |
| *همانطور که پیشینیان گفتهاند، آیات قرآن از نظر اسباب نزول به دو دسته تقسیم میشوند:
| | # إحیاء و إماته |
| #آیاتی که ابتدائاً و بدون هیچ سبب خاصی نازل شده است، که اکثریت آیات قرآن را تشکیل میدهند؛
| | # [[اختلاف مردم]] |
| #آیاتی که حادثه یا سؤالی، سبب نزول آنها شده است.
| | # [[اختیار]] / اختیار عمل |
| *بنا بر این، در خود آیات قرآن اشارهها و تصریحاتی در مورد محتوای پرسشها و حوادث اسباب نزول وجود دارد؛ آیاتی که با الفاظی چون {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|سَأَلَ}}﴾}}<ref>تسنیم (تفسیر قرآن کریم)، عبد الله جوادی آملی، قم، اسراء، ۱۳۷۸ ش، ج ۱، ص ۲۳۶ ـ ۲۳۵.</ref>، {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|يَسْئَلُكَ}}﴾}}<ref>سوره معارج، آیه:۱.</ref>، {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| يَسْئَلُونَكَ }}﴾}}<ref> مانند: سوره نساء، آیه: ۱۴، ۱۵۳ و سوره احزاب، آیه:۶۳.</ref>، {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| يَسْتَفْتُونَكَ }}﴾}}<ref>سوره بقره، آیه: ۱۸۹</ref> و {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| يَسْتَنْبِئُونَك }}﴾}} <ref>سوره نساء، آیه: ۱۲۷</ref> آمده و پرسشی را مطرح کرده است، حکایت از سبب نزول خاصی در آن مورد دارد. همچنین آیاتی که به حوادث عهد نزول قرآن اشاره کرده است، ممکن است از مواردی باشد که از سبب نزول خاصی حکایت دارد. مطابق روایات، نزدیک به پانزده درصد آیات قرآن دارای اسباب نزول است، اما نکتهای که باید بدان توجه داشت، این است که خود آیات قرآن و سیاق آنها میتواند معیاری برای تأیید یا ردّ روایات اسباب نزول مربوط به آنها باشد<ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۳۴.</ref>.
| | # [[اخلاص در دین]] |
| | | # إخوان [[لوط]] |
| ==جایگاه اسباب نزول در روایات==
| | # [[ادب]] [[مسلمانان]] نسبت به [[پیامبر اکرم]]{{صل}} |
| *در بحث اسباب نزول، روایات نقش کلیدی دارد تا جایی که برخی معتقدند تنها راه دستیابی به اسباب نزول، روایات منقول از کسانی است که خود شاهد وحی بوده و بر اسباب نزول آیات قرآن واقف بودهاند. این روایات در آغاز در کتابهای روایی و سپس در کتابهای ویژه اسباب نزول جمع شده است. مطابق برخی از تحقیقات جامع در زمینه روایات اسباب نزول، حدود ۳۰۰۰ روایت از صحابه و تابعین در مورد [[اسباب نزول]] آیات مختلف نقل شده است<ref>اسباب النزول، واحدی نیشابوری، ترجمه: علی رضا ذکاوتی قراگزلو، تهران، نشر نی، ۱۳۸۳ ش، ص ۸.</ref>. تقریباً بیش از نصف این روایات از صحابه و بقیه از تابعین رسیده است. در میان صحابه، از همه بیشتر ابنعباس روایات اسباب نزول را نقل کرده است<ref>ر.ک: الاستیعاب.</ref> پس از وی صحابهای که بیشترین روایات [[اسباب نزول]] را نقل کردهاند، به ترتیب عبارتاند از: [[ابو هریره]]، [[عایشه]]، [[جابر بن عبد الله]]، [[ابن مسعود]]، [[انس بن مالک]] و [[براء بن عازب]]<ref>أسباب النزول، بسّام الجمل، المؤسسة العربیة للتحدیث الفکری، دار البیضاء، ۲۰۰۵ م، ص ۱۳۲.</ref>.
| | # [[ادریس]]{{ع}} |
| *در میان تابعین [[مجاهد]]، [[سدّی]]، [[قتاده]]، [[حسن بصری]]، [[ضحاک]]، [[محمد بن کعب قرظی]]، [[سعید بن جبیر]]، [[عطاء بن ابی رباح]]، [[سعید بن مسیّب]]، [[ابو العالیه]]، [[عامر الشعبی]]، و [[عکرمه]] بیشترین روایات اسباب نزول را نقل کردهاند<ref>أسباب النزول، بسّام الجمل، المؤسسة العربیة للتحدیث الفکری، دار البیضاء، ۲۰۰۵ م، ص ۱۴۱.</ref>.
| | # [[اذان]] |
| *از طرق شیعی نیز روایات قابل توجهی در اسباب نزول نقل شده است. هر چند شمار این روایات از روایات منقول از طریق [[اهل سنت]] بسیار کمتر است. برخی از پژوهشگران تعداد ۴۲۷ روایت را از منابع مختلف جمعآوری و تدوین کردهاند<ref>أسباب النزول، بسّام الجمل، المؤسسة العربیة للتحدیث الفکری، دار البیضاء، ۲۰۰۵ م، ص ۱۴۳.</ref><ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص: ۱۳۴.</ref>.
| | # إذن [[شارع]] / إذن [[پیامبر]] |
| ==کوششهای متقدمان در زمینه اسباب نزول==
| | # [[اراده الهی]] و [[هدایت]] و [[ضلالت]] [[بندگان]] |
| *همانطور که گفتیم، روایات اسباب نزول در ابتدا ضمن کتب روایی جمعآوری شد و سپس مفسران در شرح آیاتِ مربوط، به نقل آن پرداختند. به عنوان مثال بسیاری از روایات اسباب نزول در تفسیر طبری نقل شده است. همچنین از قرن دوم هجری به بعد، عدهای از دانشمندان به گردآوری و تدوین کتب ویژه اسباب نزول پرداختند. بررسیهای پژوهشگران نشان میدهد که مهمترین کتب اسباب نزول به ترتیب تاریخی به شرح زیر است:
| | # [[ارتداد]] و [[عاقبت]] آن |
| #تفصیلٌ لِأسْبابِ النُزول، از [[میمون بن مهران]]؛
| | # [[ارسال پیامبران]] به زبان قومشان |
| #التنزیل، از [[علی بن مدینی]]؛
| | # [[ارم ذات العماد]] |
| #القصص و الأسباب التی نزل من أجلها القرآن، از [[عبدالرحمن بن محمد بن عیسی]]؛
| | # [[اسباط]] |
| #أسباب النزول از [[علی بن احمد واحدی نیشابوری]]، این کتاب معروفترین کتاب باقی مانده از پیشینیان است؛
| | # [[استجابت]] |
| #أسباب النزول و القصص الفرقانیه، از [[محمد بن اسعد عراقی]]؛
| | # [[استدلال]] و [[احتجاج]] |
| #أسباب النزول، از [[محمد بن علی بن شعیب مازندرانی]]؛
| | # استدلالهای [[قرآن]] |
| #عجائب النقول فی أسباب النزول، از [[ابراهیم بن عمر جَعبری]]، وی اسباب النزول واحدی را تلخیص و اسانید آن را حذف کرده، اما چیزی بر آن نیفزوده است؛
| | # [[استرجاع]] به هنگام [[مصیبت]] |
| #العُجاب فی بیان الأسباب، از [[ابن حجر عسقلانی]]، [[ابن حجر]] این کتاب را کامل نکرده و قبل از تکمیل آن از دنیا رفته است. وی تنها روایات مربوط به سورههای حمد و بقره را آورده و در باره صحت یا ضعف احادیث بحثی نکرده است. وی همچنین مواردی را که جزو اسباب نزول نیست، در آن داخل کرده است. برخی گفتهاند که اگر ابن حجر این کتاب را کامل کرده بود، مفصلترین نوشتار در باب اسباب نزول فراهم میآمد<ref>أسباب النزول فی ضوء روایات أهل البیت، السید مجیب جواد جعفر الرفیعی، قم، ۱۴۲۱ ﻫ.</ref>؛
| | # إستغفار |
| #لباب النقول فی أسباب النزول، از [[جلال الدین سیوطی]]، سیوطی در کتاب الاتقان، بر کتاب أسباب النزول واحدی خرده گرفته و میگوید:"هیچکس در تألیف کتابی با این کیفیت، بر من پیشتاز نیست".
| | # [[اسحاق]]{{ع}} |
| *برخی معاصران معتقدند که بیشتر کتابهای پیشینیان در باره [[اسباب نزول]]، فاقد هرگونه طرح عملی و سیستم و ترتیب منطقی است و در واقع، آنها فقط به نقل روایات و آثار پرداختهاند و میتوان این روایات را در میان اکثر کتب تفسیر نیز به دست آورد<ref>أسباب النزول، محمد باقر حجتی، تهران، وزارت ارشاد اسلامی، ۱۳۶۵ ﻫ ش، ص ۱۳.</ref><ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۳۴ - ۱۳۵.</ref>.
| | # [[اسرافیل]] |
| ==کوششهای متأخران و معاصران در زمینه [[اسباب نزول]]==
| | # [[اسلام]] [[تسلیم]] در برابر [[حق]] |
| *متأخران در مورد اسباب نزول کار ویژهای عرضه نکردهاند. اما در دوران معاصر تلاشهای قابل توجهی در این زمینه صورت گرفته است. مجموعه پژوهشها و تلاشهای معاصران را میتوان در سه حوزه زیر خلاصه کرد:
| | # اسلام، [[حقیقت]] [[ادیان]] |
| #جست و جو در منابع قرآنی و حدیثی و گردآوری دوباره روایات و آثار مربوط به اسباب نزول؛
| | # [[اسماعیل]]{{ع}} |
| #تهذیب و تمحیص روایات و ارزیابی سندی آنها؛
| | # [[اسماء الحسنی]] |
| #نظریهپردازیهای جدید در مورد نقش اسباب نزول در تفسیر قرآن.
| | # [[اسماء]] و [[صفات الهی]] |
| *در سالهای اخیر، در موارد اول و دوم، آثار ارزشمندی در اختیار قرآنپژوهان قرار گرفته است که در اینجا به برخی از آنها اشاره میشود:
| | # آخر |
| #الاستیعاب فی بیان الأَسباب، تألیف [[سلیم بن عبد الهلالی]] و [[محمد بن موسی آل نصر]]؛ نویسندگان این اثر سه جلدی میگویند که مطالب کتاب را با جست و جو در لا به لای تفاسیر، کتب صحاح، سنن، معاجم، اجزا، مسانید، فوائد، مشیخات و دیگر کتب حدیث به دست آوردهاند<ref>الاستیعاب فی بیان الاسباب، سلیم بن عبد الهلالی و محمد بن موسی آل نصر، ج ۱، ص ۱۳.</ref> تتبع گسترده نویسندگان این مجموعه ارزشمند، تعداد روایات موجود در حوزه اسباب نزول را به حدود سه هزار روایت رسانده است. نویسندگان کتاب علاوه بر گردآوری احادیث، دو کار ارزشمند دیگر نیز انجام دادهاند: نخست آنکه به ارزیابی سندی هر یک از احادیث پرداخته و آنها را به صحیح، حسن و ضعیف تقسیم کردهاند؛ دوم آنکه به تخریج منابع هر یک از روایات همت گماشتهاند.
| | # [[احد]] |
| #جامع النقول فی أسباب النزول و شرح آیاتها، نوشته ابن خلیفه علیوی؛ نویسنده این کتاب ضمن نقل قول نویسندگان معروفی چون واحدی، سیوطی و طبری در زمینه اسباب نزول به شرح و توضیح در باره آنها پرداخته است. این کتاب در دو جلد به سامان رسیده و در سال ۱۴۰۴ از سوی مؤلف در مصر به چاپ رسیده است.
| | # احکم الحاکمین |
| #تسهیل الوصول إلی معرفة أسباب النزول<ref>مؤسسۀ دار ابن الجوزی این کتاب را در سال ۱۴۲۵ هجری، در کشور عربستان سعودی چاپ کرده است</ref>، نوشته [[خالد عبد الرحمن العلی]]، نویسنده این کتاب به جمعآوری روایات اسباب نزول در کتابهای [[واحدی نیشابوری]]، [[طبری]]، [[ابن جوزی]]، [[قرطبی]]، [[ابن کثیر]]، [[سیوطی]] و [[شوکانی]] پرداخته و آنها را بدون هیچ اظهار نظری گرد آورده است.
| | # أرحم الراحمین |
| #صحیح أسباب النزول، نوشته [[ابراهیم محمد العلی]]<ref>انتشارات دار المعرفه این کتاب را در سال ۱۴۱۹ هجری، در بیروت منتشر کرده است</ref>؛
| | # أسرع الحاسبین |
| #الصحیح من أسباب النزول، نوشته [[عصام بن عبد المحسن الحَمیدان]]<ref>انتشارات دار القلم این کتاب را در سال ۱۴۲۴ هجری، در دمشق چاپ کرده است.</ref>.
| | # أعلم |
| #الصحیح المُسند من أسباب النزول، نوشته [[مقبل بن هادی الوادعی]]<ref>مؤسسه الریّان این اثر را در سال ۱۴۲۰ هجری، در بیروت منتشر کرده است.</ref>.
| | # اعلی |
| *جدیدی که در حوزه اسباب نزول صورت گرفته است، نشان از توجه قرآنپژوهان به فضای نزول قرآن و نقش واقعیتهای زمان نزول بر قالب و محتوای قرآنی دارد. باید گفت که این مباحث، مباحثی نوظهور و فراتر از اسباب نزول است. اسباب نزول نزد پیشینیان و متأخران، تنها به آن دسته از پیشامدها و پرسشهایی گفته میشود که باعث نزول آیه یا آیاتی میشد و از همین روی، آنها معتقد بودند که آیات قرآن از نظر دارا بودن سبب یا عدم آن، بر دو دسته است: دستهای که بدون هیچ سبب خاصی نازل شده است و اکثر آیات قرآن در این دسته، که تنها به خاطر هدایت انسانها به راه راست نازل شده است، قرار دارد و دسته دوم آیاتی است که به دنبال واقعه یا سؤالی نازل شده است<ref>مکتبة ابن تیمیه این کتاب را در سال ۱۴۱۰ هجری، در قاهره چاپ کرده است.</ref>. اما معاصران از موضوع اسباب نزول عبور کرده و به موضوع فضای نزول پرداختهاند.
| | # اکرم |
| *البته همه کسانی که به این مباحث پرداختهاند، بر یک اندیشه نیستند. عدهای تأکید کردهاند که شناخت ظرف زمانی، موقعیت، شرایط اجتماعی و تاریخ نزول هر یک از سور قرآن، میتواند در درک بهتر آیات قرآن کمک کند. از مفسران معاصر، آیت الله [[عبدالله جوادی آملی]] در مقدمه تفسیر تسنیم بر این امر تأکید کرده و به ذکر نمونهای از فضای نزول در مورد سوره مبارک نساء نیز پرداخته است<ref>ر.ک: تسنیم (تفسیر قرآن کریم)، عبد الله جوادی آملی، قم، اسراء، ۱۳۷۸ ﻫ ش، ج ۱، ص ۲۳۸ ـ ۲۳۵.</ref>.
| | # [[إله]] [[الناس]] |
| *اما برخی دیگر از روشنفکران دینی معاصر، پا را از این فراتر نهاده، بر نقش واقعیتهای موجود در زمان نزول قرآن بر شکلدهی الفاظ و معانی قرآن تأکید کردهاند. نصر حامد ابو زید، محمد ارکون و حسن حنفی جزو این گروه از روشنفکران دینی هستند<ref>ر.ک: أسباب النزول، بسّام الجمل، ص ۳۱ ـ ۲۶.</ref>.
| | # [[الله]] |
| *برای مثال، [[حسن حنفی]] در نوشتهای با نام الوحی و الواقع؛ دراسةٌ فی أسباب النزول گفته است که بر خلاف نظریه پیشینیان، هیچ آیهای از آیات قرآن، بدون سبب نازل نشده است، بلکه همه آیات قرآن برآمده از اسباب و واقعیتهای خارجی است<ref>ر.ک: أسباب النزول، بسّام الجمل، ص ۲۶.</ref>. وی و نویسندگانی چون نصر حامد ابو زید، ضمن آنکه بر وحیانی بودن و الهی بودن قرآن تأکید دارند، معتقدند که زبان هر متنی، چه الهی و چه بشری، نمیتواند جدای از واقعیتهای فرهنگی، اعتقادی و اجتماعی عصر صدور و نزولش مورد مطالعه قرار گیرد. نتیجه، آنکه همه معاصران به امری فراتر از اسباب نزول، که پیشینیان در کتابهای خود آوردهاند، میاندیشند و آن تأثیر شناخت جامع از شرایط و موقعیتها و فضای نزول سور قرآن بر فهم درست و واقعگرایانه از قرآن است.
| | # اول |
| در سالهای اخیر، علاوه بر نظریههای جدید در حوزه اسباب نزول و نگارش آثاری با عنوان "وحی و واقعیت"، پژوهشهای ارزشمندی در مباحث نظری اسباب نزول و به ویژه، ارتباط اسباب نزول با تفسیر صورت گرفته است که در زیر به برخی از آنها اشاره میکنیم:
| | # [[أهل]] التقوی |
| #أسباب النزول<ref>المرکز الثقافی العربی این کتاب را در سال ۲۰۰۵ میلادی در کشور مغرب عربی چاپ کرده است.</ref>، نوشته [[بسّام الجمل]]، این کتاب ضمن بیان تاریخ اسباب نزول و مهمترین راویان و منابع دست اول آن، به بیان دیدگاههای قدما، متأخران و معاصران در مورد اسباب نزول و نیز رابطه اسباب نزول با موضوعاتی چون [[وحی]]، قرائات، نسخ و تفسیر پرداخته است.
| | # أهل المغفرة |
| #أسباب النزول و أثرها فی بیان النصوص، دراسة مقارنة بین أصول التفسیر و أصول الفقه<ref>انتشارات دار الشّهاب این اثر را در سال ۱۹۹۹ میلادی در کشور سوریه به چاپ رسانده است</ref> نوشته [[عمادالدین محمد الرشید]]، این کتاب، که در اصل رساله دکتری نویسنده بوده است، مفصلترین کتابی است که تا کنون در باره مباحث نظری مربوط به اسباب النزول نوشته شده است<ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۳۵ - ۱۳۸.</ref>.
| | # [[بارئ]] |
| | | # [[باطن]] |
| ==اعتبار "عموم لفظ" یا "خصوص سب"==
| | # باقی |
| *یکی از مسائل مهم در اسباب نزول، حکم آیاتی است که در خصوص فرد یا افرادی نازل شده است، امّا لفظ آن عام یا مطلق است. حال این سؤال مطرح است که آیا دایره حكم مذکور در این آیات، تنها شامل افرادی است که آیه در باره آنها نازل شده است، یا مطابق ظاهرِ لفظ، به اشخاص دیگری نیز كه قابلیت شمول آیه را دارند، قابل تعمیم است؟
| | # [[بدیع]] السموات و الارض |
| بیشتر دانشمندان اسلامی عمومیت لفظ را بر خصوصیّت سبب مقدّم دانسته و بیان کردهاند که ملاک در مراد این گونه آیات، عمومِ لفظ است و نباید حکم را به فرد یا افرادی که آیه در باره آنها نازل شده است، منحصر کرد<ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۴۰.</ref>.
| | # [[برّ]] |
| ===بررسی چند اسباب نزول دارای لفظ عام===
| | # [[تواب]] |
| #'''ظِهار:'''در آیات نخستین سوره مجادله آمده است:
| | # جامع |
| {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| قَدْ سَمِعَ اللَّهُ قَوْلَ الَّتِي تُجَادِلُكَ فِي زَوْجِهَا وَتَشْتَكِي إِلَى اللَّهِ وَاللَّهُ يَسْمَعُ تَحَاوُرَكُمَا إِنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ بَصِيرٌ الَّذِينَ يُظَاهِرُونَ مِنكُم مِّن نِّسَائِهِم مَّا هُنَّ أُمَّهَاتِهِمْ إِنْ أُمَّهَاتُهُمْ إِلاَّ الَّلائِي وَلَدْنَهُمْ وَإِنَّهُمْ لَيَقُولُونَ مُنكَرًا مِّنَ الْقَوْلِ وَزُورًا وَإِنَّ اللَّهَ لَعَفُوٌّ غَفُورٌ وَالَّذِينَ يُظَاهِرُونَ مِن نِّسَائِهِمْ ثُمَّ يَعُودُونَ لِمَا قَالُوا فَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍ مِّن قَبْلِ أَن يَتَمَاسَّا ذَلِكُمْ تُوعَظُونَ بِهِ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ فَمَن لَّمْ يَجِدْ فَصِيَامُ شَهْرَيْنِ مُتَتَابِعَيْنِ مِن قَبْلِ أَن يَتَمَاسَّا فَمَن لَّمْ يَسْتَطِعْ فَإِطْعَامُ سِتِّينَ مِسْكِينًا ذَلِكَ لِتُؤْمِنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَتِلْكَ حُدُودُ اللَّهِ وَلِلْكَافِرِينَ عَذَابٌ أَلِيمٌ }}﴾}}<ref> خداوند، سخن زنی را که با تو درباره همسرش چالش داشت و به خداوند شکوه میکرد شنیده است و خداوند گفت و گوی شما را میشنود که خداوند، شنوایی بیناست.کسانی از شما که زنان خود را ظهار میکنند، آن زنان، مادران آنان نیستند، مادرانشان جز کسانی که آنان را زادهاند نمیباشند و اینان بیگمان سخنی ناپسند و نادرست میگویند و باری، خداوند به یقین در گذرندهای آمرزنده است.و آنان که زنان خود را ظهار میکنند سپس به آنچه گفتهاند باز میگردند (تا آن را بشکنند) باید پیش از آنکه با یکدیگر تماسی داشته باشند بندهای آزاد کنند؛ این (کاری) است که بدان اندرز داده میشوید و خداوند به آنچه میکنید آگاه است.و هر کس نیافت، روزه دو ماه پیاپی پیش از آنکه با همدیگر تماسی بگیرند (بر عهده اوست) و آنکه یارایی ندارد، خوراک دادن به شصت مستمند (بر عهده اوست)، این بدان روست که به خداوند و پیامبرش ایمان آورید و اینها احکام خداوند است و کافران عذابی دردناک خواهند داشت؛ سوره مجادله، آیه:۱ - ۴.</ref><ref>اسباب النزول، علی بن احمد واحدی نیشابوری، تحقیق عصام بن عبد المحسن الحمیدان، بیروت، مؤسسة الریّان، ۱۴۱۱ ﻫ، ص ۱۶۸ ـ ۱۶۷.</ref>.
| | # [[جبار]] |
| *ظِهار مصدر باب مفاعله و در اصطلاح فقه به این معنا است که مردی به همسرش بگوید که پشت تو چون پشت مادر من است؛ یعنی همان طور که مادرم بر من حرام است، تو نیز بر من حرام هستی. در سبب نزول این آیه آمده است که فردی به نام [[اوس بن صامت]] چنین سخنی را به زنش گفت. آن زن نزد [[پیامبر]]{{صل}} شکایت آورد و به دنبال آن، آیات نخستین سوره مجادله نازل شد.
| | # [[حسیب]] |
| *از آیه اوّل سوره مجادله به خوبی معلوم میشود که حکم مربوط به ظِهار، که در آیات بعدی این سوره آمده است، دارای سبب خاصی بوده است. با این حال الفاظی نظیر {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|الَّذِينَ يُظَاهِرُونَ مِنكُم مِّن نِّسَائِهِم}}﴾}}، {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|فَمَن لَّمْ يَجِدْ}}﴾}} و {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|فَمَن لَّمْ يَسْتَطِعْ}}﴾}} که در آیات یادشده در باره ظهارکنندگان و احکام ظهار آمده است، همه عام هستند و به فرد یا افراد خاصی اختصاص ندارند. گفتنی است که دلالت اسمهای موصول {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|الَّذِينَ}}﴾}} و {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|مِّن}}﴾}} بر عمومیّت، به سبب نیاز آن به جمله صله است. چرا که جمله صله موصول را به مفهومی عامّ تبدیل میکند.
| | # [[حفیظ]] |
| # '''لِعان:'''آیات ششم تا نهم سوره نور را آیات لعان گویند. در این آیات آمده است:{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| وَالَّذِينَ يَرْمُونَ أَزْوَاجَهُمْ وَلَمْ يَكُن لَّهُمْ شُهَدَاء إِلاَّ أَنفُسُهُمْ فَشَهَادَةُ أَحَدِهِمْ أَرْبَعُ شَهَادَاتٍ بِاللَّهِ إِنَّهُ لَمِنَ الصَّادِقِينَ وَالْخَامِسَةُ أَنَّ لَعْنَتَ اللَّهِ عَلَيْهِ إِن كَانَ مِنَ الْكَاذِبِينَ وَيَدْرَأُ عَنْهَا الْعَذَابَ أَنْ تَشْهَدَ أَرْبَعَ شَهَادَاتٍ بِاللَّهِ إِنَّهُ لَمِنَ الْكَاذِبِينَ وَالْخَامِسَةَ أَنَّ غَضَبَ اللَّهِ عَلَيْهَا إِن كَانَ مِنَ الصَّادِقِينَ}}﴾}}<ref> و آنان که به همسران خود تهمت (زنا) میزنند و گواهی جز خود ندارند گواهی هر یک از آنان، چهار بار گواهی دادن (با سوگند) به خداوند است که «به راستی من از راستگویانم».و (بار) پنجم (بگوید): «لعنت خداوند بر من اگر از دروغگویان باشم».و عذاب را از زن باز میدارد اینکه چهار بار (با سوگند) به خداوند گواهی دهد که شوهرش از دروغگویان است.و (بار) پنجم (بگوید): خشم خداوند بر من باد، اگر (شوهرم) از راستگویان باشد؛ سوره نور، آیه:۶-۹.</ref>.
| | # حق |
| *لعان مصدر باب مفاعله به معنای لعنت فرستادن بر همدیگر است. پس از نزول آیه چهارم سوره نور که میفرماید: کسانی که نسبت زنا به زنان شوهردار میدهند، سپس چهار گواه نمیآورند، هشتاد تازیانه به آنان بزنید.
| | # حق المبین |
| *این حکم بر برخی از مسلمانان گران آمد؛ چرا که حتی اگر به چشم خود میدیدند که همسرشان مرتکب زنا شده است، تا زمانی که چهار شاهد نمیآوردند، نمیتوانستند زن خود را متهم کنند. این مسأله برای شخصی به نام [[هلال بن امیه]] اتفاق افتاد و مطابق آیه بیانشده باید حدّ قذف بر او جاری میشد. در این هنگام آیات ششم تا نهم سوره نور نازل شد و این مشکل را به گونهای دیگر حل کرد.
| | # [[حکیم]] |
| *با نزول این آیات، [[پیغمبر]]{{صل}} شادمانه به [[هلال بن امیه]] فرمود:"خدا تو را گشایش داد و [[هلال بن امیه]] گفت: از پروردگار همین امید را داشتم"<ref>اسباب النزول، علی بن احمد واحدی نیشابوری، تحقیق عصام بن عبد المحسن الحمیدان، بیروت، مؤسسة الریّان، ۱۴۱۱ ﻫ، ص ۱۱۱ ـ ۱۱۲.</ref>.
| | # [[حلیم]] |
| *در این آیات به منظور تعمیم، از کلمه موصولی {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|الَّذِينَ}}﴾}} و جمله صله استفاده شده است. از اینرو تمام کسانی که به همسران خود نسبت کار ناشایست میدهند و چهار شاهد برای اثبات آن ندارند، مشمول این حکم میشوند و هیچ قرینهای دالّ بر اختصاص آن وجود ندارد.
| | # حمید |
| #'''شهادت غیر مسلمانان و حدود اعتبار آن:''' در آیات ۱۰۶ و ۱۰۷ سوره مائده آمده است:{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ شَهَادَةُ بَيْنِكُمْ إِذَا حَضَرَ أَحَدَكُمُ الْمَوْتُ حِينَ الْوَصِيَّةِ اثْنَانِ ذَوَا عَدْلٍ مِّنكُمْ أَوْ آخَرَانِ مِنْ غَيْرِكُمْ إِنْ أَنتُمْ ضَرَبْتُمْ فِي الأَرْضِ فَأَصَابَتْكُم مُّصِيبَةُ الْمَوْتِ تَحْبِسُونَهُمَا مِن بَعْدِ الصَّلاةِ فَيُقْسِمَانِ بِاللَّهِ إِنِ ارْتَبْتُمْ لاَ نَشْتَرِي بِهِ ثَمَنًا وَلَوْ كَانَ ذَا قُرْبَى وَلاَ نَكْتُمُ شَهَادَةَ اللَّهِ إِنَّا إِذًا لَّمِنَ الآثِمِينَ فَإِنْ عُثِرَ عَلَى أَنَّهُمَا اسْتَحَقَّا إِثْمًا فَآخَرَانِ يَقُومَانِ مَقَامَهُمَا مِنَ الَّذِينَ اسْتَحَقَّ عَلَيْهِمُ الأَوْلَيَانِ فَيُقْسِمَانِ بِاللَّهِ لَشَهَادَتُنَا أَحَقُّ مِن شَهَادَتِهِمَا وَمَا اعْتَدَيْنَا إِنَّا إِذًا لَّمِنَ الظَّالِمِينَ}}﴾}}<ref> ای مؤمنان! چون مرگ یکی از شما در رسد گواه گرفتن میان شما هنگام وصیت، (گواهی) دو (مرد) دادگر از شما (مسلمانان) است و اگر سفر کردید و مصیبت مرگ گریبان شما را گرفت (و گواه مسلمان نیافتید) دو گواه دیگر از غیر شما (مسلمانان) است و اگر (به آنها) شک دارید آنان را تا پس از نماز باز دارید آنگاه سوگند به خداوند خورند که: ما آن (گواهی خود) را به هیچ بهایی نمیفروشیم هرچند (درباره) خویشاوندان (ما) باشد و گواهی (در پیشگاه) خداوند را پنهان نمیداریم که اگر بداریم از گناهکاران خواهیم بود.پس اگر دانسته شود که آن دو گواه خیانت کردهاند، دو تن دیگر از میان همان کسانی که آن دو شاهد سزاوارتر در حق آنان خیانت کردند، جای آن دو را میگیرند و به خداوند سوگند میخورند که: گواهی ما درستتر از گواهی آن دو تن است و ما (از راستی) تجاوز نکردهایم که اگر کنیم بیگمان از ستمکاران خواهیم بود؛ سوره مائده، آیه:۱۰۶ - ۱۰۷.</ref>.
| | # [[حیّ]] |
| *در باره سبب نزول اين آيه از [[ابن عباس]] روایت شده است که [[تمیم الداری]] و [[عدی بن زید]] به مکه رفت و آمد میکردند. مردی از بنی سهم قریش همراه ایشان بود و مرگش در سرزمینی که هیچ مسلمانی حضور نداشت، فرا رسید. او ماتَرک خویش را به آن دو تن سپرد که به ورثهاش برسانند. آنها نیز همه چیز را جز یک جام نقرهای مشبّک به طلا، به ورثهاش دادند و چون ورثه او سراغ آن را گرفتند، آن دو شخص گفتند که آن را ندیدهایم. آن دو را نزد [[پیغمبر]]{{صل}} بردند، [[پیغمبر]]{{صل}} سوگندشان داد و آنها سوگند خوردند که چیزی پنهان نکردهاند و خبر ندارند. [[پیغمبر]]{{صل}} رهایشان کرد. اما پس از مدتی جام نزد جمعی از اهل مکه پیدا شد و آنها گفتند که آن را از تمیم داری و عدی بن زید خریدهایم. ورثه آن مردِ سهمی به دعوی برخاستند و دو تن از ایشان شهادت دادند که این جامِ خویشاوند ماست و گواهی ما از گواهی عدی بن زید و تمیم داری راستتر است، و ناحق نمیگوییم. دو آیه ۱۰۶ و ۱۰۷ سوره مائده به این مناسبت نازل شد<ref>اسباب النزول، علی بن احمد واحدی نیشابوری، تحقیق عصام بن عبد المحسن الحمیدان، بیروت، مؤسسة الریّان، ۱۴۱۱ ﻫ، ص ۳۳ ـ ۳۴.</ref>. و سخن آنها را تأیید کرد. عمومیت لفظ ﴿یٰا أیُّها الَّذینَ آمَنوا﴾ در آیه صد و ششم این سوره، امر بسیار روشنی است که از توضیح بینیاز است<ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۴۳.</ref><ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۴۱ - ۱۴۳.</ref>.
| | # [[خالق]] |
| | # خبیر |
| | # خلاق |
| | # خیر الحاکمین |
| | # خیر الراحمین |
| | # خیر الرازقین |
| | # [[حی]] الفافرین |
| | # خیر الفاتحین |
| | # خیر الفاصلین |
| | # خیر الماکرین |
| | # خیر المنزلین |
| | # خیرالناصرین |
| | # خیر الوارثین |
| | # خیر حافظا |
| | # ذو الجلال و الاکرام |
| | # ذو الرحمة |
| | # ذوالعرش |
| | # ذو الفضل العظیم |
| | # ذو القوة المتین |
| | # ذو [[انتقام]] |
| | # ذو [[رحمة]] واسعة |
| | # [[ذو عقاب]] الیم |
| | # ذو [[فضل]] |
| | # ذو مغفرة |
| | # ذی الطول |
| | # ذی المعارج |
| | # [[رئوف]] |
| | # [[رب]] آبائکم الاولین |
| | # رب السماوات السبع |
| | # رب السماوات و الأرض |
| | # رب السماء و الأرض |
| | # رب الشّعری |
| | {{پایان فهرست اثر}} |
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| ==اعتبار عموم لفظ به شرط تأیید با سیاق== | | ===جلد دوم=== |
| *هنگامی که گفته میشود که عموم لفظ معتبر است نه خصوص سبب، منظور آن نیست که لفظ یک آیه یا بخشی از آن، بدون در نظر گرفتن سیاق آن، عمومیت و اطلاق دارد. نمونه ذیل این موضوع را به خوبی روشن میسازد.
| | {{فهرست اثر}} |
| *در سبب نزول آیه {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|وَأَنفِقُواْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَلاَ تُلْقُواْ بِأَيْدِيكُمْ إِلَى التَّهْلُكَةِ وَأَحْسِنُواْ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ }}﴾}}<ref> و در راه خداوند هزینه کنید و با دست خویش خود را به نابودی نیفکنید و نیکوکار باشید که خداوند نیکوکاران را دوست میدارد؛ سوره بقره، آیه:۱۹۵.</ref> آمده است این آیه در باره انصار نازل شد که یک سال از انفاق در راه خدا خودداری ورزیدند. [[ابو منصور بغدادی]] به اسناد خود از [[حکم بن عمران]] روایت میکند که ما در کنار قسطنطنیه بودیم. [[عقبة بن عامر]] از صحابه [[رسول خدا]]{{صل}} بر اهل مصر و [[فضالة بن عبید]]، دیگر صحابی [[رسول خدا]]، بر اهل شام حکومت میکردند. میان مسلمانان و رومیان نزاع سختی در گرفت و دو طرف رویاروی هم صفبندی کردند. مردی از مسلمانان بر لشکر روم حمله برد و در انبوه جمعیت ایشان فرو رفت. مسلمین فریاد زدند: {{عربی|اندازه=150%|" أَلْقٰی بِیَدَیْهِ إلَی التَّهْلُکَةِ"}}؛ يعنی خود را با دست خود به هلاکت افکند. اما آن مرد سالم بازگشت و ابوایوب انصاری، صحابی [[رسول خدا]]{{صل}}، گفت: ای مردم، آیه را بیجا به کار نبرید و نادرست معنا نکنید. این آیه در باره ما گروه انصار نازل شد که وقتی اسلام عزت یافت و مسلمان زیاد شد، بعضی با بعضی در نهان میگفتیم که اموال ما تباه شد و بر باد رفت، اگر بر سر کارها و مالهای خود بودیم و کاسبی میکردیم، از بین نمیرفت. و این آیه در جواب ما و آنچه اندوهناکمان کرده بود، نازل شد. تَهلُکه بر سر مال دنیا ایستادن است، در حالی که خدا ما را به جهاد امر فرموده است"<ref>رک: مقدمة فی اصول التفسیر، احمد بن تیمیه، منشورات دار مکتبة الحیاة، بیروت، بیتا، ص ۱۶ ـ ۱۵.</ref>.
| | # [[ثمود]] |
| *نتیجه آن كه تقدم عمومیت لفظ بر خصوص سبب را باید با توجه به سیاق و موضوعی که آیه در باره آن نازل شده است، به دست آورد. ابنتیمیه میگوید که اساساً منظور کسانی که خصوص سبب را بر عموم لفظ ترجیح میدهند، این نیست که حکم آیاتی از قرآن، که اسباب نزول خاصی دارند، مخصوص شخص یا اشخاص معینی است، بلکه مقصودشان آن است که حکم آیه به نوعِ آن اشخاص اختصاص دارد و تمام موارد مشابه را شامل میشود<ref>رک: واحدی، پیشین، ص ۱۰۵؛ التبیان فی تفسیر القرآن، شیخ طوسی، دار إِحیاء التراث العربی، بیروت، بیتا، ج ۳، ص ۵۵۸ ـ ۵۶۴؛ المیزان فی تفسیر القرآن، محمد حسین طباطبایی، مؤسسة الأَعلمی للمطبوعات، بیروت، ۱۹۹۷، ج ۶، ص ۲۵ ـ ۵.</ref>.
| | # [[ثواب]] [[دنیا]] و [[آخرت]] |
| *نکته آخر در این باب اینکه اصل تقدّم عموم لفظ بر خصوص سبب در جایی معتبر است که دلیل خاصی بر خلاف آن وجود نداشته باشد. اما در صورتی که دلیل یا دلایلی معتبر بر اختصاص حکم آیه به خصوص سبب، وجود داشته باشد، حکم آیه عمومیت یا اطلاق نخواهد داشت، چنان که نظر مفسران شیعه در باره آیه ۵۵ سوره مائده، آن است که حکم آیه به [[حضرت علی]]{{ع}} اختصاص دارد و آیه در مقام بیان ولایت [[حضرت علی]]{{ع}} بر مؤمنان، همچون ولایت خداوند و [[پیامبر]]{{صل}} بر آنان، است، که همان [[ولایت]] در تصرّف و سرپرستی است.
| | # [[جالوت]] |
| *در احادیث فراوانی از [[اهل سنت]] و [[شیعه]] نقل شده است، هنگامی که [[امام علی]]{{ع}} در حال رکوع، انگشتری خود را به سائلی دادند، آیه ۵۵ سوره مائده، كه به آیه [[ولایت]] مشهور است، نازل شد<ref>البرهان فی علوم القرآن، بدر الدین زرکشی، تحقیق یوسف عبد الرحمن بن مرعشلی، بیروت، دار المعرفة، ۱۴۱۰ ﻫ، ج ۱، ص ۱۲۶.</ref>{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| إِنَّمَا وَلِيُّكُمُ اللَّهُ وَرَسُولُهُ وَالَّذِينَ آمَنُواْ الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُمْ رَاكِعُونَ}}﴾}}<ref> سرور شما تنها خداوند است و پیامبر او و (نیز) آنانند که ایمان آوردهاند، همان کسان که نماز برپا میدارند و در حال رکوع زکات میدهند؛ سوره مائده، آیه:۵۵.</ref>
| | # [[جاودانگی]] [[پاداش اخروی]] |
| *این آیه اگر چه از نظر ساخت و ترکیب زبانی، مفهومی عام دارد؛ چرا که از موصول و صله استفاده شده است، امّا نباید در فهم مقصود گوینده تنها به مدلول منطقی الفاظ و ساخت آنها توجه کرد، بلکه علاوه بر آن، باید بافت جمله و فضایی را که آن ترکیب در آن به کار رفته است، نیز در نظر گرفت. بافت خاصّ این آیه، که [[ولایت]] تصدّی "حكومت" و در ردیف ولایت خدا و [[رسول]] بر مردم است، دلالت میکند که از لفظ عامِ {عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلاةَ}}﴾}} مدلولی خاص قصد شده باشد. بنا بر این، اگر چه آیه با لفظ عام آمده است، اما با توجه به قرائن مقالی و مقامی تنها بر یک نفر منطبق است.
| | # [[جاودانگی]] [[عذاب اخروی]] |
| *آیه زیر به خوبی کاربرد لفظ عام و اراده معنای خاص را نشان میدهد:{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| الَّذِينَ قَالَ لَهُمُ النَّاسُ إِنَّ النَّاسَ قَدْ جَمَعُواْ لَكُمْ فَاخْشَوْهُمْ فَزَادَهُمْ إِيمَانًا وَقَالُواْ حَسْبُنَا اللَّهُ وَنِعْمَ الْوَكِيلُ }}﴾}}<ref> کسانی که مردم به آنان گفتند: مردم در برابر شما همداستان شدهاند، از آنها پروا کنید! اما بر ایمانشان افزود و گفتند: خداوند ما را بس و او کارسازی نیکوست؛ سوره آل عمران، آیه:۱۷۳.</ref>.
| | # [[جاهلیت]] روشها و [[منشها]] |
| *این آیه جزء مجموعه آياتی است كه پس از جنگ بدر نازل شده است. اگر در این آیه، تنها معیار عمومیت لفظ را در نظر بگیریم، این امر مستلزم آن است که مراد از لفظ {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|النَّاسَ}}﴾}} در هر دو مورد "همه انسانها" باشد و آنگاه آیه اینگونه معنا میشود که همه انسانها به آن مؤمنان گفتهاند که همه انسانها برای جنگ با شما گرد آمدهاند، در حالی که مسلماً مراد، برخی از انسانها بوده است. زیرا گویندگان سخن، غیر از افرادی هستند که در باره آنان سخن به میان آمده است. مراد از الناسِ اول، نعیم بن سعید است و مراد از الناسِ دوم، ابو سفیان و یاران او هستند<ref>ر. ک: مجمع البیان فی تفسیر القرآن، طبرسی، بیروت، مؤسسة الأَعلمی للمطبوعات، ۱۹۹۵م، ج ۲، ص ۴۵۰.</ref>. [[ابو علی فارسی]] گفته است:"دلیلِ آنکه منظور از کلمه {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|النَّاسَ}}﴾}} در جمله {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|قَالَ لَهُمُ النَّاسُ}}﴾}} یک تن است، آیه بعدیِ آن است که میگوید:{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| إِنَّمَا ذَلِكُمُ الشَّيْطَانُ يُخَوِّفُ أَوْلِيَاءهُ فَلاَ تَخَافُوهُمْ وَخَافُونِ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ }}﴾}}<ref> جز این نیست که آن شیطان است که دوستانش را میترساند؛ از آنان نترسید و اگر مؤمنید از من بترسید؛ سوره آل عمران، آیه:۱۷۵.</ref>؛ در این آیه با لفظ {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| ذَلِكُمُ الشَّيْطَانُ}}﴾}} به یک فرد معین اشاره شده است<ref>ر.ک: البرهان فی علوم القرآن، بدر الدین زرکشی، تحقیق یوسف عبد الرحمن بن مرعشلی، ص ۴۶ ـ ۴۷؛ معنای متن، نصر حامد ابو زید، ترجمۀ مرتضی کریمینیا، تهران، طرح نو، ص ۱۹۳.</ref>.
| | # [[جبرئیل]] |
| *نتیجه آنکه در موضوع "عمومیت لفظ" و "خصوصیت سبب" باید هم به ساخت و ترکیب منطقی مفاهیم، و هم به بافت و سیاق زبانیِ درونِ متن توجه کرد و چه بسا عدم توجه به یکی از این دو مورد، سبب اختصاص یا تعمیم بیمورد شود<ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۴۳ - ۱۴۵.</ref><ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۳۲ - ۱۴۵.</ref>.
| | # [[جدال]] در [[دین]] |
| ==نقش اسباب نزول در تفسیر قرآن==
| | # [[جزا]] و [[پاداش اعمال]] |
| *همانگونه که در بخش پیش ذکر شد، برای دریافت مرادِ آیات قرآن، هم باید به ساخت منطقی مفاهیم و گزارهها، و هم به بافت و سیاقی که متن در آن قرار دارد، توجه کرد. بدون تردید، اسباب نزول یکی از ابزارهایی است که ما را در شناخت هر چه بهتر بافت فرهنگی و اجتماعی نزول آیات یاری میکند. نزول قرآن در طول بیست و سه سال، با فراز و نشیبهای زیاد، شرایط مختلف فرهنگی و اجتماعی و نیز تکیه قرآن بر قرینههای مقامی، نیاز به اسباب نزول را برای فهم درست مقاصد آیات دوچندان میکند. با دانستن اسباب نزول، مفسّر در فضای زنده و حقیقی مکه و مدینه قرار میگیرد و شرایط عینی نزول آیات را احساس میکند و به عکس، بدون اطلاع از اسباب نزول، فهم برخی از آیات قرآن، آنچنان که باید، ممکن نیست و چه بسا مفسّر در فهم آنها دچار انحراف شود. برای آشنایی با نقش و اهمیت اسباب نزول در تفسیر قرآن، چند نمونه از کاربردهای اسباب نزول را ذکر میکنیم:<ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۴۶.</ref><ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۴۵.</ref>.
| | # [[جزا]] و [[کیفر]] [[باغی]] |
| ===بررسی چند نمونه از اسباب نزول===
| | # [[جزا]] و [[کیفر]] [[بدی]] |
| #'''آیه ۱۴۵ انعام:''' آیه ۱۴۵ انعام در مقام شمارش محرّمات در باره خوردنیها میفرماید:{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| قُل لاَّ أَجِدُ فِي مَا أُوحِيَ إِلَيَّ مُحَرَّمًا عَلَى طَاعِمٍ يَطْعَمُهُ إِلاَّ أَن يَكُونَ مَيْتَةً أَوْ دَمًا مَّسْفُوحًا أَوْ لَحْمَ خِنزِيرٍ فَإِنَّهُ رِجْسٌ أَوْ فِسْقًا أُهِلَّ لِغَيْرِ اللَّهِ بِهِ فَمَنِ اضْطُرَّ غَيْرَ بَاغٍ وَلاَ عَادٍ فَإِنَّ رَبَّكَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ}}﴾}}<ref> بگو: در آنچه به من وحی شده است چیزی نمییابم که برای خورندهای که آن را میخورد حرام باشد؛ مگر مردار و یا خون ریخته یا گوشت خوک که پلید است و یا (آنچه) از سر نافرمانی جز به نام خداوند ذبح شده باشد اما کسی که (از خوردن آنها) ناگزیر شده است در حالی که افزونخواه (برای رسیدن به لذت) و متجاوز (از حدّ سدّ جوع) نباشد بیگمان پروردگارت آمرزنده بخشاینده است؛ سوره انعام، آیه:۱۴۵.</ref>. [[مالک بن انس]]، رهبر مالکیها، با توجه به ساخت و ترکیب این آیه، تصور کرده که این آیه تمام محرمات را بر شمرده است، زیرا در آن ترکیب نفی "لا" و استثناء "الاّ" آمده است که نشانه حصر است و با توجه به این ترکیب، این آیه تمامی محرمات را استقصا نموده است. اما شافعی با استناد به سبب نزول آیه، معتقد است که این آیه تمام محرّمات را استقصا نکرده است و تنها در مقام بیان حرمت همین چند مورد خاصّ است، بی آنکه بتوان نتیجه گرفت که امور دیگری كه ذکر نشدهاند، همگی حلال هستند<ref>ر.ک: البرهان فی علوم القرآن، بدرالدین زرکشی، تحقیق یوسف عبد الرحمن بن مرعشلی، ص ۴۶ ـ ۴۷؛ معنای متن، نصر حامد ابو زید، ترجمۀ مرتضی کریمینیا، تهران، طرح نو، ص ۱۹۳.</ref>. [[بدر الدین زرکشی]] در اینباره مینویسد: "از آنجا که کافران حلال خداوند را حرام و حرام او را حلال میشمردند و قصدِ مخالفت و دشمنی داشتند، این آیه برای نقض غرضِ ایشان نازل شد. گویی این آیه به کافران اعلام میکند که هیچ حلالی جز آنچه شما حرام کردهاید، و هیچ حرامی جز آنچه حلال کردهاید، وجود ندارد؛ شبیه آنکه چون به تو میگویند: امروز شیرینی نخور، میگویی: امروز فقط شیرینی خواهم خورد. و منظور تو بیان مخالفت است، نه نفی، اثبات و حصر واقعی. در این آیه نیز گویی خداوند گفته است که هیچ حرامی جز مردار، خون، گوشت خوک و ذبیحه غیر شرعی، که شما آنها را حلال میدانید، وجود ندارد. مراد آیه این نیست که جز اینها، همه چیز حلال است، زیرا غرض اثبات تحریم بوده است نه بیان حلیّت<ref>ر.ک: البرهان فی علوم القرآن، بدرالدین زرکشی، تحقیق یوسف عبد الرحمن بن مرعشلی، ص ۴۶ ـ ۴۷؛ معنای متن، نصر حامد ابو زید، ترجمۀ مرتضی کریمینیا، تهران، طرح نو، ص ۱۹۳.</ref>. این تفسیر از آیه با استناد به اسبابِ نزول، با ترتیب نزول آیات مربوط به تحریم خوردنیها نیز سازگاری دارد. مطابق نقل سیوطی، نخستین آیهای که در مکه در باره خوردنیها نازل شد، از سوره انعام است: {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| قُل لاَّ أَجِدُ فِي مَا أُوحِيَ إِلَيَّ مُحَرَّمًا عَلَى طَاعِمٍ يَطْعَمُهُ إِلاَّ أَن يَكُونَ مَيْتَةً أَوْ دَمًا مَّسْفُوحًا أَوْ لَحْمَ خِنزِيرٍ فَإِنَّهُ رِجْسٌ أَوْ فِسْقًا أُهِلَّ لِغَيْرِ اللَّهِ بِهِ فَمَنِ اضْطُرَّ غَيْرَ بَاغٍ وَلاَ عَادٍ فَإِنَّ رَبَّكَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ}}﴾}}<ref> بگو: در آنچه به من وحی شده است چیزی نمییابم که برای خورندهای که آن را میخورد حرام باشد؛ مگر مردار و یا خون ریخته یا گوشت خوک که پلید است و یا (آنچه) از سر نافرمانی جز به نام خداوند ذبح شده باشد اما کسی که (از خوردن آنها) ناگزیر شده است در حالی که افزونخواه (برای رسیدن به لذت) و متجاوز (از حدّ سدّ جوع) نباشد بیگمان پروردگارت آمرزنده بخشاینده است؛ سوره انعام، آیه:۱۴۵.</ref> سپس آیه سوره نحل نازل شد که میفرماید:{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|فَكُلُواْ مِمَّا رَزَقَكُمُ اللَّهُ حَلالاً طَيِّبًا وَاشْكُرُواْ نِعْمَتَ اللَّهِ إِن كُنتُمْ إِيَّاهُ تَعْبُدُونَ}}﴾}}<ref> پس، از آنچه خداوند روزی شما کرده است حلال و پاکیزه بخورید و نعمت خداوند را سپاس بگزارید اگر تنها او را میپرستید؛ سوره نحل، آیه:۱۱۴.</ref> آنگاه در مدینه آیه سوره بقره نازل شد که میفرماید: {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|إِنَّمَا حَرَّمَ عَلَيْكُمُ الْمَيْتَةَ وَالدَّمَ وَلَحْمَ الْخِنزِيرِ وَمَا أُهِلَّ بِهِ لِغَيْرِ اللَّهِ فَمَنِ اضْطُرَّ غَيْرَ بَاغٍ وَلاَ عَادٍ فَلا إِثْمَ عَلَيْهِ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ}}﴾}}<ref> جز این نیست که (خداوند)، مردار و خون و گوشت خوک و آنچه را جز به نام خداوند ذبح شده باشد بر شما حرام کرده است؛ پس کسی که ناگزیر (از خوردن این چیزها) شده باشد در حالی که افزونخواه (برای رسیدن به لذّت) و متجاوز (از حدّ سدّ جوع) نباشد بر او گناهی نیست، که خداوند آمرزندهای بخشاینده است؛ سوره بقره، آیه: ۱۷۳.</ref> و در پایان، آیه سوره مائده{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|حُرِّمَتْ عَلَيْكُمُ الْمَيْتَةُ }}﴾}}<ref> سوره مائده، آیه: ۳.</ref> فرود آمد<ref>الدر المنثور، جلال الدین سیوطی، بیروت، دار الفكر، ۱۹۹۳ م، ج ۱، ص ۱۰۰.</ref> | | # [[جزا]] و [[کیفر]] [[تهمت]] به [[زنان]] [[پارسا]] |
| #'''آیه ۱۵۸ بقره:''' در آیه ۱۵۸ بقره آمده است:{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|إِنَّ الصَّفَا وَالْمَرْوَةَ مِن شَعَائِرِ اللَّهِ فَمَنْ حَجَّ الْبَيْتَ أَوِ اعْتَمَرَ فَلاَ جُنَاحَ عَلَيْهِ أَن يَطَّوَّفَ بِهِمَا وَمَن تَطَوَّعَ خَيْرًا فَإِنَّ اللَّهَ شَاكِرٌ عَلِيمٌ }}﴾}}<ref> بیگمان صفا و مروه از نشانههای (بندگی) خداوند است پس هر کس حج خانه (ی کعبه) بجای آورد یا عمره بگزارد بر او گناهی نیست که میان آن دو را بپیماید و هر که خود خواسته کاری نیک انجام دهد، خداوند سپاسگزاری داناست؛ سوره بقره، آیه: ۱۵۸.</ref>. کسی که سبب نزول این آیه را نداند، از تعبیر {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|فَلاَ جُنَاحَ عَلَيْهِ أَن يَطَّوَّفَ بِهِمَا}}﴾}} چنین میپندارد که سعی بین صفا و مروه امری واجب نیست. در سبب نزول آن آمده است که مسلمانان چنین میپنداشتند که این سعی گناه است، چرا که در زمان جاهلیت بر روی دو كوهِ صفا و مروه دو بُت به نامهای اِساف و نائله قرار داشت که مشرکان هنگام سعی، آن دو را مسح میکردند. امّا پس از اسلام، این بتها شکسته شد. با این حال مسلمانان همچنان گمان میکردند که این عمل گناه است. از این رو خداوند با نزول این آیه این توهّم را برطرف نمود<ref>ر.ک: الإِستیعاب فی بیان الأَسباب، سلیم بن عبد الهلالی و محمد بن موسی آل نصر، دار ابن جوزی، عربستان سعودی، ۱۴۲۵ ﻫ، ج ۱ ،ص ۸.</ref>. | | # [[جزا]] و [[کیفر]] [[تهمت]] به [[زنان]] خود |
| #'''آیه ۱۱۵ بقره:''' آیه ۱۱۵ سوره بقره میفرماید:{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| وَلِلَّهِ الْمَشْرِقُ وَالْمَغْرِبُ فَأَيْنَمَا تُوَلُّواْ فَثَمَّ وَجْهُ اللَّهِ إِنَّ اللَّهَ وَاسِعٌ عَلِيمٌ}}﴾}}<ref> و خاور و باختر از آن خداوند است پس هر سو رو کنید رو به خداوند است، بیگمان خداوند نعمتگستری داناست؛ سوره بقره، آیه:۱۱۵.</ref>. کسی كه شأن نزول این آیه را نداند، تصور میکند که رو به قبله بودن در نماز واجب نیست. اما در شأن نزول آن آمده است که وقتی قبله مسلمانان از بیت المقدس به مسجد الحرام تغییر یافت، یهودیان گفتند که تغییر قبله ممکن نیست و این آیه در جواب آنها نازل شد<ref>ر. ک: مجمع البیان فی تفسیر القرآن، طبرسی، بیروت، مؤسسة الأَعلمی للمطبوعات، ۱۹۹۵م، ج ۱، ص ۱۹۱.</ref>. برخی از اخبار نیز حاکی از آن است که این آیه در باره نمازهای نافله است و قرآن در مورد نمازهای واجب میفرماید: {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| وَحَيْثُ مَا كُنتُمْ فَوَلُّواْ وُجُوهَكُمْ شَطْرَهُ }}﴾}}<ref> سوره بقره، آیه: ۱۴۴.</ref> و در برخی اخبار دیگر نیز آمده است که این آیه مربوط به جایی است که تشخیص جهت قبله امکانپذیر نباشد<ref>ر.ک: التبیان فی تفسیر القرآن، شیخ طوسی، ج ۱، ص ۴۲۴؛ الاتقان فی علوم القرآن، جلال الدین سیوطی، ج ۱، ص ۲۶۷ ـ ۲۶۶.</ref><ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۴۶ - ۱۴۸.</ref>. | | # [[جزا]] و [[کیفر]] دزدی و دزدان |
| ==تعدّد [[اسباب نزول]] و وحدت نازل==
| | # [[جزا]] و [[کیفر]] زناکار |
| *گاهی در باره نزول آیه یا آیاتی از قرآن کریم چندین روایت مختلف گزارش شده است و هر یک از این روایات نیز داستانی را به عنوان سبب نزول آن آیه یا آیات بیان کردهاند. در این صورت باید وضعیت این روایات را از نظر متن و سند بررسی نمود.
| | # [[جزا]] و [[کیفر]] زنای [[کنیزان]] |
| *در چنین شرایطی، در مجموع، چند فرض را میتوان در نظر گرفت:
| | # [[جزا]] و [[کیفر]] شکار در [[حرم]] |
| #یکی از روایات صحیح و بقیه ناصحیح است؛ | | # [[جزا]] و [[کیفر]] [[قاتل]] [[مؤمن]] |
| #بیش از یک روایت صحیح است، ولی تنها یکی از آنها مرجِّح دارد؛ | | # [[جزا]] و [[کیفر]] [[قتل عمد]] |
| #بیش از یک روایت صحیح است، ولی هیچکدام مرجِّح ندارد. كه در این صورت دو گونه است: یا میتوان آنها را جمع کرد، یا آنکه قابل جمع نیستند. | | # [[جزا]] و [[کیفر]] [[قتل]] غیر عمد |
| *بنا بر این مواردی که اسباب نزول متعددی برای آیه یا آیاتی نقل شده است را میتوان در چهار فرض ذیل خلاصه كرد:
| | # [[جزا]] و [[کیفر]] [[قتل نفس]] |
| *'''فرض اول:'''اِسناد یکی از روایاتِ نقل شده صحیح و بقیه ناصحیح است. بدیهی است که در این حالت روایت صحیح به عنوان سبب نزول آیه تلقی خواهد شد. برای مثال در مورد سبب نزول آیه {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|فَأَيْنَمَا تُوَلُّواْ فَثَمَّ وَجْهُ اللَّهِ }}﴾}}<ref> سوره بقره، آیه: ۱۴۴.</ref> چند سبب نقل شده است که تنها یکی از آنها صحیح است و در آن به سبب نزول تصریح شده است<ref>رک: اسباب النزول، محمد باقر حجتی، تهران، وزرات ارشاد اسلامی، ۱۳۶۵ ش، ص ۱۸۷ ـ ۱۸۴.</ref>.
| | # [[جزا]] و [[کیفر]] [[کافران]] |
| *'''فرض دوم:''' این است که بیش از یک روایت دارای سند صحیح باشد، امّا تنها یکی از آنها مرجّح داشته باشد، به عنوان مثال راویِ یکی از آن روایات در حادثهای که سبب نزول آیه شده است، حاضر باشد، که در این صورت چنین روایتی بر روایات دیگر مقدّم خواهد بود. برای مثال در مورد سبب نزول آیه {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|وَيَسْأَلُونَكَ عَنِ الرُّوحِ قُلِ الرُّوحُ مِنْ أَمْرِ رَبِّي وَمَا أُوتِيتُم مِّن الْعِلْمِ إِلاَّ قَلِيلاً}}﴾}}<ref> از تو درباره روح میپرسند بگو روح از امر پروردگار من است و به شما از دانش جز اندکی ندادهاند؛ سوره اسراء، آیه:۸۵.</ref>، دو سبب نقل شده است. اما در یکی از این دو روایت، [[عبد الله بن مسعود]]، که راوی حدیث است، در متن واقعه حضور داشته و ناظر بر صحنه بوده است<ref>مناهل العرفان فی علوم القرآن، عبدالعظیم زرقانی، بیروت، دار الکتب العلمیه، ۱۹۸۸، ج ۱، ص ۱۱۹ ـ ۱۱۸.</ref> از این رو چنین سبب نزولی بر دیگری مقدم است.
| | # [[جزا]] و [[کیفر]] [[محاربه با خدا]] و [[پیامبر]]{{صل}} |
| *'''فرض سوم:'''در این فرض، بیش از یک روایت صحیح است، ولی هیچکدام از آنها دارای مرجّح نیست كه بتوان آن را بر روایات دیگر مقدم دانست. امّا میتوان بین آنها را جمع کرد و تمامی آنها را به عنوان اسباب نزول آیه یا آیات مورد نظر تلقی نمود و این در صورتی است که فاصله زمانی میان آنها طولانی نباشد. در این صورت گفتهاند که مانعی ندارد آیه یا آیاتی از قرآن بر اثر وقوع چند حادثه و پیشآمد نازل شده باشد. به عنوان مثال در باره نزول آیات مربوط به "لعان" دو روایت آمده است که یکی در باره "[[هلال بن امیّه]]" و دیگری در باره "[[عُوَیمر بن حارث]]" است. این دو روایت هر دو صحیح است و هیچکدام بر دیگری برتری ندارد<ref>مناهل العرفان فی علوم القرآن، عبدالعظیم زرقانی، بیروت، دار الکتب العلمیه، ۱۹۸۸، ج ۱، ص ۱۱۹ ـ ۱۲۰.</ref>.
| | # [[جزا]] و [[کیفر]] مُرتد |
| *'''فرض چهارم:'''مطابق این فرض دو یا چند روایت صحیح وجود دارد که هیچ یک بر دیگری ترجیح ندارد و هر کدام اسباب نزول متفاوتی را نقل کردهاند. علاوه بر این، متن آنها نیز قابل جمع نیست. برای مثال در مورد نزول آیه {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|وَإِنْ عَاقَبْتُمْ فَعَاقِبُواْ بِمِثْلِ مَا عُوقِبْتُم بِهِ وَلَئِن صَبَرْتُمْ لَهُوَ خَيْرٌ لِّلصَّابِرِينَ}}﴾}}<ref> و اگر کیفر میکنید مانند آنچه خود کیفر شدهاید کیفر کنید و اگر شکیبایی پیشه کنید همان برای شکیبایان بهتر است؛ سوره نحل، آیه: ۱۲۶.</ref> دو روایت است که یک روایت، نزول آن را پس از جنگ اُحد و روایت دیگر نزول آن را در روز فتح مکه ذکر کرده است<ref>مناهل العرفان فی علوم القرآن، عبدالعظیم زرقانی، بیروت، دار الکتب العلمیه، ۱۹۸۸، ج ۱، ص ۱۲۱.</ref>.
| | # [[جزیه]] |
| *بسیاری از محققان در مورد این فرض معتقدند که باید این روایات را بر تعدّد و تکرار نزول آیه یا آیات حمل نمود<ref>مناهل العرفان فی علوم القرآن، عبدالعظیم زرقانی، بیروت، دار الکتب العلمیه، ۱۹۸۸، ج ۱، ص ۱۲۱.</ref>. تعدّد نزول اگر چه امری ممکن است، امّا وقتی آیهای تنها یک بار در قرآن کریم ثبت شده است، بسیار بعید مینُماید که بیش از یک بار نازل شده باشد. از اینرو در اینگونه موارد بهتر است بگوییم که احتمالاً [[پیامبر اکرم]]{{صل}} در برخی از حوادثِ ذکر شده، آیه یا آیات مورد نظر را که قبلاً نازل شده بود، تلاوت کرده است. بنا بر این، آیه مورد نظر به سبب حادثهای خاص نازل شده و به مناسبت در حادثه یا حوادث دیگر نیز تلاوت شده است. *[[سیوطی]] در اینباره مینویسد:"گاهی در یکی از دو روایت، عبارت {{عربی|اندازه=150%|" فَتَلا فِیهِم "}} آمده است، امّا دیگران آن را {{عربی|اندازه=150%|"فَنَزَلَ"}} دانستهاند. نمونه آن روایتی است که ترمذی آن را صحیح دانسته و از [[ابن عباس]] چنین نقل کرده است: "یکبار شخصی یهودی با [[پیامبر]]{{صل}} برخورد کرد و از او پرسید: یا ابا القاسم! اگر خداوند آسمانها را اینگونه، زمین را آنگونه، آب را چنین، کوهها را چنان و سایر مخلوقات را به این صورت قرار میداد، بهتر نبود؟ پس خداوند این آیه را نازل کرد:{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|وَمَا قَدَرُواْ اللَّهَ حَقَّ قَدْرِهِ إِذْ قَالُواْ مَا أَنزَلَ اللَّهُ عَلَى بَشَرٍ مِّن شَيْءٍ قُلْ مَنْ أَنزَلَ الْكِتَابَ الَّذِي جَاءَ بِهِ مُوسَى نُورًا وَهُدًى لِّلنَّاسِ تَجْعَلُونَهُ قَرَاطِيسَ تُبْدُونَهَا وَتُخْفُونَ كَثِيرًا وَعُلِّمْتُم مَّا لَمْ تَعْلَمُواْ أَنتُمْ وَلاَ آبَاؤُكُمْ قُلِ اللَّهُ ثُمَّ ذَرْهُمْ فِي خَوْضِهِمْ يَلْعَبُونَ }}﴾}}<ref> و خداوند را سزاوار ارجمندی وی ارج ننهادند که گفتند: خداوند بر هیچ بشری چیزی فرو نفرستاده است؛ بگو: کتابی را که موسی آورد چه کسی فرو فرستاد؟ که فروغی و رهنمودی برای مردم بود، آن را بر کاغذهایی مینگارید، (برخی از) آن را آشکار میدارید و بسیاری (دیگر) را پنهان میکنید؛ و آنچه شما و پدرانتان نمیدانستید به شما آموخته شد. بگو: خداوند (این قرآن را فرستاده است)؛ سپس آنان رها کن در بیهودگیشان به بازی پردازند؛ سوره انعام، آیه:۹۱.</ref> امّا در واقع، روایت چنین است که [[رسول خدا]]{{صل}} این آیه را تلاوت نمود و همین درست است، چرا که این آیه مکّی است<ref>ر.ک: التبیان فی تفسیر القرآن، شیخ طوسی، ج ۱، ص ۴۲۴؛ الاتقان فی علوم القرآن، جلال الدین سیوطی، ج ۱، ص ۲۶۷ ـ ۲۶۶.</ref><ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۴۸ - ۱۵۰.</ref>.
| | # [[جسارت]] در برخورد با [[پیامبر اکرم]]{{صل}} |
| | # [[جماعت]] |
| | # جنابت و [[حکم]] آن |
| | # [[جن]] رفتارها و مسئولیتها |
| | # [[جنّ]] و چگونگی [[خلق]] آن |
| | # [[جن]] و [[سلیمان]]{{ع}} |
| | # جواز [[گریه]] کردن از [[خشیت]] [[خدا]] |
| | # [[جوانمردی]] [[اصحاب کهف]] |
| | # [[جهاد با دشمن]] |
| | # [[جهاد با مشرکان]] و [[کافران]] |
| | # [[جهاد با نفس]] |
| | # [[جهالت]] و [[نادانی]] |
| | # چگونگی برخورد با [[خبر فاسق]] |
| | # چگونگی برخورد با [[کفر]] و [[کافران]] |
| | # چگونگی برخورد [[مخالفان]] با [[پیامبر]]{{صل}} و [[آزار]] او |
| | # حالات [[انسان]] هنگام [[مرگ]] |
| | # [[حجاب]] |
| | # [[حج]] الاکبر |
| | # [[حج]] و [[مناسک]] آن |
| | # [[حرمت]] شراب |
| | # [[حروف مقطعه]] |
| | # [[حسد]] / [[حسود]] |
| | # [[حسن]] سابقه نزد [[خدا]] |
| | # [[حُسن]] [[ظنّ]] و [[سوء]] [[ظنّ]] |
| | # [[حُسن عاقبت]] و [[سوء]] [[عاقبت]] |
| | # حضور فراگیر [[حق]] |
| | # [[حق]] |
| | # [[حقد]] و غلّ |
| | # [[حقیقت اسلام]] |
| | # [[حکم]] [[ازدواج]] با [[زن]] پسرخوانده |
| | # [[حکمت]] |
| | # [[حکم]] دزد |
| | # [[حکم]] [[روزه]] مسافر و مریض |
| | # [[حکم]] کردن و [[فرمان]] راندن |
| | # [[حکم]] [[محارب]] با [[خدا]] و [[رسول]] |
| | # [[حکمیت]] و [[حکم]] به [[عدالت]] |
| | # [[حکومت]] و [[حکمت]] شرایط و شیوهها |
| | # [[حلالها]] و پاکیزهها |
| | # [[حلال و حرام]] جارپایان |
| | # حلق و [[تقصیر]] |
| | # [[حمد]] و [[ثنای الهی]] |
| | # [[حنفاء]] / [[حنیف]] |
| | # [[حواریون]] |
| | # [[حیات]] و [[زندگی دنیوی]] |
| | # حیوانات و متعلقات آنها |
| | # [[خاک]]، ویژگیها و امکانات |
| | # [[خرید و فروش]] |
| | # [[خسوف]] |
| | # [[خشنودی]] و [[رضای الهی]] |
| | # [[خشوع]] / خاشعین |
| | # [[خشیت از خدا]] |
| | # [[خشیت]] [[عالمان]] از [[خدا]] |
| | # خطای در عمل و [[حکم]] آن |
| | # [[خفض]] جناح [[پیامبر اکرم]]{{صل}} نسبت به [[مؤمنان]] |
| | # [[خلقت]] [[آسمانها]] و [[زمین]] |
| | # [[خلقت]] [[الهی]] |
| | # [[خلوص]] / [[مخلص]] |
| | # [[خمس]] |
| | # [[خنده]] [[گناهکاران]] |
| | # [[خنده]] [[منافقان]] |
| | # [[خنده]] [[مؤمنان]] |
| | # [[خواب]] و [[خواب]] دیدن |
| | # خواست و [[اراده الهی]] |
| | # [[خورشید و ماه]] |
| | # [[خویشاوندان]] |
| | # [[خیانت]] و خیانتکاران |
| | # [[خیر و شر]] [[خوشی]] و ناخوشی |
| | # [[خیر]] و [[نیکی]] |
| | # [[داوری]] به عمل |
| | # [[داوری]] میان [[زن]] و شوهر |
| | # [[داوود]]{{ع}} |
| | # [[داوود]]{{ع}} و ساخت [[زره]] |
| | # درجات [[علما]] و [[دانشمندان]] |
| | # درختها و میوهها |
| | # [[درود فرستادن]] [[خدا]] |
| | # [[دروغ بستن به خدا]] و [[رسول خدا]] |
| | # [[دروغ]] و [[دروغگویی]] عوامل و پیامدها |
| | # دریانوردی |
| | # دریاها و چشمهها |
| | # [[دشمن]] [[پیامبران]] |
| | # [[دشمنی]] [[دوزخیان]] با یکدیگر |
| | # [[دعا]] و شرایط و نتایج آن |
| | # [[دعاها]] و درخواستها |
| | # [[دعوت]] |
| | # [[دعوت الهی]] |
| | # [[دعوت]] به [[آشتی]] و [[سازش]] با [[مردم]] |
| | # [[دعوت]] به [[اتحاد]] و [[یگانگی]] |
| | # [[دعوت]] به [[استقامت]] و [[پایداری]] |
| | # [[دعوت]] به [[اعتدال]] و [[میانهروی]] |
| | # [[دعوت]] به [[بزرگداشت]] [[خداوند]] |
| | # [[دعوت]] به [[حق]] و [[وظایف]] مبلغ |
| | # [[دعوت]] به [[همدلی]] و [[گشادهرویی]] |
| | # [[دنیا]] و [[آخرت]] |
| | # [[دوزخیان]] و گفتارشان |
| | # [[دوستی خدا]] و [[مؤمنان]] |
| | # [[دوستی]] غیر [[حق]] و پیامدهای آن |
| | # [[دوستی]] و [[دشمنی]] برای [[خدا]] |
| | # دھریگری |
| | # [[دین]] از آنِ خداست |
| | # [[دین حق]] |
| | # [[دین]] و [[آسانی]] آن |
| | # [[دین]] و [[حقّ]] [[انتخاب]] |
| | # ذات السَّلاسل |
| | # [[ذبح]] |
| | # [[ذره]] |
| | # [[ذکر خدا]] |
| | # [[ذکر کثیر]] |
| | # [[ذوالقرنین]] |
| | # [[ذوالقرنین]] و ساخت سد |
| | # [[ذوالکفل]]{{ع}} |
| | # [[راهبان]] |
| | # رَجْعت |
| | # [[رزاقیت]] [[خداوند]] |
| | # [[رزق]] مکتوب و مُقدَّر |
| | # رزقهای آسمانی |
| | # [[رسالت پیامبر]] اکرم{{صل}} |
| | # [[رشوه]] و [[رشوهخواری]] |
| | # [[رضایت]] و [[خشنودی خدا]] |
| | # رَقیب و عَتید |
| | # [[رکوع]] و رکوعکنندگان |
| | # [[رنج]] و [[آزار]] بردن و رساندن |
| | # رنگها و متعلقات آنها |
| | # [[روح]] |
| | # روحالامین |
| | # [[روح القدس]] |
| | # [[روز]] در نزد [[خدا]] |
| | # [[روزه]] |
| | # [[روزه]] [[مریم]]{{س}} |
| | # [[روش برخورد]] با [[کافران]] و [[منافقان]] |
| | # روش [[دعا کردن]] و [[نماز]] گزاردن |
| | # روشهای [[دعوت]] به [[حق]] |
| | # [[روم]] |
| | # [[رهایی]] [[ابراهیم]]{{ع}} از [[آتش]] |
| | # [[زبان]] [[پیامبران]] |
| | # [[زیور]] |
| | # [[زکات]] و [[صدقات]] |
| | # [[زکریا]]{{ع}} |
| | # [[زمین]] و [[سیر]] و نظر در آن |
| | # [[زمین]] و کاسته شدن آن |
| | # [[زمین]] و لرزش آن |
| | # [[زمین]] و [[میراث]] آن |
| | # [[زمین]] ویژگیها و امکانات |
| | # [[زناشویی]] با [[زن]] [[مشرک]] |
| | # زناشوییهای [[حرام]] |
| | # [[زنان]] |
| | # [[زنان]] [[مهاجر]] |
| | # [[زنان]] و [[دختران پیامبر]] اکرم{{صل}} |
| | # [[زنان]] و مردان بیهمسر |
| | # [[زنان]] یاد شده در [[قرآن]] |
| | # زنانی که [[ازدواج]] با آنها [[حرام]] است |
| | # [[زنبور عسل]] |
| | # [[زندگی]] [[مؤمن]] در [[دنیا]] و [[آخرت]] |
| | # [[زنده به گور کردن دختران]] |
| | # زنده بودن [[شهیدان]] |
| | # [[زن]] [[فرعون]] / [[آسیه]] |
| | # [[زن]] [[نوح]] و [[لوط]] |
| | # زیانکاران حالات و عواقب |
| | # [[زینت]] |
| | # [[سابقون]] |
| | # ساحل |
| | # ساخت [[کعبه]] |
| | # [[ساره]] |
| | # [[سبأ]] [[ملکه]] و [[مردم]] آن |
| | # [[سبقت]] جستن در [[خیرات]] |
| | # [[سبیل]] الطاغوت |
| | # [[سبیل]] المفسدین |
| | # [[سبیل المؤمنین]] |
| | # [[ستارگان]] |
| | # [[ستارگان]]، ویژگیها و کاربردها |
| | # سِتر عورت |
| | # [[ستم]] و [[دشمنی]] با [[پیامبران]] |
| | # رستم و [[ستمکاران]] انواع و عواقب |
| | # [[ستیزهجویی]] از روی [[نادانی]] |
| | # [[سجده]] |
| | # [[سجده]] [[برادران یوسف]] |
| | # [[سجده]] [[جادوگران]] |
| | # [[سجده]] [[مریم]]{{س}} |
| | # [[سجین]] |
| | # [[سحر]] و [[جادوگری]] |
| | # [[سختگیری]] بر [[دشمن]] |
| | # [[سختگیری]] [[دشمنان اسلام]] و [[راه]] [[مبارزه]] با آنان |
| | # سخنی و [[آسودگی]] |
| | # [[سرپرستی اموال]] سفیهان و [[یتیمان]] |
| | # [[سرپرستی]] مردان بر [[زنان]] |
| | # [[سریه]] [[عبدالله بن جحش]] |
| | # [[سعادت]] و [[شقاوت]] |
| | # سعی بین [[صفا و مروه]] |
| | # سفیهان / [[نادانان]] |
| | # سَکَرات [[موت]] |
| | # [[سلام]] و تحیت |
| | # [[سلام]] و جواب [[سلام]] |
| | # [[سلطنت]] [[خدا]] بر [[آسمانها]] و [[زمین]] |
| | # [[سلطنت]] [[ولایت]] و قیّومیت |
| | # [[سلیمان]]{{ع}} |
| | # [[سلیمان]]{{ع}} و [[تسخیر]] [[جنّ]] و [[شیاطین]] |
| | # [[سنت الهی]] / [[راه]] و روش [[الهی]] |
| | # [[سوگند]] [[بیهوده]] و [[حکم]] آن |
| | # [[سوگند]] و [[پرهیز]] از [[سوگند]] بیجا |
| | # سوگندهای [[قرآن]] |
| | # [[سیئات]]، [[ احکام]] و [[روش برخورد]] با آنها |
| | # [[شاعران]] |
| | # [[شب زندهداری]] |
| | # [[شب قدر]] |
| | # [[شب]] و [[روز]] |
| | # [[شجر]] الأخضر |
| | # شجرة الخبیثه |
| | # شجرة الزقوم |
| | # شجرة الطیبه |
| | # شجرة المبارکة |
| | # شجرة الملعونة |
| | # [[شرایع]] پیشینیان |
| | # [[شرح صدر]] |
| | # [[شرک]] و پیامدهای آن |
| | # [[شعیب]]{{ع}} |
| | # [[شفاعت]]، اقسام و شرایط |
| | # [[شفاء]] |
| | # [[شکر]] [[خدا]]، [[ضرورت]] و نتایج آن |
| | # [[شکوه]] [[رسول خدا]]{{صل}} از فراموش شدن [[قرآن]] |
| | # شنیدن [[حقیقت]] و کیفیت آن |
| | # [[شور]] و [[مشورت]] |
| | # شهاب |
| | # [[شهادت]] دادن به [[حق]] و [[پرهیز]] از کتان آن |
| | # [[شهیدان]]، حالات و [[منزلت]] ایشان |
| | # [[شیاطین]]، وسوسهها و [[دشمنیها]] |
| | # [[شیطان]] و [[ضرورت]] [[پناه بردن به خدا]] |
| | # [[شیوه]] برخورد با [[خیانتکاران]] |
| | # [[شیوه]] [[راه رفتن]] |
| | # [[صابئین]] |
| | # [[صاعقه]] |
| | # [[حضرت صالح|صالح]]{{ع}} / [[قوم ثمود]] |
| | # [[صحف ابراهیم]]{{ع}} |
| | # [[صحف موسی]]{{ع}} |
| | # [[صدق]] و [[راستی]] |
| | # [[صدقه]] و شرایط آن |
| | # [[صراط]] الجحیم |
| | # [[صراط]] الحمید |
| | # [[صراط]] العزیز الحمید |
| | # [[صراط]] سویّ |
| | # [[صراط مستقیم]] |
| | # [[صفات]] [[مؤمنان]] |
| | # صفات نمازگزاران |
| | # [[صفا و مروه]] |
| | # صلاحیت و [[صداقت]] [[پیامبران]] |
| | # [[صلح]] حُدیبیه و [[بیعت رضوان]] |
| | # [[صلوات]] در تشهد |
| | # [[صله ارحام]] و [[نهی]] از [[قطع]] آن |
| | # [[صور]] |
| | # صید و شکار |
| | # [[ضرورت]] [[اطاعت از امام]] و [[اولی الامر]] |
| | # [[ضرورت]] [[تصدیق]] [[کتابهای آسمانی]] |
| | # [[ضرورت]] [[حفظ]] فروج و سایر اندام |
| | # [[ضرورت]] [[دینداری]] |
| | # ضروری [[غسل]] جنابت |
| | # [[طاغوت]] |
| | # [[طالوت]] |
| | # [[طغیان]] و [[سرکشی]] و [[عاقبت]] آن |
| | # [[طلاق]] بائن |
| | # [[طلاق]] رجعی |
| | # [[طلاق]] قبل از دخول |
| | # طلا و نقره |
| | # [[طلب آمرزش]] |
| | # [[طلب]] [[دانش]] |
| | # [[طلب]] باری کردن |
| | # طوافکنندگان [[کعبه]] |
| | # [[طوبی]] |
| | # [[طوفان]] |
| | # [[ظلم]] بر نفس |
| | # [[ظن]] و [[گمان]] و پیامدهای آن |
| | # ظِهار |
| | # [[ظهور]] دابّة الأرض |
| | # [[عاد]] |
| | # عادات [[مردم]] قبل از [[اسلام]] |
| | # [[عاقبت]] [[تکذیبکنندگان]] |
| | # [[عاقبت]] [[گناه]] و [[گناهکار]] |
| | # [[عالم برزخ]] |
| | # [[عالم ذر]] |
| | # [[عبادت]] غیرحق |
| | # عبادتگاه |
| | # عباد [[صالح]] |
| | # عباد [[مخلص]] |
| | # عبرتهای [[تاریخی]] |
| | # [[عجله]] [[کافران]] و [[مشرکان]] برای رسیدن به [[عذاب الهی]] |
| | # عدّه و [[احکام]] آن |
| | # [[عذاب]] [[دنیا]] |
| | # [[عرش الهی]] |
| | # [[عَرَفات]] |
| | # [[عروة الوثقی]] |
| | # [[عزت]] [[الهی]] |
| | # [[عزت]] و [[ذلت]] |
| | # [[عزیز]]{{ع}} |
| | # [[عفت]] و [[پاکدامنی]] |
| | # [[علم آدم]]{{ع}} |
| | # [[علم]] [[ابراهیم]]{{ع}} |
| | # [[علم الهی]] |
| | # [[علم]] [[داوود]] و [[سلیمان]]{{ع}} |
| | # [[علم]] سنین و حساب |
| | # [[علم]] [[عیسی]]{{ع}} |
| | # [[علم]] [[لوط]]{{ع}} |
| | # [[علم]] [[محمد]]{{صل}} |
| | # [[علم]] [[موسی]]{{ع}} |
| | # [[علم]] [[نوح]]{{ع}} |
| | # [[علم]] و [[عالمان]] |
| | # [[علم]] [[یحیی]]{{ع}} |
| | # [[علم]] [[یعقوب]]{{ع}} |
| | # [[علم]] [[یوسف]]{{ع}} |
| | # [[علیین]] |
| | # عمد و [[خطا]] در [[کارها]] |
| | # عُمْر |
| | # عُمره |
| | # عمل غیر [[صالح]] |
| | # عوامل [[شادی]] و [[ایمنی]] |
| | # [[عهد]] و [[پیمان]] بین [[خدا]] و [[بندگان]] |
| | # [[عیسی]]{{ع}} |
| | # [[عیسی]]{{ع}} و [[خلق]] پرنده از [[خاک]] |
| | # [[غار]] |
| | # [[غزوه]] [[أحد]] |
| | # [[غزوه بدر]] ثانی |
| | # [[غزوه بدر کبری]] |
| | # غزوہ [[بنیالنضیر]] |
| | # [[غزوه بنیقریظه]] |
| | # غزوہ [[بنیقینقاع]] |
| | # [[غزوه تبوک]] |
| | # [[غزوه]] حمراء الأسد |
| | # [[غزوه حنین]] |
| | # غزوہ [[خندق]] |
| | # [[غزوه خیبر]] |
| | # [[غفلت]] و بیخبری عوامل و پیامدها |
| | # غَمام |
| | # [[غنایم]] [[جنگی]] |
| | # [[فتح مکه]] |
| | # [[فتنه]] [[اموال]] و [[اولاد]] |
| | # [[فحشاء]] و [[بدکاری]] |
| | # [[فرزندان]] |
| | # [[فرزندان آدم]]{{ع}} |
| | # [[فرزندخواندگی]] |
| | # [[فرشتگان]] |
| | # [[فرشتگان]] کار و [[مسئولیت]] آنها |
| | # [[فرشتگان]] نگاهبان [[جهنم]] |
| | # [[فرشتگان]] و رفت و آمد آنها |
| | # [[فرشتگان]] و صفات آنها |
| | # [[فرشتگان]] و [[عبادت]] آنها |
| | # [[فرشتگان]] و کمکرسانی به [[مسلمانان]] |
| | # [[فرشتگان]] و [[نزول]] آنها به [[امر الهی]] |
| | # [[فرعون]] و [[ایستادگی]] در برابر [[حقّ]] |
| | # فرقان |
| | # فرو رفتن در [[باطل]] |
| | # [[فریب]] عوامل و پیامدها |
| | # [[فساد]] و [[تباهی]] در [[آسمانها]] و [[زمین]] |
| | # [[فساد]] در دریا و خشکی |
| | # [[فساد]] در [[زمین]] |
| | # [[فساد]] و [[تبهکاری]] عوامل و پیامدها |
| | # [[فسق]] و [[بدکاری]] عوامل پیامدها |
| | # [[فضل]] و [[رحمت الهی]]، [[برکات]] و نتایج |
| | # [[فضیلت]] [[علمی]] [[آدم]]{{ع}} بر [[ملائکه]] |
| | # [[فطرت]] |
| | # [[فطری]] بودن [[تسلیم]] در برابر [[خدا]] |
| | # [[فقرا]] و [[ضرورت]] توجه به آنها |
| | # [[فلاح]] و [[رستگاری]] |
| | # [[فلسفه]] [[ازدواج]] و [[ترغیب]] به آن |
| | # فیء |
| | # [[قارون]] |
| | # [[قبایل]] و فِرَق |
| | # [[قبض روح]] |
| | # [[قبله]] |
| | # [[قبولی اعمال]] و شرایط آن |
| | # [[قتل]] [[انبیاء]] |
| | # [[قتل نفس]] و [[احکام]] آن |
| | # [[قدرت خدا]] |
| | # [[قرآن]] و [[اثبات]] [[حقیقت]] آن |
| | # [[قرآن]] و [[حفاظت]] [[خداوند]] از آن |
| | # [[قرآن]] و خبردهی از [[آینده]] نزدیک |
| | # [[قرآن]] و زبان آن |
| | # [[قرآن]] و [[نزول]] تدریجی |
| | # [[قرآن]] و [[نزول]] دفعی |
| | # [[قرآن]] و واسطه [[نزول]] آن |
| | # [[قربانی]] |
| | # [[قریش]] |
| | # [[قساوت قلب]]/ سختدلی |
| | # [[قصاص]] و [[احکام]] آن |
| | # [[قضا و قدر]] |
| | # [[قلب سلیم]] |
| | # [[قلب]]، [[مسئولیت]] و مواخذه آن |
| | # [[قلب]] مُنیب |
| | # قول کن فیکون |
| | # [[قوم ابراهیم]]{{ع}} |
| | # [[قوم]] تُبّع |
| | # [[قوم]] [[حضرت صالح|صالح]]{{ع}} |
| | # [[قوم]] [[فرعون]] |
| | # [[قوم لوط]] |
| | # [[قوم موسی]]{{ع}} |
| | # [[قوم نوح]]{{ع}} |
| | # [[قوم]] [[هود]] |
| | # [[قوم]] [[یونس]]{{ع}} |
| | # [[قیام]] برای [[خدا]] |
| | # [[قیامت]] صفات و نامها |
| | # [[قیامت]]، قطعیت و [[اثبات]] آن |
| | # [[قیامت]] و [[آمادگی]] برای آن |
| | # [[قیامت]] و احوال [[مردم]] |
| | # [[قیامت]] و [[برانگیخته شدن]] [[انسانها]] |
| | # [[قیامت]] و حساب و [[جزا]] |
| | # [[قیامت]] و گروهبندی [[مردم]] در آن [[روز]] |
| | # [[قیامت]] و مقدمات آن |
| | # [[قیامت]] و نشانههای آن |
| | {{پایان فهرست اثر}} |
|
| |
|
| ==وحدت سبب نزول و تعدّد نازل== | | ===جلد سوم=== |
| *این موضوع، عکس موضوع قبلی را ترسیم میکند؛ به این معنی که یک سبب نزول در مورد آیاتِ متعدّد و متفاوتی ذکر شده باشد. در این مورد گفتهاند که هیچ مانعی وجود ندارد که آیات متعدّدی در باره یک حادثه نازل شده باشد. *نمونه آن روایت [[ترمذی]] و [[حاکم نیشابوری]] از [[امّ سلمه]] است که گفت:"ای [[رسول خدا]]، هیچ نمیشنوم که خداوند از هجرت زنان یاد کند". پس خداوند این آیه را نازل کرد:{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| فَاسْتَجَابَ لَهُمْ رَبُّهُمْ أَنِّي لاَ أُضِيعُ عَمَلَ عَامِلٍ مِّنكُم مِّن ذَكَرٍ أَوْ أُنثَى بَعْضُكُم مِّن بَعْضٍ فَالَّذِينَ هَاجَرُواْ وَأُخْرِجُواْ مِن دِيَارِهِمْ وَأُوذُواْ فِي سَبِيلِي وَقَاتَلُواْ وَقُتِلُواْ لأُكَفِّرَنَّ عَنْهُمْ سَيِّئَاتِهِمْ وَلأُدْخِلَنَّهُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ ثَوَابًا مِّن عِندِ اللَّهِ وَاللَّهُ عِندَهُ حُسْنُ الثَّوَابِ}}﴾}}<ref> آنگاه پروردگارشان به آنان پاسخ داد که: من پاداش انجام دهنده هیچ کاری را از شما چه مرد و چه زن- که همانند یکدیگرید- تباه نمیگردانم بنابراین بیگمان از گناه آنان که مهاجرت کردند و از دیار خود رانده شدند و در راه من آزار دیدند و کارزار کردند یا کشته شدند چشم میپوشم و آنان را به بوستانهایی در خواهم آورد که از بن آنها جویباران روان است، به پاداشی از نزد خداوند؛ و پاداش نیک (تنها) نزد خداوند است؛ سوره آل عمران، آیه:۱۹۵.</ref>.
| | {{فهرست اثر}} |
| *همچنین [[حاکم نیشابوری]] از [[امّ سلمه]] نقل میکند که گفت:"به رسول خدا عرض کردم: چگونه است که مردان را یاد میکنی، اما از زنان چیزی نمیگویی؟ آن وقت آیه {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| إِنَّ الْمُسْلِمِينَ وَالْمُسْلِمَاتِ}}﴾}}<ref> سوره احزاب، آیه:۳۵.</ref> و آیه {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن|أَنِّي لاَ أُضِيعُ عَمَلَ عَامِلٍ مِّنكُم}}﴾}} نازل شد".
| | # [[کار]] و [[کوشش]] |
| *هم او در جای دیگر از [[امّ سلمه]] روایت میکند که به [[پیامبر]]{{صل]] گفت:"چگونه مردان به جنگ میروند، اما زنان را جهادی نیست و نیمِ مردان ارث میبرند؟. و خداوند آیه{{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| وَلاَ تَتَمَنَّوْا مَا فَضَّلَ اللَّهُ بِهِ بَعْضَكُمْ عَلَى بَعْضٍ لِّلرِّجَالِ نَصِيبٌ مِّمَّا اكْتَسَبُواْ وَلِلنِّسَاء نَصِيبٌ مِّمَّا اكْتَسَبْنَ وَاسْأَلُواْ اللَّهَ مِن فَضْلِهِ إِنَّ اللَّهَ كَانَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمًا}}﴾}}<ref> و آنچه را که خداوند با آن برخی از شما را بر برخی دیگر برتری داده است آرزو نکنید؛ مردان را از آنچه برای خود به دست میآورند بهرهای است و زنان را (هم) از آنچه برای خویش به کف میآورند بهرهای؛ و بخشش خداوند را درخواست کنید که خداوند به هر چیزی داناست؛ سوره نساء، آیه:۳۲.</ref> و آیه {{عربی|اندازه=150%|﴿{{متن قرآن| إِنَّ الْمُسْلِمِينَ وَالْمُسْلِمَاتِ}}﴾}}<ref> سوره احزاب، آیه:۳۵.</ref> را نازل کرد<ref>ر.ک: التبیان فی تفسیر القرآن، شیخ طوسی، ج ۱، ص ۴۲۴؛ الاتقان فی علوم القرآن، جلال الدین سیوطی، ج ۱، ص ۱۲۴ ـ ۱۲۵.</ref>.
| | # [[کافران]]، حالات و عواقب |
| *امّا بعید است که آیات متعدّد سورههای مختلف، که نزول هر یک مربوط به زمانی خاص است، دارای یک سبب نزول باشد. *یکی از معاصران در اینباره مینویسد:"با توجه به آیات متعدّد در سورههای مختلف، كه هر یک در زمانی نازل شده است، در این موارد با آیات متعدّد در یک حادثه واحد مواجه نیستیم. پس باید به دنبال نخستینِ این آیات در ترتیب نزول بگردیم. یعنی این آیات را بر اساس زمان نزول مرتب کنیم. در اینجا تنها یک پرسش از سوی [[امّ سلمه]] طرح شده است و از آن پس، متن قرآنی همواره در مواضع مختلف به این پرسش پاسخ گفته و در این کار، جنس زن و مرد را با الفاظ خاصّ خودشان یاد کرده است"<ref>ر.ک: معنای متن: پژوهشی در علوم قرآن، نصر حامد ابو زید، ترجمۀ مرتضی کریمینیا، تهران، طرح نو، ۱۳۸۰ ﻫ. ش، ص ۲۰۸.</ref>
| | # [[کافران]] و ترسی درونی |
| *در مورد مثال مذکور، برخی دیگر از محققان معاصر معتقدند که با توجه به روایات دیگری که در اینباره رسیده است، این آیات متعدّد، اسباب نزول متعدّد دارد و سیوطی، با تکلّف، خواسته است تا از طریق انتخاب پارهای از احادیث، مثالی برای وحدت سبب و تعدّد نازل ارائه دهد<ref>أسباب النزول، محمد باقر حجتی، تهران، وزارت ارشاد اسلامی، ۱۳۶۵ ﻫ ش، ص ۲۴۴.</ref>. برای وحدت سبب و تعدّد نازل مثالهای دیگری نیز ذکر شده است که آنها نیز خالی از اشکال نیستند<ref>أسباب النزول، محمد باقر حجتی، تهران، وزارت ارشاد اسلامی، ۱۳۶۵ ﻫ ش، ص ۲۴۴ - ۲۵۶.</ref><ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۵۰ - ۱۵۱.</ref>.
| | # [[کافران]] و [[سرزنش]] آنها |
| ==اعتبار روایات اسباب نزول==
| | # [[کافران]] و [[شبهات]] آنها |
| *از آنجا که روایات اسباب نزول، مانند بقیه روایاتی که از [[اهل سنت]] رسیده است، پس از گذشت یک قرن تدوین شده است، لذا احتمال جعل، تحریف و نیز تطبیق نابجای قصص اسباب نزول بر آیات قرآن در این روایات دور از ذهن نیست. [[علامه طباطبایی]] در باره روایات اسباب نزول و میزان اعتبار آنها مینویسد:"تتبع این روایات و تأمل كافی در اطراف آنها، انسان را نسبت به آنها بدبین میكند؛ از سیاق بسیاری از آنها پیدا است كه راوی، ارتباط نزول آیه را در باره حادثه و واقعه از طریق مشافهه و تحمل و حفظ به دست نیاورده، بلكه قصه را حكایت میكند، سپس آیاتی را كه از جهت معنا مناسب قصه است، به قصه ارتباط میدهد و در نتیجه سبب نزولی كه در حدیث ذكر شده، سبب نظری و اجتهادی است، نه سبب نزولی كه از راه مشاهده و ضبط به دست آمده باشد. گواه این سخن آن است كه در خلال این روایات، تناقض بسیار به چشم میخورد؛ به این معنا كه در بسیاری از آیات قرآنی، ذیل هر آیه چندین سبب نزول متناقض همدیگر نقل شده است كه هرگز با هم جمع نمیشوند. حتی گاهی از یک شخص، مانند ابن عباس یا غیر او، در یک آیه معین چندین سبب نزول روایت شده است"<ref>قرآن در اسلام، محمد حسین طباطبایی، قم، دفتر انتشارات اسلامی، ۱۳۷۵ ﻫ، ش، چاپ هشتم، ص ۱۱۸.</ref>.
| | # [[کافران]] و [[نهی]] از [[دوستی]] با آنها |
| *ایشان پس از تردید در اعتبار روایات اسباب نزول، روش تعامل صحیح با آنها را چنین بیان میکند:"سبب نزولی كه ذیل آیهای وارد شده است، در صورتی كه خبر متواتر یا قطعی الصدور نباشد، باید به آیه مورد بحث عرضه شود و تنها در صورتی كه مضمون آیه و قرائن موجود در اطراف آیه با آن سازگار بود، به سبب نزول نامبرده اعتماد می شود. به این ترتیب اگر چه مقدار زیادی از اسباب نزول سقوط میكند، ولی آنچه از آنها میماند، كسب اعتبار میكند<ref>قرآن در اسلام، محمد حسین طباطبایی، قم، دفتر انتشارات اسلامی، ۱۳۷۵ ﻫ، ش، چاپ هشتم، ص ۱۲۰.</ref>.
| | # [[کافران]] و [[نهی]] از [[همراهی]] با آنها |
| *واقعیت دیگر آن است که اسناد کمتر از نیمی از روایات اسباب نزول به تابعین ختم میشود که گفته آنها را نمیتوان حجت دانست مگر آنکه طرق آن متعدّد باشد<ref>ر. ک: الصحیح المسند من اسباب النزول، ابو عبد الرحمن مقبل بن هادی الوادعی، یمن، مکتبة دار القدس، چاپ دوم، ۱۴۱۵ ﻫ، ص ۱۷.</ref>.
| | # کالاها و متعلقات آنها |
| *مطابق نظر [[اهل سنت]]، که همه صحابه را عادل میدانند، روایات صحابیان [[پیامبر]] در حکم حدیث مرفوع [[پیامبر]] است، چرا که مستند صحابی در نقل روایت، یا سماع و نقل، و یا مشاهده است و نمیتوان گفت که از رأی خود سخن گفته است<ref>جامع النقول فی اسباب النزول و شرح آیاتها، ابن خلیفۀ علیوی، ریاض، ۱۴۰۴ ﻫ، ص ۱۲.</ref>. اما این امر در صورتی است که طریق منتهی به صحابه، طریق صحیحی باشد و خود، شاهد نزول بوده باشند.
| | # کاهلان در [[نماز]] |
| برخی از محققین در سالهای اخیر به ارزیابی سندی روایات اسباب نزول پرداخته و روایات صحیح را از سقیم جدا ساختهاند. الوادعی در کتاب الصحیح المسند من اسباب النزول، کمتر از دویست روایت صحیح را آورده است<ref>ر. ک: الصحیح المسند من اسباب النزول، ابو عبد الرحمن مقبل بن هادی الوادعی، یمن، مکتبة دار القدس، چاپ دوم، ۱۴۱۵ ﻫ، ص ۱۷.</ref>. محققی دیگر تعداد ۳۳۱ حدیث صحیح را در کتابی با نام الصحیح من اسباب النزول گرد آورده است <ref>الصحیح من اسباب النزول، عصام بن عبد المحسن الحمیدان، دار الذخائر، مؤسسة الریان، بیروت، ۱۴۲۰ ﻫ.</ref>.
| | # [[کبر]] و [[خودخواهی]] |
| *آقای [[ابراهیم محمد العلی]] در کتابی با نام صحیح اسباب النزول روایات صحیح را به دو دسته تقسیم کرده است:
| | # [[کتابهای مقدس]] |
| #روایاتی که در حقیقت بیانگر اسباب نزول آیات قرآن هستند؛ | | # کتب و [[صحف]] آسمانی |
| #روایاتی که اسباب نزول نیستند، بلکه تفسیر صحابیاند که برخی از اهل علم آنها را سبب نزول به شمار آورده و در بین روایات اسباب نزول جای دادهاند. | | # [[کرسی]] |
| *ایشان در بخش اول، تعداد ۳۲۴ روایت و در بخش دوم نیز ۱۴۶ روایت نقل کرده است<ref>ر. ک: صحیح اسباب النزول، ابراهیم محمد العلی، دار القلم، دمشق، ۱۴۲۴ ﻫ.</ref>.
| | # کشت [[اخروی]] و [[دنیوی]] |
| *شایان ذکر است که کتابهای یادشده صرفاً به انعکاس روایات صحابه پرداختهاند و منظور آنها از صحیح، صحیح در مقابل ضعیف است که هم شامل اخبار صحیح و هم شامل اخبار حسن میشود<ref>[[محمد کاظم شاکر|شاکر، محمد کاظم]]، [[آشنایی با علوم قرآنی (کتاب)|آشنایی با علوم قرآنی]]، ص:۱۵۱ - ۱۵۲.</ref>.
| | # کشت کردن |
| | # [[مذمت]] [[جدل]] |
| | # [[مذمت]] و [[نهی]] از [[پنهانکاری]] درباره [[حق]] |
| | # [[مرگ]]، قضای محتوم |
| | # [[مریم]]{{س}} |
| | # [[مریم]]{{س}} و ولادت [[عیسی]]{{ع}} |
| | # مزد شیر دادن |
| | # مسابقه و [[تیراندازی]] |
| | # [[مستضعفان]] |
| | # [[مسجد]]، [[ارزش]] و [[حرمت]] آن |
| | # [[مسجدالحرام]] |
| | # [[مسجد ضرار]] |
| | # [[مسخ]] |
| | # [[مسلم]] بودن [[ابراهیم]]{{ع}} |
| | # [[مسلم]] بودن [[جن]] |
| | # [[مسلم]] بودن توط |
| | # [[مسلم]] بودن [[محمد]]{{صل}} |
| | # [[مسلم]] بودن [[ملکه سبا]] |
| | # [[مسلم]] بودن [[موسی]]{{ع}} |
| | # [[مسلم]] بودن [[نوح]]{{ع}} |
| | # [[مسلم]] بودن [[یعقوب]]{{ع}} |
| | # [[مسلم]] بودن بوسف{{ع}} |
| | # [[مشاغل]] و صنایع و متعلقات آنها |
| | # [[مشرق]] و [[مغرب]] |
| | # [[مشرکان]] |
| | # [[مشرکان]] و [[تحریم]] بعضی از چیزها |
| | # [[مشرکان]] و [[تکذیب]] [[پیامبر اکرم]]{{صل}} |
| | # [[مشرکان]] و شیوه [[استدلال]] آنها |
| | # [[مشرکان]] و [[ضرورت]] [[بیزاری]] از آنها |
| | # [[مشرکان]] و [[گمان]] آنها درباره [[فرشتگان]] |
| | # [[مشرکان]] و گمانهای [[باطل]] |
| | # [[مشرکان]] و مرمت [[خانه خدا]] |
| | # [[مشرکان]] و [[نماز]] آنها |
| | # [[مشرکان]] و [[وعید]] آنها |
| | # [[مشروعیت]] [[استنباط]] |
| | # [[مشیت الهی]] |
| | # معافشدگان از [[جنگ]] |
| | # [[معامله]] کردن [[خداوند]] با [[مؤمن]] |
| | # [[معجزات الهی]] |
| | # [[معجزه]] در [[جنگ]] |
| | # [[معراج]] |
| | # [[مقام محمود]] |
| | # [[مکر]] و [[کیفر]] مکرکنندگان |
| | # [[مکه]] |
| | # [[ملائکه]] و [[امداد]] [[مسلمین]] در بعضی از [[غزوات]] |
| | # [[ملائکه]] و [[ثبت]] [[اعمال انسان]] |
| | # [[ملائکه]] و [[حفاظت]] از [[انسان]] |
| | # [[ملائکه]] و رسولانی از ایشان |
| | # [[ملائکه]] و [[سجود]] آنها بر [[آدم]]{{ع}} |
| | # [[ملائکه]] و [[ضرورت]] [[ایمان]] به آنها |
| | # [[ملائکه]] و [[عروج]] و [[نزول]] آنها |
| | # [[ملائکه]] و قبض [[ارواح]] |
| | # [[ملائکه]] و [[نهی]] از اظهار [[بندگی]] نسبت به آنها |
| | # [[ملائکه]] و [[وحی الهی]] |
| | # [[ملاء]] اعلی |
| | # [[ملک الموت]] |
| | # [[ملکوت]] |
| | # [[ملک]] و [[مالکیت خدا]] |
| | # [[ملکه سبا]] و [[قوم]] او |
| | # [[مناظره]] [[علمی]] |
| | # [[منافقان]] روشها و [[منشها]] |
| | # [[منکران]] [[رستاخیز]] |
| | # [[منکران]] [[عقاب]] و [[عاقبت]] ایشان |
| | # من و سلوی |
| | # [[موارد مصرف]] [[صدقات]] |
| | # [[موسی]]{{ع}} |
| | # [[موسی]]{{ع}} و [[عبد صالح]] |
| | # [[موسی]]{{ع}} و کارگری |
| | # موضع اهلی کتاب نسبت به [[قرآن]] و [[پیامبر اکرم]]{{صل}} |
| | # [[مهاجران]] |
| | # [[مهر]] / کابین |
| | # [[مهماننوازی]] و رسیدگی به دیگران |
| | # [[میثاق]] [[پیامبران]] |
| | # [[میراث]] [[آسمانها]] و [[زمین]] |
| | # [[میزان]] |
| | # [[میکائیل]] |
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| | # نشانههای [[پیامبر]]{{صل}} در [[تورات]] و [[انجیل]] |
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| | # [[نصایح]] [[لقمان]] |
| | # [[نعمتهای الهی]] |
| | # [[نفاق]] و [[منافقان]] |
| | # نفخ [[صور]] |
| | # [[نفس]] |
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| | # [[نفس]] /[[ روح]] |
| | # [[نفس زکیه]] |
| | # [[نفس لوامه]] |
| | # [[نفس مطمئنه]] |
| | # [[نفس]] واحده |
| | # [[نفقه]] و [[احکام]] آن |
| | # [[نفقه]] [[همسر]] و [[فرزند]] |
| | # [[نکوهش]] بازدارنده از [[نیکیها]] |
| | # [[نکوهش]] بازداشتن از [[راه خدا]] |
| | # [[نکوهش]] بازگو کردن [[اسرار]] [[جنگی]] |
| | # [[نکوهش]] [[بخل]] |
| | # [[نکوهش]] [[بدگمانی]] |
| | # [[نکوهش]] بیتوجهی به [[حق]] و [[انقطاع]] از او |
| | # [[نکوهش]] [[پرستش]] بتان |
| | # [[نکوهش]] [[تمسخر]] و [[لقب]] دادن به [[زشتی]] |
| | # [[نکوهش]] [[جدال]] با [[خدا]] و [[پیامبر]] |
| | # [[نکوهش]] [[حرامخواری]] |
| | # [[نکوهش]] [[ریا]] و [[خودنمایی]] |
| | # [[نکوهش]] سستیکنندگان در [[جهاد]] |
| | # [[نکوهش]] [[عیبجویی]] از دیگران |
| | # نکوه [[کینه]] و [[کینهتوزی]] |
| | # [[نکوهش]] [[گفتار]] بیعمل |
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| | # [[نکوهش]] [[یأس]] و [[نومیدی]] |
| | # نگهبانان [[جهنم]] |
| | # [[نماز]]، اهمیت، [[آداب]] و [[احکام]] آن |
| | # [[نماز]] بامداد |
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| | # [[نماز]] محافظت و توجه به وقت آن |
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| | # [[نماز]] و تباه کنندگان آن |
| | # [[نماز]] وسطی |
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| | # [[نوح]]{{ع}} و ساخت کشتی |
| | # [[نور]] و [[ظلمت]] |
| | # [[نهی]] از آشکار نمودن [[گناه]] و [[بدی]] |
| | # [[نهی]] از آمیزش به [[حرام]] |
| | # [[نهی]] از [[احساس]] [[شکست]] و [[ناتوانی]] نکتهها و یادآوریها |
| | # [[نهی]] از [[ازدواج]] با [[زنان پیامبر]] اکرم{{صل}} |
| | # [[نهی]] از [[اسراف]] و [[تبذیر]] |
| | # [[نهی]] از [[اصرار]] و [[عادت]] به [[گناه]] |
| | # [[نهی]] از [[اکراه]] در [[پذیرش دین]] |
| | # [[نهی]] از [[بخل]] ورزیدن |
| | # [[نهی]] از [[پیروی]] از اسرافکنندگان |
| | # [[نهی]] از [[پیروی]] از غیر [[مسلمانان]] |
| | # [[نهی]] از [[پیروی از هوای نفس]] |
| | # [[نهی]] از [[پیروی]] از [[شیطان]] |
| | # [[نهی]] از [[پیروی]] نااهلان |
| | # [[نهی]] از [[تأویل]] نابهجا و [[تحریف]] [[آیات]] |
| | # [[نهی]] از [[تجاوز]] در [[جهاد]] |
| | # [[نهی]] از [[تجسس]] |
| | # [[نهی]] از [[تفرقه]] |
| | # [[نهی]] از [[تکبر]] |
| | # [[نهی از تمایل به ظالمان]] |
| | # [[نهی]] از [[تمسخر]] [[آیات الهی]] |
| | # [[نهی]] از [[جنگ و کشتار]] در [[مسجدالحرام]] و [[ماههای حرام]] |
| | # [[نهی]] از خودکشی و انتحار |
| | # [[نهی]] از خوردن [[مال]] [[مردم]] |
| | # [[نهی]] از [[دشنام]] دادن به [[معبود]] [[مشرکان]] |
| | # [[نهی]] از دلتنگی و دلشادی در برابر حوادث |
| | # [[نهی]] از رشوهستانی و [[رشوهخواری]] |
| | # [[نهی]] از زر اندرزی |
| | # [[نهی]] از [[زیادهروی]] در [[دین]] |
| | # [[نهی]] از سپردن [[اموال]] به سفیهان |
| | # [[نهی]] از سقط جنین |
| | # [[نهی]] از [[سوگند]] خوردن بر [[گناه]] و [[معصیت]] |
| | # [[نهی]] از شرابنوشی |
| | # [[نهی]] از [[صدقه]] با [[منت]] |
| | # [[نهی]] از [[صفات ناپسند]] و [[نکوهش]] آن |
| | # [[نهی]] از [[طلب]] [[مغفرت]] برای [[مشرکان]] |
| | # [[نهی]] از [[غیبت]] کردن و [[بدگویی]] |
| | # [[نهی]] از [[کتمان حق]] و [[شهادت]] |
| | # [[نهی]] از کشتن [[فرزند]] |
| | # [[نهی]] از [[کینهتوزی]] |
| | # [[نهی]] از [[گمراه]] نمودن و نگران ساختن [[مردم]] |
| | # [[نهی]] از گوش ایستادن و [[استراق سمع]] |
| | # [[نهی]] از گوش دادن به [[خبر فاسق]] |
| | # [[نهی]] از [[لغو]] و کارهای [[بیهوده]] |
| | # [[نهی]] از مثال [[زدن]] برای [[خدا]] |
| | # [[نهی]] از [[مجادله]] غیر [[علمی]] |
| | # [[نهی]] از نجوای به [[گناه]] |
| | # [[نهی]] از نسبت دادن [[حلال و حرام]] به [[دروغ]] |
| | # [[نهی]] از [[نماز]] در حال مستی و جنابت |
| | # [[نهی]] از [[نماز]] گزاردن بر جنازه [[کافران]] |
| | # [[نهی]] از [[یاری کردن]] [[کفار]] و [[دوستی]] با آنها |
| | # [[نهی]] از [[یأس]] و [[نومیدی]] از [[خدا]] |
| | # [[نهی]] [[پیامبر]] از [[شتابزدگی]] در [[خواندن قرآن]] |
| | # [[نیازمندان]] و [[محرومان]] [[ضرورت]] توجه و شیوه برخورد با آنها |
| | # [[نیکی به پدر و مادر]] |
| | # [[نیکی]] کردن و [[پاداش]] [[نیکان]] |
| | # وام |
| | # [[وجوب]] [[آمادگی]] برای [[جنگ]] |
| | # [[وجوب]] [[افطار]] برای مریض و مسافر |
| | # [[وجوب]] تسمیه هنگام [[ذبح]] |
| | # [[وجوب جهاد]] |
| | # [[وجوب]] [[دفن]] میت |
| | # [[وجوب]] [[ذکر خدا]] در [[مشعرالحرام]] |
| | # [[وجوب]] کفایی [[امر به معروف و نهی از منکر]] |
| | # [[وجوب]] وقوف در [[عرفات]] |
| | # [[وحی الهی]] |
| | # [[وحی]] به [[حواریون]] |
| | # [[وحی]] به [[زکریا]] |
| | # [[وحی]] به [[زمین]] |
| | # [[وحی]] به [[زنبور عسل]] |
| | # [[وحی]] به [[مادر موسی]]{{ع}} |
| | # [[وحی]] به [[موسی]] و [[هارون]]{{ع}} |
| | # [[وحی]] به [[نوح]]{{ع}} |
| | # [[وحی]] به [[یوسف]]{{ع}} |
| | # [[وحی]] و [[اخبار غیبی]] |
| | # [[وحی]] و [[الهام]] [[شیاطین]] با یکدیگر |
| | # [[وحی]] و چگونگی ارسال آن |
| | # [[وسواس]] / [[وسوسه]] و [[ضرورت]] [[پرهیز]] از آن |
| | # وصفی [[کتابهای آسمانی]] و [[ضرورت]] [[ایمان]] به آنها |
| | # [[وصیت]] |
| | # وضوء و چگونگی انجام آن |
| | # [[وعدههای الهی]] |
| | # [[وعده]] [[پیروزی]] |
| | # [[وعده خدا]] به [[پیامبر اکرم]]{{صل}} |
| | # [[وعده خدا]] به [[مؤمنان]] |
| | # [[وعید]] [[مخالفان]] [[خدا]] و [[پیامبر]] |
| | # [[وعیدهای الهی]] |
| | # [[وقف]] و انجام [[امور خیر]] |
| | # وقت امساک و [[افطار]] |
| | # [[ولایت الهی]] |
| | # [[ولی امر]] و [[فروتنی]] در برابر [[مؤمنان]] |
| | # ویژگی [[پیامبران]] |
| | # [[هابیل و قابیل]] |
| | # [[هاروت و ماروت]] |
| | # [[هارون]]{{ع}} |
| | # [[هامان]] |
| | # [[هجرت]] و [[مهاجران]] |
| | # [[هجرت]] و [[وجوب]] آن |
| | # [[هدایت]] و خواست [[خدا]] |
| | # [[هدایت]] و [[گمراهی]] |
| | # [[همسایه]] و [[همنشین]] |
| | # [[هوای نفس]] و [[ضرورت]] [[پرهیز]] از آن |
| | # [[هود]]{{ع}} |
| | # [[یاری]] [[حق]] |
| | # [[یأجوج و مأجوج]] |
| | # [[یحیی]]{{ع}} |
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| | # [[یعقوب]]{{ع}} |
| | # [[یقین]] / [[مرگ]] |
| | # [[یقین]] و [[اهل]] آن |
| | # [[یوسف]]{{ع}} |
| | # بونس{{ع}} |
| | # [[یهود]] و [[نصاری]] |
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